भारत विरोधी बयान देने वाले कश्मीरी नेताओं का साथ लेकर देश को कैसे जोड़ेंगे राहुल गांधी?

Bharat Jodo Yatra
ANI

भारत जोड़ने की बात कहते हुए कांग्रेस की यह यात्रा भारत विरोधी बयान देने वाले नेताओं का कुनबा बन गई है। इस यात्रा से कांग्रेस और अलगाववादी नेता अपनी खोई हुई राजनीतिक पृष्ठभूमि को तलाशने की जुगत में हैं।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा वर्तमान में राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय है। कन्याकुमारी से कश्मीर की इस पद यात्रा ने प्रसिद्धि से ज्यादा विवादों का सामना किया। ऐसे विवाद जिसने इस यात्रा के मायने पूर्ण रूप से बदल दिए, इस यात्रा में शामिल हुए चेहरों ने इस यात्रा को विवादों की यात्रा बना दिया। यात्रा में शामिल हुए नेताओं का नाता किसी न किसी विवाद से जुड़ा रहा है। इस यात्रा में शामिल हुए यात्री देश जोड़ने में कम, देश तोड़ने की साजिशों में अधिक नजर आये हैं। भारत जोड़ो यात्रा अपने अंतिम पड़ाव में है और इस यात्रा का समापन कश्मीर में होगा। यात्रा के अंतिम दिनों में भी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के आरोपों से घिरा गुपकार एलायंस भी इस यात्रा में शामिल हुआ है। यह वह संगठन है जो चीन और पाकिस्तान की खुली पैरवी करता आया है और अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए आतंकवादियों और पाकिस्तानियों का साथ देता आया है। गुपकार गठबंधन में महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं, वही महबूबा मुफ्ती जो जम्मू और कश्मीर में धारा 370 के हटने का विरोध करती हैं और कहती थीं कि कश्मीर में कोई भी राष्ट्रीय झंडा उठाने वाला तक नहीं बचेगा। लेकिन अब मौकापरस्ती में मुफ़्ती खेमा भी सत्ता पाने की लालसा में यात्रा में तिरंगा लहराने जा रहा है? 

जब पाकिस्तान के द्वारा एक तिहाई कश्मीर पर कब्जा किया गया और अनुच्छेद 370 लागू किया गया, यह सब घटनाएं जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुईं, लेकिन अपनी राजनीतिक गरिमा को बचाने के लिए उन्होंने चुप्पी साध ली। शायद यही वजह है कि, अभी तक कांग्रेस जम्मू और कश्मीर को लेकर अपनी राय स्पष्ट नहीं कर सकी। अपनी यात्रा में भीड़ जुटाने के लिए राहुल गांधी जम्मू और कश्मीर में हो रही भारत जोड़ो यात्रा के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूख अब्दुल्ला से भी समर्थन ले रहे हैं। यह वही शेख अब्दुल्ला हैं, जिन पर 1931 में त्रगापुरा में अपने भाषण के दौरान कश्मीरी पंडितों के नरसंहार करने का आरोप लगा था। शेख अब्दुल्ला ने ही अपने भाषण में मुस्लिम कांफ्रेंस और घाटी के मुसलमानों को हिंदुओं के प्रति भड़काया। कांग्रेस और शेख अब्दुल्ला का नाता पुराना है, 1975 में शेख अब्दुल्ला एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें इंदिरा गांधी के समर्थन से शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया गया था, जबकि उस समय राज्य विधानसभा में शेख अब्दुल्ला का एक भी विधायक नहीं था। आगे चलते हुए साल 1989-90 में जब जम्मू और कश्मीर के हालात काफी बिगड़ गए और श्रीनगर में कश्मीरी हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू हो गया तो फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने परिवार के साथ विदेश भाग गए।

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तत्कालीन राज्यपाल श्री जगमोहन सिंह द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘माय फ्रोजेन टरबुलेन्स इन कश्मीर’ में भी इस बात का जिक्र है कि जम्मू और कश्मीर की भयावह स्थिति को लेकर फारूक अब्दुल्ला गंभीर नहीं थे, जिसको लेकर उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दो पत्र लिखते हुए, इस बात से अवगत कराया था। साथ ही इस बात का भी जिक्र किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का ध्यान कश्मीर की स्थिति सुधारने की तरफ नहीं बल्कि होने वाले लोकसभा के चुनावों की तरफ ज्यादा था। हर हाल में सत्ता में आने की जुगत में कश्मीर के मसले को नजरअंदाज कर दिया गया। इन सभी बातों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जम्मू और कश्मीर के उन अलगाववादी नेताओं, जिनके द्वारा समय-समय पर राष्ट्र विरोधी सोच का प्रमाण दिया गया है, ऐसे नेताओं से समर्थन लेने एवं उनको समर्थन देने का कांग्रेस का पुराना इतिहास और राजनीतिक परंपरा रही है, जो जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी से चलते हुए अब राहुल गांधी द्वारा बखूबी निभाई जा रही है। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर क्यों हमेशा कांग्रेस के तार भारत विरोधी मानसिकता रखने वाले नेताओं से जुड़े होते हैं? क्या यह राजनीति का हिस्सा है या फिर कांग्रेस की विचारधारा का प्रभाव? फारूख अब्दुल्ला द्वारा कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने से राहुल गाँधी से जनता यह सवाल पूछ रही है।

भारत जोड़ने की बात कहते हुए कांग्रेस की यह यात्रा भारत विरोधी बयान देने वाले नेताओं का कुनबा बन गई है। इस यात्रा से कांग्रेस और अलगाववादी नेता अपनी खोई हुई राजनीतिक पृष्ठभूमि को तलाशने की जुगत में हैं। आखिर जिस यात्रा को राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन की दूसरी इनिंग के रूप में देखा जा रहा था, वह अब विवादों और सवालों के घेरे में है। जिस संगठन और विचारधारा का साथ देने पर कांग्रेस को जनता ने राजनीतिक वनवास पर भेजा, उन्हीं दलों को साथ लेकर कांग्रेस भारत जोड़ने का राग अलाप रही है। एक कहावत है 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है' और कांग्रेस ने भी इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए, भाजपा विरोध को बरकरार रखने के लिए राष्ट्र विरोधी ताकतों का साथ लिया। इस यात्रा का कोई मुख्य एजेंडा तो नजर नहीं आया, पर यह यात्रा कांग्रेस की अस्तित्व की तलाश मात्र तक सीमित रही। कांग्रेस यात्रा के जरिए खोया हुआ जनाधार वापस समेटने की अपनी कोशिश में विफल नजर आ रही है।

इस यात्रा का उद्देश्य राज्य दर राज्य बदलना भी जनता में असमंजस का कारण रहा है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी वहां यात्रा का अर्थ ही बदल गया, राहुल गांधी उन राज्यों में सॉफ्ट नजर आए और वहां की समस्याओं से ज्यादा राज्य सरकार की तारीफों के पुलिंदे बांधते नजर आए। आखिर हर पड़ाव में यात्रा के मायने और आधार बदलने से जनता का विश्वास भी कम हुआ है। जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद कई बदलाव आये हैं, जम्मू और कश्मीर में इस यात्रा के आने से राजनैतिक अस्थिरता का माहौल है, अभी तक अलग-अलग विचारधारा का दम भरने वाले, अब एक मंच पर आ गए हैं। बिखरे विपक्ष को साथ लेकर कांग्रेस आगामी चुनावों में खुद के लिए सत्ता में वापसी की दिशा तलाश रही है। भारत विरोधी बयान देने वाले नेताओं का इस यात्रा में शामिल होना बता रहा है कि सत्ता की लालसा में कांग्रेस किसी से भी हाथ मिलाने के लिए तैयार है।

-डॉ. प्रदीप महोत्रा

(लेखक पेशे से चिकित्सक और जम्मू-कश्मीर भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं)

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