Vishwakhabram: Modi-Meloni मुलाकात के ठीक बाद China को झटका देते हुए Italy हुआ BRI से बाहर, दुनिया बोली- मोदी है तो मुमकिन है

Modi Meloni
ANI

सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं लेकिन आइये जरा दोनों देशों के संबंधों के प्राचीन और हालिया इतिहास पर एक निगाह डालते हैं ताकि यह स्पष्ट हो सके कि दोनों देश क्यों दूर हुए थे और क्यों करीब आ रहे हैं।

इटली ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानि बीआरआई से बाहर निकलने का ऐलान किया तो सोशल मीडिया पर एक बार फिर ट्रेंड हुआ कि मोदी है तो मुमकिन है। हम आपको याद दिला दें कि इस साल सितंबर महीने में जब जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी भारत आईं थीं तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात से ठीक पहले चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग से मुलाकात की थी और इस मुलाकात के दौरान उन्हें यह संकेत देकर बड़ा झटका दे दिया था कि इटली चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट से बाहर निकलना चाहता है। इसके दो दिन बाद इटली ने चीन को एक और बड़ा झटका देते हुए ऐलान किया कि वह भारत-मध्य पूर्व और यूरोप की आर्थिक कॉरिडोर परियोजना में शामिल होगा। इसके बाद, अब दुबई में हाल में संपन्न COP28 बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेलोनी के साथ बैठक और दोनों नेताओं की सेल्फी वायरल होने के बाद इटली ने इस बात का औपचारिक ऐलान कर दिया कि वह बीआरआई प्रोजेक्ट से बाहर हो रहा है।

इटली क्यों चीन का साथ छोड़ रहा है और क्यों भारत के करीब आना चाह रहा है इसको लेकर सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं लेकिन आइये जरा दोनों देशों के संबंधों के प्राचीन और हालिया इतिहास पर एक निगाह डालते हैं ताकि यह स्पष्ट हो सके कि दोनों देश क्यों दूर हुए थे और क्यों करीब आ रहे हैं। 

भारत-इटली संबंधों के महत्वपूर्ण बिंदु

जहां तक भारत और इटली के प्राचीन संबंधों की बात है तो आपको बता दें कि दोनों देश विश्व की प्राचीन सभ्यताएं हैं और इनका संबंध 2,000 वर्ष पुराना है। भारत की आजादी से पहले भारत-इटली संबंधों के महत्वपूर्ण पड़ावों की बात करें तो इतिहास में उल्लेख मिलता है कि इतालवी बंदरगाह शहर महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र थे जिसके चलते भारत के व्यापारिक संबंध यहां से जुड़े। इसके अलावा, वेनिस के व्यापारी मार्को पोलो ने 13वीं शताब्दी में भारत की यात्रा के बाद अपने अनुभवों के बारे में काफी कुछ लिखा था। साथ ही, पिछली सदी में नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मई-जून 1926 में इटली का दौरा किया था। इस यात्रा की व्यवस्था रोम विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर कार्लो फॉर्मिची ने की थी। यही नहीं, दिसंबर 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन से लौटते समय महात्मा गांधी ने भी रोम का दौरा किया था। इतिहास की पुस्तकों में यह भी उल्लेख मिलता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताओं ने इतालवी क्रांतिकारी माज़िनी को भी खूब पढ़ा था। इसके अलावा, ब्रिटिश भारतीय सेना में कार्यरत भारतीय सैनिक द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और मुसोलिनी की सेना के खिलाफ लड़ते हुए इटली में तैनात थे। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत और इटली के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए और तब से दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आधिकारिक स्तर पर यात्राओं का नियमित आदान-प्रदान होता रहा है, जिसमें राष्ट्राध्यक्षों की कई यात्राएँ भी शामिल हैं।

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सोनिया-मनमोहन के कार्यकाल में इटली से भारत के संबंध विवादों में रहे

भारत और इटली के संबंधों में खराब दौर की बात करें तो आपको बता दें कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को 2012 में झटका लगा था जब दो इतालवी नौसैनिकों पर उस वर्ष फरवरी में दो भारतीय मछुआरों की हत्या का आरोप लगाया गया। उस समय नौसैनिक सल्वाटोर गिरोने और मासिमिलियानो लातोरे, केरल के तट पर एक इतालवी तेल टैंकर की सुरक्षा कर रहे थे, जब उन्होंने मछुआरों को ले जा रही नाव पर गोलीबारी की। नौसैनिकों ने कहा कि उन्होंने मछुआरों को समुद्री डाकू समझ लिया था। इटली ने तर्क दिया था कि मछुआरे एमवी एनरिका लेक्सी टैंकर से दूर रहने की चेतावनी पर ध्यान देने में विफल रहे थे। इस घटना के बाद दोनों इतालवी नौसैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया था और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया। उन्हें केरल से नई दिल्ली ले जाया गया और जब उनका मुकदमा चल रहा था तब वे इतालवी दूतावास परिसर में रुके थे। उस समय इटली के राजदूत को उनका गारंटर बनना पड़ता था। मामला तब तूल पकड़ गया, जब प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान अपने चुनाव अभियान में इस मुद्दे को उठाया। बाद में मुकदमा लंबित होने के कारण, दोनों इतालवी नौसैनिकों को इटली लौटने की अनुमति दी गई। 2015 में दोनों देश इस मामले को हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पीसीए) में ले गए। पीसीए ने इटली को "जीवन के नुकसान के लिए" भारत को मुआवजा देने का आदेश दिया और इटली द्वारा 100 मिलियन रुपये की राशि का भुगतान करने के बाद आख़िरकार, मामला 2021 में बंद कर दिया गया।

इसके अलावा, 2011-12 में दोनों देशों के संबंध तब तनावपूर्ण हो गये थे जब इटली सरकार समर्थित रक्षा कंपनी फिनमेकेनिका द्वारा कथित अनैतिक लेनदेन की इतालवी अटॉर्नी जनरल के कार्यालय ने जांच की। जांच के दौरान इस समूह की सहायक कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड द्वारा भारत के साथ हस्ताक्षरित 3,500 करोड़ रुपये से अधिक के सौदे में भ्रष्टाचार पाया गया। हम आपको बता दें कि 2010 में हुआ यह सौदा भारतीय वायुसेना को 12 AW-101 हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति का अनुबंध था। भ्रष्टाचार के आरोप सामने आने के बाद यह मुद्दा तेजी से भारत में राजनीतिक रूप से तूल पकड़ गया। सोनिया गांधी के इतालवी मूल ने भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने के लिए और अधिक हथियार दे दिए, जो उस समय पहले से ही भ्रष्टाचार के घोटालों से जूझ रही थी। इसके बाद अनुबंध रद्द होने और जून 2014 में इटली में कानूनी मामला जीतने के बाद भारत सरकार ने 2,000 करोड़ रुपये की गारंटी भुना ली जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया। हालांकि इतालवी अदालतों ने 2018 में अपर्याप्त सबूतों के आधार पर सभी आरोपों को खारिज कर दिया। साथ ही इतालवी अदालतों के फैसले को 2019 में इटली के सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था।

मोदी के कार्यकाल में इटली से भारत के संबंध सुधरे

भारत और इटली के संबंधों में सुधार लाने का काम 2018 से शुरू हुआ। जब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2-5 सितंबर 2016 को वेटिकन में मदर टेरेसा को संत घोषित करने संबंधी समारोह के लिए एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। उस दौरान उन्होंने अपने इतालवी समकक्ष पाओलो जेंटिलोनी से मुलाकात की और दोनों पक्षों ने राजनयिक संबंधों के 70वें वर्ष का जश्न मनाने का फैसला किया। 2018 में यह उत्सव सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला के माध्यम से मनाया गया। इसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिसंबर 2019 में रोम का दौरा किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री ग्यूसेप कोंटे से मुलाकात की। इसके बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इटली के पीएम कोंटे ने 6 नवंबर 2020 को भारत और इटली के बीच एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की। इसमें 2020-2025 कार्य योजना को अपनाया गया। इस दौरान देशों के बीच बढ़ी हुई साझेदारी के लिए महत्वाकांक्षी एजेंडा तय किया गया।

इसके बाद मोदी ने G20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अक्टूबर 2021 में इटली की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा की। शिखर सम्मेलन के मौके पर उन्होंने इटली के तत्कालीन प्रधान मंत्री मारियो ड्रेगी के साथ द्विपक्षीय बैठक की। इसके बाद, सितंबर 2022 में अपनी चुनावी जीत के बाद 2-3 मार्च 2023 को प्रधानमंत्री मेलोनी ने भारत की राजकीय यात्रा की। यह 5 साल के अंतराल के बाद इटली से भारत की पहली उच्च स्तरीय यात्रा थी। यात्रा के दौरान मेलोनी और मोदी ने हरित अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा और संक्रमण, रक्षा सह-उत्पादन और सह-नवाचार और नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर चर्चा की। मेलोनी की इस यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक ऊपर उठाना था। इस दौरान भारतीय और इतालवी स्टार्टअप कंपनियों के बीच एक स्टार्टअप ब्रिज भी स्थापित किया गया। यही नहीं मेलोनी रायसीना डायलॉग 2023 में मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता भी थीं। जब मेलोनी ने इस साल सितंबर में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए दोबारा दौरा किया तो दोनों पक्ष भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के लिए भी सहमत हो गये थे।

अब चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से बाहर निकलने के इटली के कदम ने संबंधों में एक नया रणनीतिक आयाम भी जोड़ा है। हम आपको यह भी बता दें कि इटली के साथ भारत का 2021-22 में 13.229 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 50% से अधिक की वृद्धि है। इस तरह इटली यूरोपीय संघ में भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। यही नहीं, भारत में 600 से अधिक बड़ी इतालवी कंपनियाँ सक्रिय हैं।

हम आपको यह भी बता दें कि रणनीतिक तौर पर इटली भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में साझेदारी करना चाहता है। 2016 में कॉर्पोरेट पुनर्गठन के बाद अगस्ता वेस्टलैंड का हेलीकॉप्टर डिवीजन के रूप में फिनमेकेनिका के नए नाम लियोनार्डो स्पा में विलय हो गया। इसके बाद तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने 7-9 जुलाई 2021 तक इटली का दौरा किया था। उनकी यात्रा 14 साल बाद हुई थी और रक्षा सेवा प्रमुख स्तर पर दोनों देशों के बीच बातचीत एक दशक से अधिक समय के बाद हुई थी। इस दौरान इतालवी रक्षा मंत्री ने भारत के साथ रक्षा संबंधों को फिर से शुरू करने की इच्छा से अवगत कराया। इटली के रक्षा राज्य मंत्री डॉ. माटेओ पेरेगो डि क्रेमनागो ने फरवरी 2023 में एयरो इंडिया शो में इतालवी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। इसके अलावा, इटली ने समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती विरोधी अभियानों का मुकाबला करने के लिए फरवरी 2023 में सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (आईएफसी-आईओआर) के लिए अपने दूतावास से एक अधिकारी को भी तैनात किया है।

बीआरआई से क्यों अलग हुआ इटली?

हम आपको याद दिला दें कि 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रोम यात्रा के दौरान इटली BRI में शामिल होने वाला पहला G7 देश बन गया था। इटली को उम्मीद थी कि चीन इतालवी उत्पादों के लिए एक बाजार के रूप में काम करेगा और चीनी निवेश इतालवी बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देगा। लेकिन बीआरआई इटली की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा बल्कि सारा लाभ चीन को हो गया। जबसे इटली BRI में शामिल हुआ, चीन को उसका निर्यात 14.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 18.5 बिलियन यूरो हो गया जबकि इटली को चीनी निर्यात कहीं अधिक बढ़ते हुए 33.5 बिलियन यूरो से 50.9 बिलियन यूरो का हो गया। इसी तरह, इटली में चीनी एफडीआई भी 2019 में 650 मिलियन डॉलर से घटकर 2021 में सिर्फ 33 मिलियन डॉलर रह गया। इन्हीं सब बातों को देख कर पिछले वर्ष ही मेलोनी ने संकेत दिया था कि बीआरआई में शामिल होना एक "बड़ी गलती" थी जिसे वह ठीक करना चाहती थीं। 

हालांकि चीन के साथ रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए इटली की विदेश मंत्री एंटोनियो ताज़ानी ने सितंबर में बीजिंग का दौरा किया था और राष्ट्रपति सर्जियो मैटरेल्ला अगले साल चीन का दौरा करने वाले हैं। मेलोनी ने भी खुद ही कहा है कि वह बीजिंग जाना चाहती हैं, लेकिन कोई तारीख तय नहीं हुई है। हम आपको बता दें कि मेलोनी एक रूढ़िवादी गठबंधन की प्रमुख हैं और एक प्रतिबद्ध नाटो समर्थक नेता के रूप में अपनी साख चमकाने के लिए उत्सुक हैं। बताया जाता है कि उन्होंने इस साल की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को आश्वासन दिया था कि इटली बीआरआई छोड़ देगा। हम आपको बता दें कि 2019 में इटली ने अमेरिका की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए बीआरआई में शामिल होने का निर्णय लिया था लेकिन अब वह इससे बाहर आ गया है और चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट से बाहर निकलने वाला पहला यूरोपीय देश बन गया है।

बहरहाल, जहां तक बीआरआई की बात है तो आपको बता दें कि भारत ने शुरुआत से ही चीनी राष्ट्रपति की इस परियोजना का विरोध किया है क्योंकि इसने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर भारत की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन किया है। भारत का यह भी मानना है कि चीन का यह प्रोजेक्ट दूसरे देशों की संप्रुभता का उल्लंघन करता है। भारत यह भी मानता है कि बीआरआई इस परियोजना में शामिल देशों को अनावश्यक रूप से कर्जदार बनाकर उनके संसाधनों पर कब्जा करने की चीनी साजिश है।

-नीरज कुमार दुबे

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