चुनाव लड़ने के लिए ये तो करना ही पड़ेगा...

these-things-happen-in-elections
संतोष पाठक । May 18 2019 12:49PM

राजनीतिक स्तर पर पीएम मोदी के भाषणों को लेकर चाहे जितनी आचोलना की जाए लेकिन यह बात तो बिल्कुल साफ है कि 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहने वाले मनमोहन सिंह के हाथ में सक्रिय तौर पर पार्टी की कमान नहीं थी। यानी कांग्रेस को चुनावों में जीत दिलाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी और बाद में राहुल गांधी पर आ गई।

विरोधी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह आरोप लगाते रहते हैं कि मोदी हमेशा चुनावी मोड़ में रहते हैं। आरोप लगाते-लगाते विरोधी यहां तक बोल जाते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने और प्रधानमंत्री बनने के बावजूद भी मोदी चुनाव प्रचार के मोड़ में ही रहते हैं। संसद हो या कोई सार्वजनिक कार्यक्रम या फिर किसी भी राज्य में सरकारी कार्यक्रम मोदी हमेशा चुनावी सोच को ही ध्यान में रखते हुए अपनी सरकार की प्रशंसा करते हैं और विरोधी दलों पर तीखें हमले करते रहते हैं। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता विदेशी धरती पर पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकार और उनके प्रधानमंत्रियों पर राजनीतिक हमला बोलने को लेकर पीएम की आलोचना कर चुके हैं। 

इसे भी पढ़ें: चुनाव के बाद केंद्र में कैसी सरकार बनेगी ?

सक्रिय प्रधानमंत्रियों का इतिहास

राजनीतिक स्तर पर पीएम मोदी के भाषणों को लेकर चाहे जितनी आचोलना की जाए लेकिन यह बात तो बिल्कुल साफ है कि 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहने वाले मनमोहन सिंह के हाथ में सक्रिय तौर पर पार्टी की कमान नहीं थी। यानी कांग्रेस को चुनावों में जीत दिलाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी और बाद में राहुल गांधी पर आ गई। यही वजह थी कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में भले ही कितना भी काम करते दिखाई दिए हो लेकिन एक नेता के तौर पर वह बहुत ज्यादा सक्रिय कभी नजर नहीं आए क्योंकि पार्टी की कमान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी सूरत में उनके हाथ में नहीं थी। कांग्रेस के पहले की सरकारों में इस तरह के हालात नहीं थे। जवाहर लाल नेहरू हो या इंदिरा गांधी या फिर राजीव गांधी.. ये तीनों दिग्गज सरकार के साथ-साथ पार्टी के भी सर्वे-सर्वा थे। सरकार चलाना भी इनकी जिम्मेदारी थी और पार्टी का अध्यक्ष कोई भी रहा हो, पार्टी को जीत दिलाना भी इनकी प्राथमिक जिम्मेदारी थी। हालांकि इन तीनों कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों की सक्रियता बनाम वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी की सक्रियता के तुलनात्मक अध्ययन को लेकर राजनीतिक विवाद पैदा हो सकता है लेकिन यहां कुछ बातें तो बिल्कुल साफ है । 

अमित शाह ने किया चुनावी रणनीति का खुलासा

2014 में राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में दिल्ली की राजनीति की शुरूआत करने वाले नरेंद्र मोदी आज गुजरात के अपने पुराने सहयोगी अमित शाह की अध्यक्षता में चुनावी जीत हासिल करने के मिशन में लगे हुए हैं। राजनीतिक बयानबाजी को लेकर चाहे जितने आरोप लगाए जाए लेकिन एक बात तो बिल्कुल साफ-साफ नजर आ रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने लोकसभा चुनावी अभियान को इतने बड़े स्तर तक पहुंचा दिया है कि भविष्य में तमाम राजनीतिक दलों के लिए यह चुनौती बन गया है। अमित शाह को वैसे भी चुनावी राजनीति और बूथ प्रबंधन का मास्टर माना जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने कितने बड़े स्तर पर तैयारी की थी , इसका खुलासा खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को पार्टी मुख्यालय में पत्रकारों के साथ बातचीत में किया । इस प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। 

इसे भी पढ़ें: वैचारिक मतभेद लोकतंत्र का श्रृंगार है, कटुता व बदजुबानी उसके दुश्मन

लोकसभा चुनाव 2019– बनते रिकॉर्ड 

विधानसभाओं और लोकसभा में तीन हजार से ज्यादा विस्तारक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में लगभग डेढ़ वर्षों से काम कर रहे थे। 899 संगठनात्मक जिलें, 11427 मंडल, 863661 बूथ तक बीजेपी के कार्यकर्ता लगे हुए थे, संगठन बना दिया गया था। चुनावी प्रचार अभियान के दौरान मोदी है तो मुमकिन है, फिर एक बार मोदी सरकार, मैं भी चौकीदार जैसे 14 प्रमुख अभियान चलाए गए। मेरा बूथ सबसे मजबूत, मेरा परिवार भाजपा परिवार, कमल संदेश बाइक रैली, कमल ज्योति संकल्प जैसे अभियानों में बीजपी ने अपने लाखों-करोड़ो कार्यकर्ताओं और नेताओं को देशभर में आक्रामक अंदाज में उतार दिया था और इसकी योजना काफी पहले ही दिल्ली में बैठ कर तैयार कर ली गई थी, जिसकी तरफ पीएम मोदी ने इशारा भी किया। 

जरा इन आंकड़ो पर गौर कीजिए 2 करोड़ 38 लाख लोगों से संकल्प पत्र बनाने के लिए सुझाव लिए गए। देशभर में संपर्क हेतू 161 संवाद केन्द्र बनाए गए और यहां से 15682 लोगों ने 24.81 करोड़ लाभार्थियों से संपर्क किया, 9.38 करोड़ एसएमएस भेजे गए। जबकि पिछली बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी को देश भर में कुल मिलाकर 17 करोड़ के लगभग ही वोट मिले थे।   

इसे भी पढ़ें: सोची−समझी साजिश का हिस्सा होते हैं नेताओं के विवादित बयान

प्रधानमंत्री ने स्वयं 142 जनसभा और 4 रोड शो के जरिए 1.5 करोड़ लोगों के साथ सीधा संवाद किया। मंच के नीचे पार्टी के 10 हजार से अधिक वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया, बातचीत की। एक लाख किलोमीटर से ज्यादा की हवाई यात्रा की। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 312 लोकसभा सीट पर जनसभा को संबोधित किया। राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज के अलावा योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के तमाम मुख्यमंत्रियों के सहयोग से अमित शाह ने आक्रामक चुनावी प्रचार अभियान चलाया।

बीजेपी का व्यापक चुनावी अभियान बना अन्य राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती

ये तमाम आंकड़े अमित शाह के दावों को सही ठहराते हैं कि इस देश  में इससे पहले कभी भी इतने बड़े स्तर पर चुनावी अभियान नहीं चलाया गया। जनता का आदेश तो 23 मई को आ ही जाएगा लेकिन बीजेपी के इस चुनावी अभियान ने अब तमाम राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के सामने यह चुनौती तो पैदा कर ही दी है कि वो बीजेपी के स्तर का चुनावी अभियान का खाका पहले से ही तैयार कर ले आगामी चुनावों के लिए। 

2014 में नरेंद्र मोदी ने यह दिखाया था कि सोशल मीडिया के सहारे भी चुनाव लड़ा जा सकता है और जीता जा सकता है। 2019 में मोदी-शाह की जोड़ी ने यह दिखाया कि राष्ट्रीय स्तर पर तमाम संसाधनों, नेताओं और आधुनिक उपलब्ध संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर किस तरह से चुनावी अभियान को इतनी ऊंचाई पर पहुंचाया जा सकता है कि बाकि दल दूर कहीं पीछे छूटते नजर आए।

- संतोष पाठक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़