चिन्मयानंद इस तरह बन गया संत और हासिल कर लिया राजनीतिक रसूख

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बीपी गौतम । Sep 23 2019 3:39PM

शातिर दिमाग चिन्मयानंद गोरखपुर पीठ के योगी अवैधनाथ जी महाराज के पास जाने लगा। योगी अवैधनाथ जी महाराज सच्चे संत थे, उनमें छल-कपट नहीं था, वे चिन्मयानंद को समझ नहीं पाये, उनके संबंधों को आधार बना कर चिन्मयानंद राजनीति में सक्रिय हो गया।

कथित संत चिन्मयानंद सलाखों के पीछे चला गया है। चिन्मयानंद की अय्याशी की निंदा देश भर में की जा रही है। अब हर कोई यह भी जानना चाहता है कि चिन्मयानंद असलियत में कौन है और यह कहां से आया है, साथ ही यह प्रतिष्ठित संस्थाओं का मठाधीश कैसे बन बैठा। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के छोटे से गाँव रमईपुर त्योरासी में भुवनेश्वरी सिंह और राम श्री के पांच पुत्र और एक पुत्री पैदा हुए थे। राम पाल, राम कृपाल, कृष्ण पाल, राम भवन, तुंगनाथ और पुत्री का नाम सावित्री रखा गया। तीसरे नंबर का कृष्णपाल ही यौन उत्पीड़न का आरोपी कथित संत चिन्मयानंद है, जो 3 मार्च 1947 को पैदा हुआ था। चिन्मयानंद और इसके परिजन अलग तरह की ही कहानी सुनाते हैं लेकिन असलियत कुछ और ही बताई जाती है।

बताया जाता है कि 20 वर्ष की उम्र में कृष्ण पाल ने मोहल्ले की ही किसी लड़की से छेड़-छाड़ कर दी थी, जिसका खुलासा होने से कृष्ण पाल फरार हो गया, इस प्रकरण की पुलिस से शिकायत नहीं की गई थी। बताते हैं कि इधर-उधर भटकते हुए कृष्ण पाल दिल्ली पहुंच गया और यहाँ आजीविका के लिए छोले-कुलचे बेचने लगा। कृष्ण पाल कई वर्षों तक फुटपाथ पर ही रहा। बताते हैं कि किसी तरह कृष्ण पाल एक संत के संपर्क में आ गया और उनके साथ वृन्दावन आ गया। वृन्दावन स्थित आश्रम में कृष्ण पाल को गायों की सेवा का कार्य सौंप दिया गया, यहाँ इसने कई वर्षों तक गायों को चारा डाला और गोबर साफ किया, साथ ही भोजन बनाना भी सीख गया तो, यह रसोई में प्रवेश पा गया।

कृष्ण पाल भोजन अच्छा बनाता था, जिससे संत धर्मानंद सरस्वती कृष्ण पाल को अपने साथ ले जाने लगे। वृंदावन वाला आश्रम शाहजहाँपुर स्थित आश्रम से ही संबद्ध है। धर्मानंद कृष्ण पाल को शाहजहाँपुर, हरिद्वार, ऋषिकेश, कनखल और बरेली सहित सभी जगह साथ ले जाने लगे। संतों के बीच रहने से कृष्ण पाल संतों के बारे में जान-समझ गया। धर्मानंद सरस्वती भले और भोले संत बताये जाते हैं। उन्होंने प्रभावित होकर कृष्ण पाल को दीक्षा दे दी और नाम रख दिया चिन्मयानंद सरस्वती।

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धर्मानंद सरस्वती वृद्ध हुए तो सर्वाधिक करीबी होने के कारण चिन्मयानंद हावी हो गया, उनके शरीर त्यागते ही ट्रस्ट भी कब्जा लिया। ट्रस्ट से संभ्रांत लोगों को किनारे कर दिया और अपने इशारों पर काम करने वाले अधीनस्थों को पदाधिकारी बना लिया, इसके बाद मनमानी खुलकर करने लगा। बताते हैं कि जवानी के दिनों में चिन्मयानंद भांग के साथ शराब का भी नियमित सेवन करता था और यह सब आश्रम में ही किया जाने लगा लेकिन, अब वह सिर्फ भांग खाता है।

शातिर दिमाग चिन्मयानंद गोरखपुर पीठ के योगी अवैधनाथ जी महाराज के पास जाने लगा। योगी अवैधनाथ जी महाराज सच्चे संत थे, उनमें छल-कपट नहीं था, वे चिन्मयानंद को समझ नहीं पाये, उनके संबंधों को आधार बना कर चिन्मयानंद राजनीति में सक्रिय हो गया और भाजपा से टिकट लेकर वर्ष 1991 में बदायूं लोकसभा क्षेत्र से सांसद बन गया, साथ ही मछली शहर और जौनपुर से भी सांसद चुना गया, इसके बाद चिन्मयानंद की दबंगई और नीयत खुल कर सामने आ गई। जिन कुकर्मों को चिन्मयानंद पर्दे के पीछे करता था, वे अब खुलेआम करने लगा। कुकर्मों के बल पर ही राजनीति में आगे बढ़ गया और फिर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जैसा दायित्व भी पा गया। चिन्मयानंद जब योगी अवैधनाथ जी महाराज के पास जाता था तब योगी आदित्यनाथ की आयु कम थी, इसीलिए योगी आदित्यनाथ इसे सम्मान देते थे।

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चिन्मयानंद लंबे समय से अय्याशी कर रहा है, इसके रसोईया, अंगरक्षक, चपरासी और आस-पास रहने वाले संत व निकट संबंधी सब कुछ जानते हैं। चिन्मयानंद पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा तो कोई स्तब्ध नहीं हुआ। सैंकड़ों लड़कियों के जीवन को तबाह करने वाला चिन्मयानंद अब सही जगह पहुंच गया है।

- बीपी गौतम

(लेख में व्यक्त विचार और तथ्य पूर्ण रूप से लेखक के अपने हैं। प्रभासाक्षी हर लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर है इसलिए उक्त लेखक के लेख को प्रकाशित किया जा रहा है। यहाँ हमारी मंशा किसी की छवि को धूमिल करने की नहीं है। किसी भी व्यक्ति के बारे में न्यायालय जो निर्णय करता है हम उसका सदैव आदर और पालन करते हैं।)

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