अखाड़े के चैम्पियन राजनीतिक पियादे बनकर अपना सारा सम्मान खो चुके हैं

Bajrang Punia Vinesh Sakshi Malik
ANI

बीती 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या धाम में नवनिर्मित हवाई अड्डे ओर रेलवे स्टेशन का लोकार्पण किया। अयोध्या को देश से जोड़ने के लिए कई नई रेलगाड़ियों का हरी झंडी दिखाई। और अयोध्या धाम के विकास के लिए करोड़ों की योजनाओं की घोषणा की।

बीते साल 18 जनवरी को विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया के नेतृत्व में पहलवानों ने जंतर-मंतर तक मार्च किया और वहां धरना दिया। उनका दावा है कि भारतीय कुश्ती संघ यानी डब्ल्यूएफआई के प्रमुख बृज भूषण सिंह ने एक नाबालिग सहित महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न किया। पिछले एक साल में इस मामले में कई उतार चढ़ाव आ चुके हैं। बृज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध पुलिस ने मुकदमा लिखा और अब मामला अदालत में है।

बृजभूषण सिंह पर मुकदमा लिखा जाने के बाद पहलवान शांत हो गए थे। लेकिन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव हुए, जिसमें बृजभूषण के करीबी संजय सिंह और उनका गुट जीता। इस जीत के बाद पहलवानों ने दोबारा नाराजगी और प्रदर्शन का ड्रामा शुरू कर दिया। साक्षी मलिक ने मीडिया के सामने कुशती छोड़ने की घोषणा की। अगले दिन बजरंग पुनिया ने पद्मश्री लौटाने का ऐलान किया। वो पद्मश्री सम्मान को पीएम आवास के बाहर सड़क पर छोड़ आए। साक्षी और बजरंग के बाद विनेश फोगाट ने खेल रत्न ओर अर्जुन अवार्ड लौटाने का ऐलान किया। बजंरग की तरह वो भी पीएम आवास के बाहर अपना सम्मान सड़क पर छोड़ आई। पहलवान न्याय पाने के संघर्ष की आड़ में राजनीति कर रहे हैं।

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यह खुला तथ्य है कि पहलवानों को कांग्रेस पार्टी का समर्थन है। खबरें तो यह भी हैं कि साक्षी, विनेश और बजरंग को आगामी लोकसभा या हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी टिकट दे सकती है। ताजा प्रकरण में नाराज पहलवानों से मिलने प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी पहुंचे। राहुल गांधी की बजरंग पुनिया के गांव जाने और कुश्ती लड़ने वाली तस्वीरें पूरे देश न देखीं। विनेश के अवार्ड वापसी के बाद भी राहुल और प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया के माध्यम से मोदी सरकार पर तीखे हमले किये। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा की पहलवान आंदोलन से लेकर वर्तमान प्रकरण तक भूमिका सार्वजनिक है।

न्याय के लिए आंदोलन और अपनी आवाज बुलंद करने का अधिकार हमें हमारा संविधान प्रदान करता है। लेकिन खिलाड़ियों का एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता की भांति व्यवहार उचित नहीं ठहराया जा सकता। पिछले एक साल में ऐसे कई अवसर आए जब पहलवानों ने अपने राजनीतिक आकाओं के इषारे पर सोची समझी रणनीति के तहत केंद्र की मोदी सरकार की छवि धूमिल करने वाले कृत्यों को अमली जामा पहनाया।

याद करिए 28 मई का दिन। इस दिन देश को संसद का नया भवन मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया। वास्तव में हर देश के इतिहास में कुछ क्षण ऐसे होते हैं जो अमर होते हैं। कुछ तिथियां समय के चेहरे पर अमर हस्ताक्षर बन जाती हैं। 28 मई एक ऐसा ही दिन है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि संसद की इमारत केवल एक भवन नहीं है बल्कि 140 करोड़ भारतवासियों की आकांक्षाओं और सपनों का प्रतिबिंब है। यह आत्मनिर्भर भारत के सूर्योदय का साक्षी है और एक विकसित भारत का प्रतीक है। लेकिन इस ऐतिहासिक दिन रंग में भंग डालने के लिए पहलवानों ने अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर नए संसद भवन तक मार्च किया।

बीती 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या धाम में नवनिर्मित हवाई अड्डे ओर रेलवे स्टेशन का लोकार्पण किया। अयोध्या को देश से जोड़ने के लिए कई नई रेलगाड़ियों का हरी झंडी दिखाई। और अयोध्या धाम के विकास के लिए करोड़ों की योजनाओं की घोषणा की। अयोध्या के विकास और प्रभु श्रीराम मंदिर के लोकापर्ण से पूर्व इस कार्यक्रम की बड़ी महत्ता है। लेकिन पहलवान इस दिन भी प्रपंच करने से बाज नहीं आए। विनेश फोगाट इसी दिन पीएम आवास के बाहर अपना अर्जुन और खेल रत्न सम्मान वापस करने पहुंची और अपने अवार्ड सड़क पर छोड़कर चली आईं। पहलवानों का खास मौके पर नकारात्मक व्यवहार यह साबित करता है कि वे एक राजनीतिक दल के पयादे या मोहरे भर हैं। पूर्व की घटनाओं के आधार पर इस बात की संभावना है कि आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के शुभ अवसर पर रंग में भंग डालने के लिए पहलवान कोई नया नाटक या प्रपंच कर सकते हैं।  

पूरा देश चाहता है कि पहलवानों को न्याय मिले। लेकिन न्याय पाने के लिए जो पहलवान जो प्रपंच और प्रोपगेंडा कर रहे हैं, वो देशवासियों को अखरता है। एक अहम प्रश्न यह भी है कि जब पहलवानों ने धरना प्रदर्शन किया, उस समय भी उन्हें देश के सारे पहलवानों या अखाड़ों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। वहीं जाट समुदाय की खाप पंचायतें भी खुलकर उनके समर्थन में नहीं आई। इससे सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कहीं न कही पहलवान बिरादरी और जाट समुदाय ये मानता है कि पहलवानों ने इस मामले में राजनीति कर रहे हैं। यकीन मानिए अगर पहलवानों के आरोपों में सौ फीसदी सच्चाई झलकती तो पूरा देष उनके साथ खड़ा दिखाई देता। पहलवानों के आरोप बेबुनियाद और झूठा नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इन आरोपों में राजनीति की मिलावट साफ-साफ दिखाई देती है।

पहलवान न्याय चाहते हैं, लेकिन अपने मन के मुताबिक। वो चाहते हैं कि कुश्ती महासंघ पर उनका वर्चस्व हो। वो कानून और नियमों को दरकिनार कुश्ती में बना रहना चाहते हैं। वो खुद को चैंपियन समझते हैं और ट्रायल देने में अपनी तौहीन समझते हैं। वो चाहते हैं कि सभी बड़ी खेल र्स्पाधाओं में बिना ट्रायल उन्हें प्रवेश दिया जाए। ऐसा हो भी चुका है। 2022 के एशियाई खेलों में विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को बगैर ट्रायल सीधी एंट्री मिली। नतीजा सबका सामने है। विनेश चोट का बहाना बनाकर कुश्ती के रिंग में उतरी ही नहीं। और बजरंग पुनिया शून्य के शर्मनाक स्कोर के साथ अखाड़े में चित हो गए।

कुश्ती ही नहीं प्रत्येक खेल में सफलता के लिए अनुशासन, संयम और निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। लेकिन जब कोई खिलाड़ी अनुशासन और अभ्यास को त्यागकर राजनीति, धरने प्रदर्शन और षड्यंत्रों का भागीदार बन जाएगा तो उसकी अखाड़े से खाली हाथ वापसी होनी ही है। 2022 के एशियाई खेलों में विनेश और बजरंग की जगह अगर दूसरे पहलवानों ने देश का प्रतिनिधित्व किया होता तो हमारी पदक तालिका में दो पदक और जुड़ जाते।

पहलवानों के धरने-प्रदर्शन और प्रपंचों के चलते देश में पिछले एक साल से कुश्ती की गतिविधियां ठप हैं। नतीजतन पहलवानों का बहुमूल्य समय और अथक परिश्रम व्यर्थ जा रहा है। इस एक साल में कुश्ती और पहलवानों का कितना नुकसान हुआ है, शायद इसका अंदाजा आंदोलनकारी पहलवानों को नहीं है। इस पूरे मामले का सबसे बुरा प्रभाव महिला कुश्ती पर पड़ना निश्चित है। ऐसे हालातों और गंदी राजनीति के चलते माता पिता बेटियों को कुश्ती के अखाड़े में भेजने से पहले सौ बार सोचेंगे। पहलवानों के नित नवीन प्रपंचों और नाटकबाजी से देशवासियों के दिलों में पहलवानों और कुश्ती की छवि धूमिल हो रही है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि विनेश, साक्षी, बजरंग ने देश के मैडल जीते। उन्होंने देश-दुनिया में भारत का नाम रौशन किया। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी मेहनत में देशवासियों की दुआएं और सरकार का सहयोग भी शामिल है। आज इन पहलवानों का खेल का करियर ढलान की ओर है। उन्हें अपने अनुभव का लाभ आने वाली पीढ़ियों को देना चाहिए, जिससे कुश्ती का झंडा और बुलंद हो। लेकिन आंदोलनकारी पहलवान कुश्ती के अखाड़े में इतनी नकारात्मकता छोड़कर जा रहे हैं कि नयी पीढ़ी का कुश्ती के प्रति कोई झुकाव या रुझान ही न रहे।

बृजभूषण सिंह अगर दोषी हैं तो भारतीय न्याय व्यवस्था और न्यायालय इतने सक्षम हैं कि वो आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा देंगे। और किसी भी आरोपी को भले ही वो कितना सक्षम और शक्तिशाली हो वो कानून के सामने घुटने के बल बेबस बैठा दिखना चाहिए। न्यायालय का निर्णय आने तक पहलवानों को संयम बरतना चाहिए। उन्हें न्याय व्यवस्था के प्रति अपना विश्वास और आस्था प्रदर्शित करनी चाहिए। आंदोलनकारी पहलवान राजनीति करना चाहते हैं, तो बेशक करें। यह उनका निजी फैसला हो सकता है। लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कुश्ती के अखाड़े को किसी राजनीतिक दल का मंच वो न बनाएं। इसी में कुश्ती और पहलवानों की भलाई है।

-आशीष वशिष्ठ

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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