Nanaji Deshmukh Death Anniversary: ग्रामोदय और अंत्योदय के अखंड उपासक थे नानाजी देशमुख

Nanaji Deshmukh
ANI

आज ही के दिन यानी की 27 फरवरी को भारतीय जनसंघ के कद्दावर नेता रहे नानाजी देशमुख का निधन हो गया था। नानाजी देशमुख उन लोगों में थे, जो अपना पूरा जीवन राष्ट्र सेवा में समर्पित किया और आरएसएस के लिए काम करते रहे।

भारतीय जनसंघ के कद्दावर नेता और राज्यसभा सदस्य रहे नानाजी देशमुख का 27 फरवरी को निधन हो गया था। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण स्वावलंबन के क्षेत्र में अहम योगदान दिया था। वहीं मरणोपरांत उनको देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर नानाजी देशमुख के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

महाराष्ट्र के कडोली में मराठी भाषी ब्राह्मण परिवार में 11 अक्तूबर 1916 को नानाजी देशमुख का जन्म हुआ था। नानाजी अपनी शिक्षा के लिए पैसे जुटाने की खातिर सब्जी बेचने का काम किया करते थे। उन्होंने सीकर से हाई स्कूल किया। फिर सीकर के रावराजा ने नानाजी को स्कॉलरशिप दी। जिससे उन्होंने बिड़ला कॉलेज से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की। इसके बाद वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में भी शामिल हो गए।

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गोलवलकर ने बनाया प्रचारक

भले ही नानाजी का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन उनकी गतिविधियों का क्षेत्र उत्तर प्रदेश और राजस्थान था। इस दौरान तत्कालीन आरएसएस प्रमुख एम.एस गोलवलकर ने उनको प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा था। इस दौरान वह पूरे यूपी के सह प्रांत प्रचारक बन गए। नानाजी देशमुख बाल गंगाधार तिलक और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा से काफी प्रभावित थे। वहीं समाज सेवा में भी उनकी दिलचस्पी थी। उनका परिवार केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में था। वहीं देशमुख परिवार से हेडगेवार नियमित मुलाकात करते थे और वह नानाजी देशमुख की क्षमता को जानते थे। उन्होंने ही नाना को आरएसएस की शाखाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था।

गोरखपुर में शुरू की संघ शाखाएं

साल 1940 में हेडगेवार का निधन हो गया। जिसके बाद नानाजी देशमुख से प्रेरित होकर कई युवा महाराष्ट्र में आरएसएस में शामिल हो गए। देशमुख उन लोगों में थे, जो अपना पूरा जीवन राष्ट्र सेवा में समर्पित किया और आरएसएस के लिए काम करते रहे। इसी बीच आगरा में पहली बार उनकी मुलाकात दीन दयाल उपाध्याय से हुई। फिर देशमुख पूर्वी यूपी में संघ की विचारधारा को लागू करने के लिए प्रचारक के तौर पर गोरखपुर पहुंचे। उन्होंने 3 साल के अंदर गोरखपुर में करीब 250 शाखाएं शुरू कीं। फिर साल 1950 में गोरखपुर में देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर स्थापित किया।

मृत्यु

वहीं 27 फरवरी 2010 में 93 साल की उम्र में नानाजी देशमुख का निधन हो गया।

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