Neil Armstrong Death Anniversary: बचपन से ही आसमान छूने का ख्वाब देखते थे Neil Armstrong, ऐसे बनें पहले चंद्रयात्री
साल 1950 में नील आर्मस्ट्रॉन्ग पूरी तरह से क्वालिफाइड नेवल एविएटर बन गए। इसके बाद उन्होंने कई तरह की उड़ानों के अनुभव के अलावा फाइटर बॉम्बर भी उड़ाया। साल 1951 में कोरिया युद्ध के दौरान आर्मस्ट्रॉन्ग को टोही विमान उड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
आज ही के दिन यानी की 25 अगस्त को चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले इंसान नील आर्मस्ट्रॉन्ग का निधन हो गया था। उन्होंने 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा पर कदम रखा था। बता दें कि आर्मस्ट्रॉन्ग ने अपोलो 11 अभियान के तहत यह इतिहास रचा था। वह बचपन से ही आसमान छूने का सपना देखते थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
ओहियो को वापाकाओनेटा में 05 अगस्त 1930 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग का जन्म हुई था। इनके पिता का नाम स्टीफन कोयनिंग था, जोकि ओहिया राज्य सरकार में ऑडिटर थे। नील को बचपन से ही हवा में उड़ने का बहुत शौक था। वहीं महज 6 साल की उम्र में उनको दुनिया के सबसे लोकप्रिय विमान में उड़ने का अनुभव मिला। वहीं 15 साल की उम्र तक आर्मस्ट्रॉन्ग इतना अनुभव प्राप्त कर चुके थे कि वह खुद विमान उड़ा सकें।
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शिक्षा
बता दें कि महज 16 साल की उम्र में ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट हासिल कर लिया था। इसी दौरान उनको स्काउट में भी ईगल स्काउट की रैंक मिली। ईगल स्काउट अवॉर्ड और सिल्वर बफैलो अवॉर्ड भी मिला। फिर 17 साल की उम्र से उन्होंने परड्यू यूनिवर्सिट में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। फिर उन्होंने US में नेवी एविएटर के तौर पर नौकरी की। लेकिन इस दौरान उन्होंने ना नेवल साइंस का कोर्स किया और ना ही नेवी से जुड़े।
कोरिया युद्ध
साल 1950 में नील आर्मस्ट्रॉन्ग पूरी तरह से क्वालिफाइड नेवल एविएटर बन गए। इसके बाद उन्होंने कई तरह की उड़ानों के अनुभव के अलावा फाइटर बॉम्बर भी उड़ाया। साल 1951 में कोरिया युद्ध के दौरान आर्मस्ट्रॉन्ग को टोही विमान उड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान आर्मस्ट्रॉन्ग को निचली दूरी पर उड़ान भरते हुए सुरक्षित इलाके में विमान के कूदना बड़ा। लेकिन गनीमत यह रही कि इस दौरान उनको कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
अंतरिक्ष यात्री
यूनाइटेड स्टेट नेवी रिजर्व में आर्मस्ट्रॉन्ग एन्साइन बने। फिर साल 1953 तक वहां ड्यूटी करने के बाद साल 1960 तक वहीं रहें। इसके बाद आर्मस्ट्रॉन्ग ने रिजर्व छोड़ने का फैसला किया। हालांकि इस दौरान उन्होंने कई तरह के विमानों को उड़ाने का अनुभव प्राप्त किया। साल 1958 में वह अमेरिकी एयर फोर्स के मैन इन स्पेस सूनेस्ट कार्यक्रम में चुने गए, लेकिन बाद में वह कार्यक्रम कैंसिल हो गया।
अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए अयोग्य
सिविलयन टेस्ट पायलट होने के कारण नील आर्मस्ट्रॉन्ग अंतरिक्ष यात्री होने की योग्यता नहीं रखते थे। वहीं साल 1962 में जेमिनी प्रोजेक्ट के लिए कुछ आवेदन मांगे गए थे, जिनमें सिविलयन टेस्ट पायलटों को योग्य माना गया था। इसके बाद साल 1962 में नासा की तरफ आर्मस्ट्रॉन्ग को नासा एरोनॉट्सकॉर्प के लिए चुना गया। इस ग्रुप में चुने गए दो सिविलियन पायलटों में से एक आर्मस्ट्रॉन्ग थे। फिर जेमिनी प्रोजेक्ट के तहत उनको तीन बार अंतरिक्ष यात्रा करने का मौका मिला।
चंद्रयात्रा के लिए सिलेक्शन
आपको बता दें कि अपोलो -1 अभियान के बाद वह उन 18 अंतरिक्ष यात्रियों के दल में शामिल हुए, जिनको चंद्रमा पर जाना था। लूनार लैंडिंग के अभ्यास के दौरान जब आर्मस्ट्रॉन्ग का विमान उतर रहा था, तो सही समय पर उन्होंने पैराशूट खोल लिया, जिसके चलते वह बाल-बाल बच गए थे। बाद में फिर आर्मस्ट्रॉन्ग को अपोलो-11 के क्रू के कमांडर के रूप में चुना गया।
इस तरह से 20 जुलाई 1969 को वह चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बनें। फिर पृथ्वी पर वापस लौटने के करीब दो साल तक वह नासा में रहे और बाद में आर्मस्ट्रॉन्ग ने ओहियो में इंजीनियरिंग का शिक्षण कार्य किया। वहीं 25 अगस्त 2012 को 82 साल की उम्र में नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने ओहिया में अंतिम सांस ली।
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