बिम्सटेक सम्मेलन ने सदस्य देशों के कई अनसुलझे मुद्दों को सुलझा दिया

BIMSTEC summit
डॉ. रमेश ठाकुर । Mar 30 2022 11:18AM

खाड़ी मुल्कों के लिए बिम्सटेक सम्मेलन बहुत जरूरी होता है। बैठकें नहीं होने से भारी नुकसान हुआ है। चार वर्ष पूर्व काठमांडू में आयोजित हुए सम्मेलन में कुछ मुद्दे उठे थे। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। कोरोना के चलते तय मसले नहीं सुलझे।

कोलंबो में 18वां बिम्सटेक शिखर सम्मेलन चल रहा है। श्रीलंका में इस सम्मेलन के आयोजन का खास मकसद भी है। पड़ोसी मुल्क इस वक्त भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में उन्हें आर्थिक संकट से उबारने के लिए हिंदुस्तान ने बड़ी आर्थिक मदद की है। मदद, शिखर बैठक से पहले इसलिए की है ताकि दूसरे सदस्य देश भी प्रेरित होकर सहायता कर सकें। क्योंकि बिम्सटेक सम्मेलन का मकसद भी तो एक-दूसरे का सहयोग करना ही है। श्रीलंका को इस समय सहयोगी देशों से मदद की दरकार है। भारत ने श्रीलंका को एक बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया है और पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद के लिए अलग से पचास करोड़ अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त सहायता का आर्थिक राहत पैकेज भी भेजा है। इस पर श्रीलंका सरकार और उनके विपक्षी नेताओं के साथ-साथ आर्थिक विश्लेषकों ने जमकर भारत सरकार की सराहना की है। सराहना की भी जानी चाहिए, संकट के दौर में उन्होंने संबल जो दिया है। वरना, तो दूसरे मुल्क सिर्फ हवा-हवाई बातों से ही पेट भरते रहते हैं। चीन उनमें अव्वल है।

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श्रीलंका बिम्सटेक का मौजूदा अध्यक्ष सदस्य देश है। सभी जानते हैं कि बिम्सटेक के गठन का मकसद बंगाल की खाड़ी देशों पर केंद्रित एक क्षेत्रीय सहयोग वाला मंच बनाना है, जहां बैठकर सभी सदस्य अपनी समस्याएं एक-दूसरे से साझा करते हैं। विकट समस्याओं का समाधान खोजते हैं। ये सम्मेलन करीब चार साल बाद आयोजित हुआ है। हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर पहुंचे हुए हैं, बीते मंगलवार को हुई बैठक में उन्होंने अपनी बात मंच पर साझा की जिसमें रूस-यूक्रेन युद्ध, अफगानिस्तान के मौजूदा हालात और खाड़ी देशों में पनपते नए किस्म के आतंकवाद पर सभी सदस्य देशों का ध्यानाकर्षण करवाया। वैसे, अबकी बार के शिखर सम्मेलन का विषय ‘बिम्सटेक-एक क्षमतावान क्षेत्र, समृद्ध अर्थव्यवस्था और स्वस्थ लोग' पर रखा गया है जिनमें इन्हीं मुद्दों पर मंथन होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बुधवार को वर्जुअल तरीके से दिल्ली से जुड़े।

बहरहाल, हमारे विदेश मंत्री जयशंकर ने श्रीलंका पहुंचकर जो मानवता का परिचय दिया है उसे चीन भी देख रहा है और बाकी मुल्क भी। बिम्सटेक सम्मेलन का आयोजन कह लें या उनका दौरा ऐसे वक्त में हुआ, जब संकट से निपटने में श्रीलंकाई सरकार पूरी तरह से असक्षम है। तभी उनकी जनता आक्रोशित हुई पड़ी है। महंगाई आसमान छू रही है और चारों तरफ अफरातफरी का आलम बना हुआ है। लोग ईंधन और गैस की कतारों में लगे, उनसे छुटकारा चाहते हैं, साथ ही लंबे वक्त से बिजली कटौती की मार झेल रहे हैं, इन सभी समस्याओं से निजात चाहते हैं श्रीलंकाई लोग। इसलिए वहां जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर वहां विरोध कर रहे प्रमुख विपक्षी नेताओं से भी मिले हैं उनको बिगड़े हालातों से रूबरू कराया है। उनके समझाने पर वो लोग माने हैं। साथ ही उन्होंने ये भी भरोसा दिया कि जो भी संभव मदद होगी, वह भारत करेगा।

संकट में श्रीलंका एक बात अच्छे से समझ गया। चीन की चालाकी से वाकिफ हो गया है। आर्थिक संकट के बीच चीन ने साथ नहीं दिया। जबकि, कुछ वर्ष पूर्व तक वह हर तरह की मदद की बात कहता आया था। श्रीलंकाई वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे हमारे विदेश मंत्री को ऐसे वक्त में एक सहयोगी के रूप में देख रहे हैं जब उनकी सरकार के खिलाफ आवाम हमलावर है। ऐसे पहले भी कई मौके आए हैं जब भारत ने ही श्रीलंका का सहयोग किया। ये बात श्रीलंका का एक-एक बच्चा जानता है। लोग राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे से सत्ता से हटने की अपील कर रहे हैं। राजपक्षे के नेतृत्व वाले सत्तारुढ़ परिवार को अपनी अक्षमता के लिए इस्तीफा देने को बोल रहे हैं। हालात सुधर जाए इसी उद्देश्य से श्रीलंका ने बिम्सटेक का आयोजन अपने यहां करवाया है। कोरोना के चलते ये बैठक नहीं हुई थी।

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खाड़ी मुल्कों के लिए बिम्सटेक सम्मेलन बहुत जरूरी होता है। बैठकें नहीं होने से भारी नुकसान हुआ है। चार वर्ष पूर्व काठमांडू में आयोजित हुए सम्मेलन में कुछ मुद्दे उठे थे। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। कोरोना के चलते तय मसले नहीं सुलझे। पर, शायद अब कुछ हो। तब, सदस्य देशों ने कृषि में स्नातकोत्तर और पीएचडी कार्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति और बीज क्षेत्रों के विकास सहित क्षमता विकास एवं प्रशिक्षण जैसे अन्य पहलुओं पर भारत की ओर से आवाज उठाई गई थी जिस पर सभी एकमत हुए थे। साथ ही खाड़ी देशों के मध्य पशुधन-पोल्ट्री के क्षेत्रों में सहयोग व जलीय जंतु रोगों और जलीय कृषि में जैव सुरक्षा व सटीक खेती को बढ़ावा देने के लिए डिजिटलाइजेशन जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई थी। फिलहाल मौजूदा सम्मेलन के कुछ और मुद्दे इनमें जुड़ेंगे। कुल मिलाकर अगले कुछ वर्षों के लिए ये सभी मसले हल करने की चुनौती होगी। लेकिन सबसे पहले अध्यक्ष देश श्रीलंका को आर्थिक संकट से उभारने के लिए सभी सदस्य देशों को मिलकर सहयोग करना होगा।

बिम्सटेक में भारत की अहम भूमिका होती है, सभी सदस्य देश उनकी तरफ ही ताकतें हैं। क्योंकि समृद्धि के हिसाब से वही सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए बैठक में भारत जिन मसलों को उठाता है, सभी मुल्क बिना सोचे समझे हामी भरते हैं। उनको पता है भारत जो भी मुद्दे मंच पर रखेगा उससे सबका भला होगा। बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार व थाईलैंड ने कभी भी किसी मसले का आज तक विरोध नहीं किया। हां, एक बार चीन के इशारे पर नेपाल ने जरूर थोड़ा विरोध किया था, लेकिन उनका विरोध ज्यादा देर टिका नहीं। नेपाल समय रहते चीन की चालाकी से वाकिफ हो गया था। इस बार के सम्मेलन में अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए करीब 14 से 15 प्रमुख आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। सबसे बड़ी चिंता अब नए किस्म के आतंकवाद को लेकर है जो ना सिर्फ खाड़ी देशों को परेशान किये हुए है बल्कि समूचे एशिया के लिए चुनौती बना हुआ है। अफगानिस्तान और यूक्रेन की घटनाओं ने बिम्सटेक देशों को सोचने पर मजबूर किया है। समय ऐसा है कि अब सबको तगड़ी एकता दिखानी होगी। इसके लिए सभी देशों को आपसी व्यापार, संपर्क और सांस्कृतिक, तकनीकी और आर्थिक विकास को सामूहिक रूप से आगे बढ़ाना होगा। कोरोना के चलते प्रभावित हुए व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और मत्स्य पालन को भी नए सिरे से गढ़ना होगा।

-डॉ. रमेश ठाकुर

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