नीतीश कुमार ने बिना तैयारी के शराबबंदी लागू की इसीलिए सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे

Nitish Kumar
अशोक मधुप । Nov 29 2021 1:08PM

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी जिद के कारण मुख्यमंत्री बनते ही अप्रैल 2015 में प्रदेश में शराब की बिक्री पर रोक लगा दी। शराब एकदम से नहीं छोड़ी जा सकती। पीने वाले को नशे की लत लग जाती है। उसे उचित रास्ते से शराब नहीं मिलेगी तो वह अनुचित रास्ते निकालेगा।

बिहार में शराबबंदी लागू होने के बावजूद धड़ल्ले से शराब बिक रही है। दीपावली पर शराब से हुई 40 के आसपास मौत के बाद वहां से आ रही खबर शराबबंदी की असफलता की कहानी बताती है। पता चल रहा है कि शराब दुकान पर मिलनी बंद हुई तो उसकी होम डिलीवरी शुरू हो गई। पहले पीने वाले को दुकान पर जाना भी पड़ता था, अब तो घर पर ही मिलने लगी। शराब सर्वसुलभ हो गई। पीने वाले के द्वार पर ही पहुंचने लगी। सासाराम, रोहतास जिला के एक स्कूल का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें एक स्कूल में एक बच्चा रो−रो कर बता रहा है कि उसके पिताजी सारा पैसा शराब में खर्च कर देते हैं। इस कारण उन्हें पढ़ने के लिए किताब नहीं खरीद पा रहे हैं। यही बात उसकी बेटी भी शिक्षकों को बताती है।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी जिद के कारण मुख्यमंत्री बनते ही अप्रैल 2015 में प्रदेश में शराब की बिक्री पर रोक लगा दी। शराब एकदम से नहीं छोड़ी जा सकती। पीने वाले को नशे की लत लग जाती है।  उसे उचित रास्ते से शराब नहीं मिलेगी तो वह अनुचित रास्ते निकालेगा। चोर रास्ते खोजेगा। शराब के विकल्प तलाशेगा। होना यह चाहिए था कि शराबबंदी लागू करने से पहले शराबबंदी के बारे में प्रचार किया जाता। शराब के नुकसान बताने को अभियान चलाया जाता। जनता को जागरूक किया जाता। शराब के पीने से होने वाले नुकसान बताए जाते। उसके बाद शराबबंदी की जाती।

  

बुजुर्ग बताते हैं कि चीन के रहने वाले पहले अफीम का सेवन करते थे। इसीलिए चीन के रहने वालों (चीनियों) को अफीमची कहा जाता था। चीन की सरकार ने अफीम के इस्तमाल पर रोक लगाने का निर्णय लिया। कानून बनाया। कहा− अफीम का इस्तमाल करते मिले व्यक्ति को चौराहे पर फांसी दी जाएगी। उन्होंने कानून बनाया। उसे लागू नहीं किया। इस कानून के बारे में तीन साल तक प्रचार किया। गांव-गांव तक जानकारी दी। इसके बाद कानून लागू कर दिया। बुजुर्ग बताते थे कि अफीम का इस्तमाल किए मिले व्यक्ति को चौराहे पर फांसी दी गई। एक दर्जन के आसपास लोगों को भी फांसी नहीं लगी कि पूरे चीन ने अफीम का इस्तमाल बंद कर दिया।

     

2015 में नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन बनाकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा। उस वक्त पुरुषों की शराब की लत से परेशान महिलाओं ने पारिवारिक कलह, घरेलू हिंसा, शोषण व गरीबी का हवाला देते हुए राज्य में शराबबंदी की मांग की थी। नीतीश कुमार ने वादा किया कि अगर वे फिर सत्ता में आए तो शराबबंदी लागू कर देंगे। महिलाओं ने उन पर भरोसा किया। महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.92 से ज्यादा हो गया। कई क्षेत्रों में 70 फीसदी से अधिक महिलाओं ने मतदान किया। नीतीश विजयी हुए। सत्ता में लौटते ही राज्य में शराबबंदी की घोषणा कर दी। ये घोषणा सिर्फ चुनावी वादा पूरा करने के लिए की गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश से शराब की सरकारी बिक्री ही रूकी। ठेके बंद हो गए। शराब पीने वालों की मजबूरी को मुख्यमंत्री जी ने नहीं समझा। ठेके से मिलनी बंद हुई, उसकी बिक्री रूकी तो शराब का उत्पादन लघु−कुटीर उद्योग में तब्दील हो गया। सरकारी ठेके से मिलने वाली शराब विश्वसनीय होती है। वह सरकार के नियंत्रण में बनती और बिकती है। इसलिए उससे मौत की संभावना कम होती है। लघु−कुटीर उद्योग की बनी शराब की क्षमता और तेजी का पता नहीं होता। बनाने वाले कम पैसा लगाकर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं। कई बार वह बनाते समय यूरिया या स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक अन्य कैमिकल का प्रयोग करते हैं। परिणामस्वरूप पीने वालों की मौत होती है। दीपावली के आसपास हुई 40 के आसपास मौत भी इसकी ही देन है। शराब पर टैक्स से प्रदेश को बड़ी आय होती है। ये आय प्रदेश के विकास में काम आती है। आय तो हुई नहीं। शराब की बिक्री भी नहीं रूकी। चोर रास्ते से शराब बनने और बिकने लगी। हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुद घोषणा करनी पड़ी की वह शराब की होम डिलीवरी पर रोक लगाएंगे।

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एक सर्वे के मुताबिक, राज्य में करीब 29 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं। आंकड़े के हिसाब से देखें तो राज्य में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं। इसमें 40 लाख लोग ऐसे हैं जो आदतन शराबी हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2020 की रिपोर्ट के अनुसार शराबबंदी होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पीते रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं। महाराष्ट्र में शराब प्रतिबंधित नहीं है लेकिन शराब पीने वाले पुरुषों की तादाद 13.9 प्रतिशत ही है। शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब उपलब्ध है। यह बात दीगर है कि लोगों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है।

गुजरात में 1960 से शराबबंदी है। लेखक को 1990 के आसपास गुजरात जाना हुआ। प्रत्येक ब्रांड के मूल्य पर 20−30 रुपये ज्यादा देकर गुजरात में कहीं भी चाय की दुकान या पान की दुकान के पास शराब मिल जाती थी। बिहार की समीप लगे हैं− नेपाल और बांग्लादेश। उत्तर प्रदेश और झारखंड की सीमा भी बिहार से सटी है। इन चारों जगह शराब की खुली बिक्री होती है। यहां से आराम से शराब बिहार में सप्लाई हो रही है। बिहार में प्रतिबंध की अवज्ञा पर सख्त सजा के प्रावधान किए गए। यही वजह रही कि बीते चार साल में करीब दो लाख लोगों की शराबबंदी के उल्लंघन पर गिरफ्तारी हुई। करीब चार सौ से अधिक लोगों को सजा मिली। इतना सब होने के बाद भी बिहार में शराब का प्रयोग नहीं रूका। सीधे रास्ते से वहां शराब नहीं बिक रही तो चोर रास्ते से बिक रही है। बिक रही है और सरलता से उपलब्ध है।

बिहार के एक स्कूली छात्र का यह वीडियो बिहार की शराब की कहानी कहता है। सासाराम-रोहतास जिला के तिलौथू प्रखंड में वायरल वीडियो में एक स्कूल में बच्चा रो−रो कर बता रहा है कि उसके पिताजी सारा पैसा शराब में खर्च कर देते हैं। इस कारण वह पढ़ने के लिए किताब नहीं खरीद पा रहे हैं। वायरल वीडियो में दिख रहा है कि शिक्षक बच्चे से पूछ रहे हैं कि पिछले पांच दिनों से कहे जाने के उपरांत भी तुमने किताब क्यों नहीं खरीदी ? खास बात है कि वीडियो में बच्चे का पिता भी विद्यालय में मौजूद दिख रहा है। पिता के सामने बच्चा यह कबूल कर रहा है कि उसके पिता किताब खरीदने की जगह शराब में पैसा खर्च कर रहे हैं। वीडियो में बच्चे की एक बहन भी दिख रही है। उसने भी स्वीकार किया की कि सारा पैसा उसके पिताजी शराब में खर्च कर रहे हैं। इस सब घटनाओं का देखते हुए बिहार सरकार राज्य की जनता को कार्यक्रम आयोजित कर शराब न पीने की शपथ दिलाने का निर्णय लिया है। ये काम शुरू हो गया। पर अब तो शराबबंदी को छह साल हो गए। शराब के खिलाफ माहौल बनाने, जन जागरूकता लाने का काम तो शराबबंदी लागू करते ही किया जाना चाहिए था। माहौल तो शुरू में बनाया जाना चाहिए था। अब तो बहुत देर हो गई।

-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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