Neil Armstrong Death Anniversary: चांद पर कदम रखने से पहले जंग के मैदान में थे नील आर्मस्ट्रॉन्ग, जानिए रोचक किस्से

महज 16 साल की उम्र में ही नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट हासिल कर लिया था। इस दौरान उनको स्काउट में भी ईगल स्काउट की रैंक मिली। इसके साथ ही ईगल स्काउट अवार्ड के साथ सिल्वर बफैलो अवार्ड मिला था।
आज ही के दिन यानी की चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रॉन्ग का 25 अगस्त को निधन हो गया था। वह चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने थे। आर्मस्ट्रॉन्ग अपोलो 11 अभियान के जरिए चंद्रमा पर पहुंचे थे। उनको बचपन से ही उड़ने का शौक था। यही शौक उनको अमेरिकी नेवी में ले गया और उन्होंने कोरिया युद्ध में फाइटर प्लेन भी उड़ाया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
ओहियो को वापाकाओनेटा में 05 अगस्त 1930 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग का जन्म हुआ था। इनके पिता स्टीफन कोयनिंग ओहिया राज्य सरकार में ऑडिटर थे। तीन भाई बहनों में नील सबसे बड़े थे और उनको बचपन से ही हवा में उड़ने का बहुत शौक था। बता दें कि नील को 6 साल की उम्र में दुनिया के सबसे लोकप्रिय विमान में उड़ने का अनुभव प्राप्त हुआ था। वहीं 15 साल की उम्र में उन्होंने इतना अनुभव प्राप्त कर लिया था कि वह खुद विमान उड़ा सकें।
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उड़ान के लिए पढ़ाई
महज 16 साल की उम्र में ही उन्होंने स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट हासिल कर लिया था। इस दौरान उनको स्काउट में भी ईगल स्काउट की रैंक मिली। इसके साथ ही ईगल स्काउट अवार्ड के साथ सिल्वर बफैलो अवार्ड मिला था। फिर 17 साल की उम्र में नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने परड्यू यूनिवर्सिटी से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। वह यूएस नेवी में एविएटर के रूप में सेवा दी, लेकिन उन्होंने न तो नेवल साइंस का कोर्स किया और न नेवी से जुड़े।
कोरिया युद्ध
साल 1950 में नील पू्र्ण क्वालिफाइड नेवल एविएटर बने, जिसके बाद उन्हें कई तरह की उड़ानों के अनुभव के साथ फाइटर बॉम्बर उड़ाने का अवसर मिला था। वहीं साल 1951 में नील को कोरिया युद्ध में टोही विमान उड़ाने की जिम्मेदारी मिली।
ऐसे बनें अंतरिक्ष यात्री
नील साल 1958 में अमेरिका एयरफोर्स के मैन इन स्पेस सूनेस्ट कार्यक्रम के लिए चुने गए थे। लेकिन यह कार्यक्रम रद्द हो गया। सिविलयन टेस्ट पायलट होने की वजह से नील अंतरिक्ष यात्री होने की योग्यता नहीं रखते थे। साल 1962 में प्रोजेक्ट जेमिनी के लिए आवेदन मंगाए थे, जिसके लिए सिविलियन टेस्ट पायलटों को योग्य माना गया था। सितंबर 1962 को नील को नासा बुलाया गया और वह नासा एरोनॉट्सकॉर्प के लिए चुने गए। नील इस समूह में चुने गए दो सिविलियन पायलट में से एक थे। इसके बाद वह जेमिनी अभियान के तहत तीन बार अंतरिक्ष गए।
अपोलो 1 अभियान के बाद नील 18 अंतरिक्ष यात्रियों के दल में शामिल हो गए, जिसे चंद्रमा पर जाता था। एक बार लूनार लैंडिंग के अभ्यास के समय जब उनका विमान उतर रहा था, तो सही समय पर पैराशूट खोलने के कारण वह बाल-बाल बच गए थे। फिर अपोलो 11 के क्रू के लिए नील आर्मस्ट्रॉन्ग को कमांडर चुना गया।
मृत्यु
बता दें कि नील आर्मस्ट्रॉन्ग 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति बनें। इसके बाद पृथ्वी पर लौटने के बाद वह दो साल तक नासा पर रहे। इसके बाद नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने ओहिया में इंजीनियरिंग का शिक्षण कार्य किया। फिर साल 1980 में उन्होंने शिक्षण कार्य भी छोड़ दिया। वहीं 25 अगस्त 2012 को 82 साल की उम्र में नील आर्मस्ट्रॉन्ग का ओहिया में निधन हो गया था।
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