असली हीरो सैनिक, पर्दे के हीरो तो बातों से भी जीरो

जब कश्मीर के उरी सेक्टर में होता है तो सलमान खान, करण जौहर, सैफ अली खान जैसे लोगों का नजरिया बदल क्यों जाता है? जो भी पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम कर रहे हैं, क्या उनमें पाकिस्तानी आतंकियों की निंदा करने का साहस है?

अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का गलत फायदा उठाने वाले परदे के हीरोज को चुप ही रहना चाहिए, खासकर उन लोगों को तो ज़रूर जो फुटपाथ पर शराब पीकर लोगों को कुचल देते हों और उनके भीतर इतनी भी हिम्मत नहीं होती कि उसकी सजा भुगत सकें। उन लोगों को भी जो कानून के बाहर जाकर काले हिरण को गोली मार देते हैं और राजनेताओं के पैर पकड़ कर बचने की पुरजोर कोशिश करते नज़र आते हैं। शांति के नकली पैरोकार बनने वालों से सवाल वही पुराना है कि 'युद्ध' चाहता कौन है? क्या राम ने रावण से युद्ध चाहा था? क्या पांडवों ने दुर्योधन से युद्ध चाहा था? या फिर आज़ाद भारत ने कभी पाकिस्तान से युद्ध चाहा है? इन सबका जवाब आपको निश्चित रूप से 'नहीं' में ही मिलेगा। पर किसी के चाहने न चाहने के बावजूद भी युद्ध हुए हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। सामान्य हालात में हमारे देश भारत से पाकिस्तान फायदा उठाता रहा है, उसके कलाकार हमारे यहाँ कमाई करने आते रहे हैं किन्तु यही बात और हालात उस वक्त बदल जाते हैं जब हमारे देश पर कोई आतंकी हमला होता है। सरकार ऐसे वक्त में जो उचित समझती है वो करती है, किन्तु जब देश के सैनिक उरी हमले जैसे किसी आतंकी वारदात में शहीद हो जाएँ तो हम देशवासियों का क्या कर्त्तव्य होना चाहिए?

सैनिक सीमा पर कोई व्यक्तिगत लड़ाई तो लड़ नहीं रहे हैं? 26/11 मुम्बई अटैक में जब ताज होटल और दूसरी जगहों पर आतंकी हमला हुआ था तब तो बॉलीवुड एक सुर में आतंक की बुराई कर रहा था, पाकिस्तान को कोस रहा था, किन्तु वही हमला जब कश्मीर के उरी सेक्टर में होता है तो सलमान खान, करण जौहर, सैफ अली खान जैसे लोगों का नजरिया बदल क्यों जाता है? जो भी पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम कर रहे हैं, क्या उनमें पाकिस्तानी आतंकियों की निंदा करने का साहस है? अगर नहीं, तो आखिर क्यों नहीं माना जाना चाहिए कि उनकी सहानुभूति भी पाकिस्तानी सरकार और सेना की तरह हाफीज़ सईद और ओसामा बिन लादेन के साथ है? अब भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके मशहूर गायक अदनान सामी ने आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के लिए सेना के जवानों की प्रशंसा क्या की, ट्विटर पर तमाम पाकिस्तानी उनको कोसने लगे। आखिर में उनको भी लिखना पड़ा कि 'डियर पाकिस्तानियों, आप आतंक और पाकिस्तान को एक-दूसरे का पर्याय क्यों मानते हो'?

बॉलीवुड में कार्य कर रहे किसी पाकिस्तानी कलाकार में अगर साहस है कि वह पाकिस्तान प्रायोजित आतंक की निंदा कर सके, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा चिन्हित आतंकियों की निंदा कर सके तो निश्चित रूप से उनके साथ कुछ सहानुभूति दिखलाई जा सकती थी, किन्तु ऐसा तो होने से रहा! सलमान खान सहित और कलाकार कहते फिर रहे हैं कि सरकार ने उन्हें वीजा, वर्क-परमिट दिया है तो भईया आपको समझना चाहिए कि सरकार के पास तमाम किन्तु-परंतु होते हैं। अगर व्यक्तिगत रूप से भारतीय नागरिक होने के बावजूद आपको अपने सैनिकों की मौत पर अपनी जिम्मेदारी समझ नहीं आती है तो फिर मत कीजिये बयानबाजी और शराब पीकर अपना गम गलत करते रहिये। आप चूंकि बॉलीवुडिया हीरो हैं, इसलिए अपनी गाड़ी सड़क पर सो रहे गरीबों पर भी चढ़ा दीजिये और पहुँच और पैसे से 2 मिनट में ज़मानत भी ले लीजिये। आपकी नज़रों में देश के गरीब नागरिक या जवानों की शहादत की कोई कीमत नहीं हो सकती है, तो ऐसी सोच और कला के प्रति ऐसा समर्पण आप ही को मुबारक हो! पर यह सोच लीजियेगा कि अगर आतंकवादी फिर आपके घर में हमला करते हैं, तो फिर अपनी एक्टिंग से उन्हें समझा लीजियेगा। अपनी बेल्ट हिला कर या फिर कॉलर के पीछे चश्मा लगाकर 'हुड़ दबंग, दबंग कर दीजियेगा ...'! क्या पता आपके भीतर सच्चे कलाकार और कला के प्रति अथाह समर्पण को देखकर आतंकियों का हृदय परिवर्तन हो जाए।

आतंकी हमले के समय पाकिस्तानी कलाकारों का पक्ष लेने वाले अन्य नकली हीरोज को भी यह समझ लेना चाहिए कि किसी घर में बेशक एक अपराधी हो, किन्तु बदनामी और दबाव पूरे घर पर होता है। उस अपराधी के माँ-बाप, भाई, रिश्तेदार, मित्र सभी सामाजिक बहिष्कार का शिकार होते हैं और इसीलिए कई माँ बाप ऐसे अपराधी बेटों से प्रत्यक्ष रूप से नाता तक तोड़ लेते हैं। दुर्भाग्य से पाकिस्तान और 99.99 फीसदी पाकिस्तानी ऐसे हैं जो ओसामा बिन लादेन, हाफीज़ सईद, अज़हर मसूद, हक्कानी नेटवर्क, तालिबानी आतंकियों को अपनी ताकत मानते रहे हैं और उनसे नाता तोड़ना तो दूर, उनकी निंदा करने से भी परहेज करते हैं। पाकिस्तानी कलाकार भी इसी नीति को फॉलो करते हैं और इसलिए उनका बहिष्कार हर हाल में किया जाना चाहिए। सरकार को छोड़िये, जो वह सोचेगी करेगी, किन्तु हम भारतीय नागरिकों को इस मामले में ज़रा भी संकोच या दुविधा नहीं रहनी चाहिए। अमिताभ बच्चन ने अपने एक बयान में कहा था कि जब मुम्बई में आतंकी हमला हुआ था, उसके बाद से वह डरकर अपनी तकिये के नीचे 'रिवाल्वर' रखकर सोते थे। समझना मुश्किल नहीं है कि न केवल अमिताभ बच्चन, बल्कि सवा सौ करोड़ भारतवासियों को इस प्रकार के डर से मुक्ति दिलाने वाले हमारे सैनिक ही हैं। उरी, मुम्बई, दिल्ली, केरल, हैदराबाद, अहमदाबाद से लेकर कोलकाता और हर भारतीय शहरों और गाँवों के लोगों के असली रक्षक यही सैनिक हैं। इन्हीं के कारण बॉलीवुड में कोई 'हुड़ दबंग, दबंग...' गा पाता है तो कोई व्यापारी अपनी दूकान खोल पाता है। इन्हीं की चौकसी से बच्चे स्कूल जाकर पढ़ाई कर पाते हैं तो संसद में बैठकर नेता अपनी नेतागिरी कर पाते हैं। अगर इन वाक्यों में किसी को अतिशयोक्ति लगे तो उसे अफगानिस्तान, सीरिया, इराक जैसे मुल्कों पर एक नज़र डाल लेनी चाहिए। इसलिए फिल्म निर्माताओं की संस्था 'इम्पा' द्वारा अपनी 87वीं सालाना बैठक में पाकिस्तानी कलाकारों को भारतीय फिल्मों में काम न देने का प्रस्ताव ठीक ही पारित किया गया है।

अपने अभिनय से लोहा मनवाने वाले अभिनेता नाना पाटेकर ने भी इस मामले में सटीक बयान दिया है और कहा है कि "हमारे असली हीरो जवान हैं, हम तो बहुत मामूली और नकली लोग हैं, हम जो बोलते हैं उस पर ध्यान मत दो।" सलमान खान जैसे पाकिस्तानी कलाकारों के समर्थन की आलोचना करते हुए पाटेकर ने पत्रकारों से कहा कि "हम जो पटर-पटर करते हैं उस पर ध्यान मत दो, इतनी अहमियत मत दो किसी को, उनकी औक़ात नहीं है उतनी अहमियत की।" सच ही तो है, इस देश में बॉलीवुड के किसी नकली हीरो या किसी भी क्षेत्र के किसी छोटे-बड़े व्यक्ति या संस्था की औकात नहीं है कि वह सैनिकों की शहादत पर कुछ बोल सके। हमारी सेना सर्वोपरि है, वह युद्ध के लिए युद्ध नहीं करती है, बल्कि हम शांति से रह सकें, सुख-चैन से रह सकें इसलिए अपना बलिदान करती है। फ़िल्मी हीरो के बगैर हमारा 'देश' रह सकता है, किन्तु असली हीरो यानि 'भारतीय सैनिकों' के बिना यह देश अपनी कल्पना भी नहीं कर सकता। इसलिए कला, व्यापार, अधिकार सब बातें हैं... और बातें तभी की जा सकती हैं जब आप सुरक्षित हों! मनोरंजन तभी अच्छा लगता है, जब आप सुकून से हों... इसलिए सलमान, सैफ, करण और दूसरे कलाप्रेमियों को, जो पैसे लेकर नाचते गाते हैं, पैसे लेकर गुटखे-शराब का विज्ञापन करते हैं, कानून तोड़ते हैं, काले हिरण मारकर कानून से आँख-मिचोली खेलते हैं, जरूर सोचना चाहिए कि उनके सुकून और सुरक्षा के लिए सीमा पर कौन खड़ा है?

- मिथिलेश कुमार सिंह

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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