भ्रष्टाचार और जंगलराज से समझौता बना कांग्रेस की हार

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कांग्रेस ने लालू राज की इस सच्चाई को जानने के बावजूद राजनीतिक पैतरेबाजी से बिहार में सत्ता हासिल करने का नाकाम प्रयास किया। बिहार में वोट चोरी का अभियान चलाया गया। यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा। एसआईआर प्रक्रिया में 65 लाख वोट हटा दिए गए। यह मुदृदा सुप्रीम कोर्ट तक गया।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने पिछले महीने आईआरसीटीसी होटल घोटाला मामले में 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। सीबीआई के अनुसार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के अलावा राज्यसभा सदस्य प्रेमचंद गुप्ता, उनकी पत्नी सरला गुप्ता, आईआरसीटीसी अधिकारियों, कोचर ब्रदर्स समेत कुल 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए थे। यह खबर पूरे देश में पढ़ी—सुनी गई। यदि किसी ने नहीं देखी तो वह है कांग्रेस पार्टी ने। कांग्रेस ने लालू यादव के भ्रष्टाचार और जंगलराज के अन्य मामलों की तरह इसे भी नजरांदाज कर दिया। कांग्रेस यह भूल गई कि यदि ऐसे मामलों की अनदेखी की गई तो मतदाता भी उसे भूल जाएंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में यही हुआ। मतदाता भूल गए कि कांग्रेस भी एक राष्ट्रीय और प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल है। कांग्रेस ने सत्ता के लिए भ्रष्टाचार से समझौता किया। मतदाताओं ने कांग्रेस के इस रवैये को मतों से ठुकरा दिया। 

सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि काग्रेस ने पिछली गलतियों से जरा भी सबक नहीं सीखा। भ्रष्टाचार और कानून—व्यवस्था आज भी देश में प्रमुख मुदृदा है। विकास और दूसरे मुदृदे इसकी नींव पर खड़े होते हैं, यदि नींव ही कमजोर होगी तो विकास की इबारत नहीं लिख पाएगी। कांग्रेस ने बिहार में लालू यादव की पार्टी से सत्ता के लिए समझौता कर अपने पैरों पर फिर से कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। कांग्रेस को बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से मात्र 6 सीटें मिली। इस शर्मनाक हार की जिम्मेदार खुद कांग्रेस है। कांग्रेस अब इस जिम्मेदारी से भागने के लिए फिर से वही पुराना वोट चोरी, सरकारी मशीनरी के चुनाव में दुरुपयोग का आरोप लगा रही है। अभी भी कांग्रेस इस सच्चाई का सामना करने को तैयार नहीं है कि उसने एक महाभ्रष्ट लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से सीटों का समझौता करके भारी भूल की है। बिहार के मतदाताओं ने इन दोनों दलों को तगड़ा सबक सिखाया है। 

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कांग्रेस ने आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबे लालू परिवार के जरिए चुनावी वैतरणी पार करने का गलत निर्णय लिया। यह जानते हुए भी कि मतदाता इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। अपराधी परिवार के साथ चुनावी तालमेल की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ गई। भाजपा और मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने लालू यादव के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार और जंगलराज को प्रमुख मुदृदा बनाया। कांग्रेस इसके बचाव में कोई दलील देकर मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर सकी। बिहार में चुनाव हो और चारा घोटाले से जुड़ी कहानियां सामने न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। ये घोटाला ही ऐसा था कि 30 साल बाद भी लोग इसके बारे में बात करते हैं और जानने की चाहत रखते हैं। कांग्रेस ने 950 करोड़ रुपये के घोटाले में अपने प्रमुख सहयोगी और राजद प्रमुख लालू प्रसाद को गिरफ्तारी से बचाने के लिए पर्दे के पीछे से राजनीतिक चालें चलीं, लेकिन वे असफल रहीं। वर्ष 1990-96 के दौरान सामने आया चारा घोटाला बिहार पशुपालन विभाग में हुआ। इसमें अधिकारियों ने बेईमान सप्लायर्स के साथ मिलकर फर्जी बिलों के आधार पर सैकड़ों करोड़ रुपये का गबन किया। जांच में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, नौकरशाहों और राजनेताओं की संलिप्तता सामने आई। ये सरकारी खजाने की बड़ी लूट थी। 

यह घोटाला मुख्य रूप से 1990 के दशक में हुआ। इस समय लालू प्रसाद यादव बिहार के मु्ख्यमंत्री थे। इसका खुलासा 1996 में तब हुआ, जब चाईबासा (अब झारखंड में) के उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और फर्जी बिलों के जरिए धन निकासी की गड़बड़ी पकड़ी। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव को पांच मामलों में दोषी ठहराया गया। लालू प्रसाद यादव पशुपालन घोटाले के मामलों में लालू अब तक कुल सात बार जेल जा चुके हैं। चाईबासा ट्रेजरी से अवैध निकासी के मामले में 3 अक्टूबर 2013 को पहली बार उन्हें सजा मिली थी। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, जगदीश शर्मा, आर.के. राणा जैसे नेताओं और अफसरों को भी इस मामले में सजा सुनाई गई।

भ्रष्टाचार के ऐसे ढेरों मामलों के अलावा कांग्रेस लालू यादव के शासन के दौरान जंगल राज को भूल गई। लालू राज के दौरान अपराध की घटनाओं में वृद्धि हुई। अपहरण (किडनैपिंग) की वारदातें बढ़ीं। सड़क पर बढ़ती असुरक्षा भी इसमें शामिल थी।गुंडागर्दी और बाहुबल का प्रभाव थी। कई जगह दबंगों और बाहुबली नेताओं का वर्चस्व था। प्रशासन पर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे थे। अर्थव्यवस्था और विकास में गिरावट आंकी गई थी। उद्योग, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे की स्थिति कमजोर हुई थी। बिहार को देश के “सबसे पिछड़े राज्यों” में गिना जाने लगा था। वर्ष 1992 से 2004 तक, अपहरण के कुल 32,085 मामले दर्ज किए गए थे। ऐसे कितने मामले दर्ज नहीं किए गए। बिहार पुलिस की वेबसाइट के अनुसार, 2001-2005 के बीच हत्याओं की संख्या 20,000 के करीब है। 90 के दशक में स्थिति का सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है।

बिहार में दूसरा जंगलराज चुनावों में होने वाली हिंसा, बूथ कैप्चरिंग और धांधली से जुड़ा था, जिसका अंत भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने अपने कड़े चुनाव सुधारों से किया था। टी.एन. शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त 1990–1996 तक थे, तब उन्होंने इस सिस्टम को बदलने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए थे। बिहार में इन सुधारों का प्रभाव सबसे ज्यादा दिखा। इस दूसरे वाले जंगलराज में बदमाशों या राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा पूरे बूथ पर कब्ज़ा करना, वोटिंग मशीन/बैलेट पेटी उठा ले जाना या खुद वोट डाल देना,वोटरों को धमकाना या बूथ से भगा देना जैसी चीज़ें शामिल थी। चुनाव के दौरान हत्या और गोलीबारी आम थी। पुलिस पर भी हमले होते थे। कई जिलों में स्थानीय प्रशासन चुनाव के दौरान निष्पक्ष भूमिका नहीं निभा पाता था। बाहुबलियों का सीधा प्रभाव चुनाव प्रक्रिया में दिखता था। शेषन ने पहली बार बूथों पर केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल तैनात किए गए, जिससे राज्य पुलिस पर निर्भरता कम कर दी गई।

कांग्रेस ने लालू राज की इस सच्चाई को जानने के बावजूद राजनीतिक पैतरेबाजी से बिहार में सत्ता हासिल करने का नाकाम प्रयास किया। बिहार में वोट चोरी का अभियान चलाया गया। यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा। एसआईआर प्रक्रिया में 65 लाख वोट हटा दिए गए। यह मुदृदा सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया। इस मुदृदे का दम तब निकल गया जब एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान किसी भी पार्टी के एजेंट ने नाम हटाने पर ऐतराज तक नहीं किया। इससे जाहिर है कि कांग्रेस ने इसे सिर्फ हवाई मुदृदा बनाया। बिहार चुनाव में कांग्रेस के पास ऐसा कोई मुदृदा नहीं था, जिस पर मतदाताओं की मोहर लगवाई जा सके। कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ एक भी नजीर पेश नहीं कर सकी। कांग्रेस यदि गंभीर होती तो अपने शासित राज्यों में किसी एक का उदाहरण देकर मतदाताओं को विश्वास दिला सकती थी, कि वह भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की नीति पर अमल करती है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि राजद जैसे दागदार क्षेत्रीय दलों की तुलना वह एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी है। सिर्फ एक राज्य में सत्ता के लिए भ्रष्टाचार जैसे मुदृदों से समझौता करने की भारी कीमत पूरे देश में चुकानी पड़ सकती है। यही कीमत दूसरे राज्यों के अलावा अब कांग्रेस ने बिहार में चुकाई है।

- योगेन्द्र योगी

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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