रथ यात्रा निकालकर भारत में की थी हिन्दुत्व की राजनीति की शुरुआत, 92 के हुए आडवाणी
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए भले ही यह कहा जा सकता है कि आडवाणी युग का अंत हो गया। पर यह बात भी सच है इस इस दौर में वहीं आगे है जिनकों आडवणी ने राजनीति का ककहरा सिखलाया था।
भारतीय राजनीति के समय-समय पर एक नए युग का उदय होता रहा है और इन युगों में नए-नए किरदार भी उभरते रहे। उन किरदारों में से एक हैं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी। लालकृष्ण आडवाणी एक नेता नहीं बल्कि कुशल संगठनकर्ता, स्पष्टवादी दृष्टा और भारतीय राजनीति के लौह पुरुष हैं। एक ऐसे नेता जिसने अछूत कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी को ना सिर्फ राष्ट्रीय स्तर तक लेकर आए बल्कि इसे लोगों की भावनाओं से भी जोड़ा। कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष तो कभी पार्टी का असली चेहरे के तौर पर सबके सामने आये। लेकिन किया वही जो पार्टी के हित में रहा। भाजपा के साथ-साथ भारतीय राजनीति के भी अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी।
Scholar, statesman and one of the most respected leaders, India will always cherish the exceptional contribution of Shri Lal Krishna Advani Ji towards empowering our citizens. On his birthday, I convey my greetings to respected Advani Ji and pray for his long and healthy life.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 8, 2019
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए भले ही यह कहा जा सकता है कि आडवाणी युग का अंत हो गया। पर यह बात भी सच है इस इस दौर में वहीं आगे है जिनकों आडवणी ने राजनीति का ककहरा सिखलाया था। तभी तो, उनकें 92वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या फिर अमित शाह, एक से एक दिग्गज नेता उनके आवास पहुंच कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दे रहै हैं। लालकृष्ण आडवाणी का जन्म आठ नवंबर, 1927 को अविभाजित भारत के कराची में हुआ था। कराची में ही शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के बाद आडवाणी ने वहीं अध्यापक के तौर पर पढ़ाना शुरू कर दिया था। वे 14 साल की ही उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और कराची प्रांत में प्रचारक का काम करने लगे। विभाजन के बाद आडवाणी का पूरा परिवार मुंबई आ गया और मुंबई से ही आडवाणी ने वकालत की पढ़ाई की। यहीं उनका विवाह ने 1965 में कमला आडवाणी से शादी की थी।
आदरणीय श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी से भेंट कर उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी। pic.twitter.com/kQFNPc5iCN
— Amit Shah (@AmitShah) November 8, 2019
आडवाणी के राजनीतिक सफर की बात करें तो इसकी शुरुआत 1951 में होती है जब वह भारतीय जनसंघ के वरिष्ठ नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आएं। जन संघ की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए आडवाणी राजनीति के सफर में आगे बढ़ते गए। आडवाणी ने सबसे पहले संसद का रास्ता 1970 में नापा जब उन्हें दिल्ली से राज्यसभा के लिए भेजा गया। आडवाणी 1970 से 1989 तक के चार कार्यकाल के लिए राज्यसभा पहुंचें। 1973 से 1977 तक वह जनसंघ के अध्यक्ष रहे। आपातकाल के दौर में सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया और जनता पार्टी के महासचिव रहे। 1989 में वह पहली बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
मोरारजी देसाई के नेतृत्व में भारत में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा लालकृष्ण आडवाणी को दिया गया। हालांकि जनता पार्टी में गुटबाजी की वजह से यह कुनबा बिखरता गया और आडवाणी अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हो लिए। एक बात और थी कि अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी दोनों ही संघ की पृष्ठभूमि से आते थे। इसलिए दोनों ने एक साथ आगे बढ़ना शुरू किया। 1980 में भारतीय जनसंघ के लोगों ने एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया जिसका नाम था भारतीय जनता पार्टी। 1986 में आडवाणी भाजपा के अध्यक्ष बने और उनके ही कार्यकाल से भाजपा भारतीय राजनीति में एक नई दिशा में आगे बढ़ने लगी।
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1990 का दौर भारत और भारतीय राजनीति के लिए कई मायनों में अहम है। 1990 का ही दौर था जब आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा का आयोजन किया गया और इसी दौरान आडवाणी की गिरफ्तारी भी होती है। बाबरी विध्वंस मामले में भी लालकृष्ण आडवाणी का नाम आता है हालांकि इन सबके बीच एक चेहरा भारतीय राजनीति में लगातार चमकना शुरू कर देता है जो है लालकृष्ण आडवाणी का। लालकृष्ण आडवाणी का नाम सत्ता के सबसे शीर्ष नाम के लिए सबसे आगे रहने लगा यानी कि उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए भी लिया जाने लगा। हालांकि आडवाणी ने खुद को पीछे रखे अटल बिहारी वाजपेयी को आगे किया। गृह मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री होने के नाते आडवाणी ने कई ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए हैं जो लोकतंत्र और भारतीय राजनीति को हमेशा नई दिशा और दशा प्रदान करती रहेगी।
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