Vinoba Bhave Birth Anniversary: विनोबा भावे ने लाखों किसानों को दिया था जीने का सहारा, गांधीजी के माने जाते थे करीबी

विद्वान और विचारशील व्यक्तित्व के धनी और गांधीवादी समाज सुधारक रहे विनोबा भावे का 11 सितंबर को जन्म हुआ था। महात्मा गांधी के जाने के बाद विनोबा भावे उन लोगों में शामिल रहे, जिन्होंने गांधी जी के कार्य करने के तरीकों को जिंदा रखा।
कर्मठ स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी समाज सुधारक रहे विनोबा भावे का 11 सितंबर को जन्म हुआ था। उनको महात्मा गांधी का बेहद करीबी माना जाता था। हालांकि विनोबा भावे ने हमेशा राजनीति से दूरी बनाते हुए देश सेवा के संकल्प को कायम रखा। महात्मा गांधी के जाने के बाद विनोबा भावे उन लोगों में शामिल रहे, जिन्होंने गांधी जी के कार्य करने के तरीकों को जिंदा रखा। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर विनोबा भावे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के गागोदा गांव में 11 सितंबर 1895 को विनोबा भावे का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम ब्राह्मण नरहरि भावे और मां का नाम रुकमणी बाई था। यह बचपन से ही तेज दिमाग वाले बालक थे। मां की संगत के चलते विनोबा भावे को शुरू से ही ईश्वर के प्रति विश्वास और आध्यात्म की ओर लगाव था। वहीं पिता से उनको तार्किक सोच और गणित व विज्ञान का दृष्टिकोण भी मिला था।
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विनोबा भावे को गणित और विज्ञान पढ़ने में आनंद आता था। वहीं हाईस्कूल में पहुंचने पर पिता ने जोर दिया कि उनको फ्रेंच सीखनी चाहिए और मां ने संस्कृत सीखने पर जोर दिया। इस पर विनोबा भावे ने हाईस्कूल में फ्रेंच चुनकर और घर में संस्कृत सीखने का फैसला लिया।
संन्यास लेने का इरादा
उस दौरान इंटर की परीक्षा के लिए मुंबई जाना पड़ता था। ऐसे में इंटर की परीक्षा के लिए विनोबा भी 25 मार्च 1916 को मुंबई की ट्रेन में बैठ गए। लेकिन इस दौरान उनके मन में सवालों के द्वंद उनको परेशान कर रहे थे कि उनको क्या करना चाहिए। उनके जीवन का लक्ष्य क्या है और इंटर की परीक्षा पास करने के बाद क्या करना होगा। इस उधेड़बुन में उनकी गाड़ी सूरत तक पहुंच गई, लेकिन यहां पर वह ट्रेन से उतर गए। वह हिमालय पर सन्यास का मन बनाकर पूर्व की ओर जाने वाली गाड़ी में बैठ गए।
हालांकि विनोबा हिमालय जाना चाहते थे, लेकिन वह रास्ते में काशी में उतर गए। क्योंकि उनको लगा कि शिव की नगरी में साधु-संत उनको सही रास्ता दिखा सकते हैं। इस बीच वह गंगाजी के तट पर खूब भटके और वह द्वैत-अद्वैत पर चल रहे शास्त्रार्थ में भी उलझ पड़े। विनोबा द्वारा यहां पर दिए गए तर्कों से लोग काफी प्रभावित हुए, लेकिन उनके मन की बेचैनी बढ़ गई और उन्होंने हिमालय के लिए ट्रेन पकड़ने का फैसला लिया।
संयोग से उसी समय हिंदू विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन हो रहा था। जिसमें महात्मा गांधी ने राजा सामंतों को अपनी सम्पत्ति गरीबों की सेवा में लगाने की अपील की थी। यह चर्चा अखबार में छपी थी और संयोग से यह अखबार विनोबा भावे को मिल गया। इसमें महात्मा गांधी के बारे में पढ़कर विनोबा भावे को एहसास हुआ कि महात्मा गांधी उनको सही राह दिखा सकते हैं।
महात्मा गांधी से हुए प्रभावित
ऐसे में उन्होंने फौरन महात्मा गांधी को खत लिखा और गांधी ने भी उनको जवाब देते हुए उन्हें आमंत्रण भेज दिया। जिसके बाद वह फौरन अहमदाबाद रवाना हो गए, जहां पर महात्मा गांधी का आश्रम था। 07 जून 1916 को दोनों की मुलाकात हुई और इसके बाद दोनों ही एक-दूसरे के प्रशंसक हो गए।
भूदान आंदोलन
साल 1921 से लेकर 1942 तक उन्होंने अनेकों बार जेल यात्राएं कीं। ब्रिटिश जेल उनके लिए एक तीर्थधाम बन गई थी। आजादी के दुखद विभाजन के बाद पूरे भारत में अशांति का माहौल बन गया था। वहीं 18 अप्रैल 1951 को आंध्र प्रदेश में आंदोलनकारी भूमिहर किसानों से मिलने के लिए विनोबा भावे नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। यहां पर विनोबा भावे से आंदोलनकारी किसानों ने कहा कि यदि उनको 80 एकड़ जमीन मिल जाए, तो उनका गुजारा हो सकता है।
जिसके बाद उन्होंने किसानों की मांग को जमींदारों के सामने रखा। आचार्य की बातों के प्रभावित होकर एक जमींदार ने अपनी 100 एकड़ जमीन दान करने का फैसला किया। विनोबा भावे की अगुवाई में 3 साल तक चले आंदोलन में गरीब किसानों को करीब 44 लाख एकड़ जमीन दिलाकर 13 लाख गरीबों की मदद की। आगे जाकर यह आंदोलन 'सर्वोदय आंदोलन' के रूप में फेमस हुआ। वहीं उनके जीवन का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक 'भूदान आंदोलन' है।
मृत्यु
विनोबा भावे को उनके कार्यों और त्याग के लिए 'आचार्य' की उपाधि दी गई। वहीं अपने अंतिम समय में उन्होंने अन्न जल त्याग दिया और 15 नवंबर 1982 को वर्धा में विनोबा भावे का निधन हो गया था।
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