संसद में सुरक्षा चूक की घटना को महंगाई और बेरोजगारी से जोड़कर देखना गलत

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संसद में हुई आतंकी घटना को बेरोजगारी से जोड़कर विपक्ष बड़ी चालाकी से युवाओं को भड़काना चाहता है। वो चाहता है कि युवा सड़कों पर उतरकर धरना, प्रदर्शन कर सरकार का विरोध करें जिससे सरकार की छवि को ठोस पहुंचे और चुनाव में वो लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में भुना सकें।

पिछले दिनों लोकसभा की दर्शक दीर्घा से दो युवक सांसदों की मेज पर कूद गए। एक युवक ने जूते से कुछ निकाला और सदन के अंदर पीला धुआं छा गया। आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया। संसद की सुरक्षा में हुई चूक के मामले में कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सांसद नेता राहुल गांधी से संसद में सुरक्षा चूक पर मीडिया ने सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि सिक्योरिटी ब्रीच जरूर हुई है, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी और महंगाई है। मोदी जी की पॉलिसीज के कारण देश के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा। राहुल के बयान के बाद बीजेपी की प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक था।

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी बीजेपी को घेरते हुए बयान दिया है कि लोकसभा में विजिटर गैलरी से कूदने वाले आरोपी बेरोजगारी की समस्या पर देश का ध्यान खींचना चाहते थे। ऐसे में अहम सवाल यह है कि क्या इस गंभीर एवं संवेदनशील मामले में राजनीति होनी चाहिए? क्या असल में इस घटना की वजह बेरोजगारी है?

जांच एजेंसियां आरोपियों से पूछताछ में जुटी हैं। उम्मीद है कुछ दिनों में सच भी सामने आ ही जाएगा। लेकिन प्रथम दृष्टया विपक्षी दल अपने बयानों से आरोपियों का बचाव करते दिखाई दे रहे हैं। वास्तव में विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं की बयानबाजी सोची समझी रणनीति का हिस्सा लगती है। आतंकी घटना को अंजाम देने वाले युवकों को बेरोजगारी से पीड़ित और कुंठित बताकर विपक्ष मोदी सरकार को घेरने की जो तैयारी कर रही है, उसकी परतें धीरे-धीरे खुलने लगी हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में विपक्ष और इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को पराजित करने के सारे यत्न किए। लेकिन समझदार जनता ने विपक्ष की नीति और नीयत को अच्छे से पहचान कर न्याय कर दिया। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में मतदाताओं ने कांग्रेस को जो पटखनी दी है, उसने कांग्रेस को बहुत गहरी चोट दी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में समाजवादी पार्टी को भी काफी उम्मीदें थीं। लेकिन इस बार उसका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। ऐसे में विपक्ष और खासकर इंडिया गठबंधन में शामिल दलों को यह समझ नहीं आ रहा कि, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला वो कैसे करेंगे। लोकसभा चुनाव में वो जनता के सामने क्या मुद्दा और एजेण्डा लेकर जाएंगे।

असल में जन सरोकारों से दूर सत्ता पाने की बेचैनी में विपक्ष के पास मोदी सरकार को घेरने के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। ऐसे में विपक्ष का सारा जोर इस बात पर है कि येन केन प्रकारेण मोदी सरकार की छवि को धूमिल किया जाए। किसी भी यत्न से जनता के मन में मोदी के प्रति प्यार, स्नेह और समर्थन की बजाय क्रोध और असम्मान का भाव जागृत हो जाए। संसद की घटना के चार दिनों के भीतर ही विपक्षी दलों के नेताओं के बयानों और उनके हमदर्दों के चेहरे से ये तो साफ हो गया है कि ये आतंकी मानसिकता के युवा किसी षड्यंत्रकारी ताकत के मोहरे भर हैं।

वर्ष 2014 में जब से मोदी सरकार ने देश की सत्ता संभाली हैं, तब से तमाम देशविरोधी ताकतें किसी ने किसी बहाने देश और मोदी सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिशें करती रहती हैं। देश में एक ऐसा गैंग हैं, जिसे देश में और देश से बाहर बैठी ताकतें खाद पानी उपलब्ध कराती हैं। आंदोलनजीवी ये गैंग देश विरोधी ताकतों के इशारे पर कभी शाहीन बाग, कभी किसान आंदोलन और कभी पहलवान आंदोलन के जरिये मोदी सरकार को घेरने और देश की प्रतिष्ठा धूमिल करने का काम करते हैं। इस गैंग ने नोट बंदी, धारा 370 को हटाते समय और कोविड काल में भी देश में अराजकता फैलाने की पूरी कोशिश की। लेकिन जनता इनके बहकावे में नहीं आई।

इस गैंग का मकसद किसी भी तरीके से देश में अस्थिरता और अराजकता का माहौल बनाना है। ऐसा करके वो देश के बुरे हालातों और घटनाओं को ठिकरा मोदी सरकार के सिर फोड़कर सत्ता प्राप्ति के मंसूबों में कामयाब होना चाहते हैं। इस गैंग ने देश हित में उठाये गये हर कदम का विरोध संसद से लेकर सड़क तक किया है। लेकिन जनता इस देश विरोधी गैंग के हथकंडों और प्रपंचों को अब समझने लगी है। इसलिए वो इनके झांसे में नहीं आती। हालिया विधानसभा चुनाव में जनता ने जिस विवेकशीलता का परिचय दिया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है।

संसद में हुई आतंकी घटना को बेरोजगारी से जोड़कर विपक्ष बड़ी चालाकी से युवाओं को भड़काना चाहता है। वो चाहता है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व युवा सड़कों पर उतरकर धरना, प्रदर्शन कर सरकार का विरोध करें जिससे सरकार की छवि को ठोस पहुंचे और चुनाव में वो लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में भुना सकें। बेरोजगारी पिछले दस वर्षों में पैदा हुई समस्या नहीं है। देश में छह दशक तक और राज्यों में सर्वाधिक समय तक कांग्रेस की सरकारें रही हैं। कांग्रेस के कार्यकाल में बेरोजगारी से निपटने के लिए हुए कार्य सबके सामने हैं। अगर कांग्रेस ने अपने लंबे कार्यकाल में इस समस्या पर ढंग से काम किया होता तो आज बेरोजगारी की समस्या इतनी विकराल और गंभीर न होती। लेकिन जब केवल विरोध के लिए विरोध करना हो तो फिर तर्क, तथ्य और गंभीर प्रश्न नेपथ्य में चले जाते हैं।

राहुल और अखिलेश यादव आज युवाओं की बेरोजगारी का राग अलाप रहे हैं, उन्हें देश को बताना चाहिए कि जब उनके दल सत्ता में थे तो उन्होंने कितनी गंभीरता से इस बारे में कदम उठाये थे। केंद्र, राज्य और सार्वजनिक उद्यमों में लगभग तीन करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं। भारत में 70 करोड़ युवा है। सरकारी नौकरियां सिर्फ लाखों में हैं। इस जटिलता और स्थिति को समझना होगा। बेरोजगारी किसी एक व्यक्ति या परिवार की समस्या नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चिंता का विषय है। लेकिन राजनीतिक दलों को किसी भी गंभीर विषय पर तार्किक विमर्श करने की बजाय लोगों को अपने स्वार्थपूर्ति के लिए उकसाना होता है। आतंकी चरित्र के व्यक्तियों को बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दे से जोड़कर विपक्ष ने अपनी नीति और नीयत को साफ कर दिया है कि उसे बेरोजगारी से कोई लेना-देना नहीं है। उसका मकसद बेरोजगार युवाओं के कंधों पर चढ़कर सत्ता हासिल करना मात्र है।

संसद के बाहर की घटना में दो लोग शामिल थे। नीलम की उम 42 वर्ष है। वे बहुत नाराज़ हैं क्योंकि मोदी सरकार ने बेरोजगारी बढ़ा दी है। पर 2014 तक वे क्यों बेरोज़गार थीं? 32 साल की उम्र तक बेरोज़गार रहने पर उसे ग़ुस्सा नहीं आया। अनमोल की उम्र 25 साल है। लोकसभा में दर्शक दीर्घा से कूदा युवक सागर शर्मा सिर्फ 12वीं पास है। और दूसरे युवक मनोरंजन डी की उम्र 35 साल है। इस घटना का मास्टर माइंड बताये जा रहे ललित झा की उम्र 40 साल है। मोदी सरकार के सत्ता संभालने के समय वह 30 साल से ऊपर का हो चुका था। उसे नौकरी मिल जानी चाहिए थी। कांग्रेस पार्टी के युवा नेता राहुल गांधी बताएं कि ललित झा को यूपीए सरकार ने नौकरी क्यों नहीं दी, उसे बेरोजगार क्यों रखा? वैसे भी ललित बेरोजगार नहीं था। शिक्षक की नौकरी के साथ-साथ नीलाक्ष नाम के एनजीओ का महासचिव भी था।

संसद की सुरक्षा की चूक गंभीर मामला है। वो तो गनीमत है कि कोई अनहोनी नहीं हुई। इसमें रंच मात्र भी संदेह नहीं है कि संसद हमला भारत में अराजकता फैलाने का षड्यंत्र है। बेरोज़गारी से इसका कोई संबध नहीं है। केवल युवाओं ही नहीं आम आदमी से जुड़े हर मुद्दे पर राजनीतिक दलों को सकारात्मक राजनीति करनी चाहिए। सत्ता में रहते हुए उन मुद्दों के ठोस समाधान की दिशा में प्रयास करना चाहिए। केवल राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जनभावनाओं को भड़काना और देश में अराजकता का वातावरण पैदा करने की दूषित राजनीति से राजनीतिक दलों को बाज आना चाहिए।

-डॉ. आशीष वशिष्ठ

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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