नंदकिशोर गुर्जर का मामला दर्शाता है कि भाजपा अपने विधायकों की सुन नहीं रही है

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अजय कुमार । Dec 20 2019 4:36PM

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सप्ताह में एक दिन विधायकों से मिलने के लिए तय कर रखा था। सरकार बनने के शुरूआती दिनों में तो यह सिलसिला ठीकठाक चला, लेकिन मुख्यमंत्री की व्यस्तता व बाहरी दौरों के चलते धीरे−धीरे मेल−मिलाप का दौर इतिहास बन गया।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमेशा यह आरोप लगते रहते हैं कि उनके राज में 'अफसरशाही' अन्य दलों की बात तो दूर स्वयं भारतीय जनता पार्टी के जनप्रतिनिधियों की भी नहीं सुनती है। यूपी में ऐसा क्यों हो रहा है, जहां अफसरशाही के सामने जनप्रतिनिधि 'बौना' साबित हो रहा है, जब कभी इसकी वजह तलाशी गई तो इसके पीछे कहीं न कही योगी जी का चेहरा ही सामने नजर आया। लेकिन जब योगी जी से इस संबंध में सवाल पूछा जाता तो वह यह बात टाल देते या खंड़न कर देते।

उधर, भारतीय जनता पार्टी के सांसद, विधायक, पार्षद और पंचायत स्तर तक के प्रतितिनिधि नाराजगी होते हुए भी डर के मारे चुप्पी साधे रहते, इसलिए पार्टी के भीतर कहीं कोई हो हल्ला नहीं होता था। ऐसे में पहले लोनी से बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर का गाजियाबाद पुलिस से नाराजगी का मामला उसके बाद हरदोई के गोपामऊ सीट से बीजेपी विधायक श्याम प्रकाश की यह मांग की किसानों, कर्मचारियों और अधिकारियों की तर्ज पर विधायकों का भी संगठन बनना चाहिए, कहना यह संकेत देता है कि योगी सरकार में सब कुछ ठीक−ठाक नहीं चल रहा है। हालांकि गुर्जर ने जिस तरह से अपनी नाराजगी जाहिर करके विरोधियों को राजनीति करने का मौका प्रदान कर दिया था, उस पर वह अब खेद व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन वह विरोधियों की सियासत का मोहरा तो बन ही गए।

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उत्तर प्रदेश में अपनी ही सरकार से नाराज बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर के गुस्से का आलम यह था कि गुर्जर शीतकालीन विधान सभा सत्र शुरू होने के पहले ही दिन धरने पर बैठ गए। उस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा सदन में नहीं थे, इतना ही नहीं सदन में गुर्जर के समर्थन में बीजेपी और विपक्ष के तमाम विधायक भी धरने पर बैठ गए। विधायक की इस मांग का समर्थन लगभग 170 विधायकों ने किया। इसमें बीजेपी और विपक्ष के तमाम विधायक शामिल थे। यह जनप्रतिनिधि जब 'विधायक एकता जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे, उस समय ऐसा लग रहा था, जैसे योगी सरकार के मंत्रियों को सांप सूंघ गया हो। नाराजगी का हाल यह था कि विधायकों ने डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा की भी बात नहीं सुनी।

बहरहाल, विधान सभा में इस सियासी ड्रामे से योगी सरकार को जो नुकसान हुआ था, उसकी भरपाई करने के लिए पूरा संगठन और सरकार एक्टिव हो गयी। सबसे पहले झारखंड से चुनाव प्रचार करके लौटे योगी आदित्यनाथ से नाराज विधायक नंद किशोर गुर्जर की मुलाकात कराई गई। इसके बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने भी विधायक से मुलाकात की। इस दौरान नंदर किशोर गुर्जर ने प्रदेश अध्यक्ष और योगी आदित्यनाथ से अपनी पीड़ा बयां की। गुर्जर ने बीजेपी के कुछ नेताओं के साथ−साथ पुलिस अधिकारियों पर उनके खिलाफ साजिश रचने और बेइज्जत करने का आरोप लगाया।

दरअसल, नंदकिशोर गुर्जर ने खाद्य सुरक्षा अधिकारी से गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस के आसपास मांस−मछली की दुकानों को लाइसेंस न देने का आग्रह किया था, क्योंकि कई मिग विमान पहले भी पक्षियों से टकरा चुके थे। विधायक का आरोप था कि उनके आग्रह पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके चलते विवाद हुआ था। इस मुद्दे पर विधायक का पहले खाद्य सुरक्षा अधिकारी से विवाद हुआ, फिर जिले के पुलिस अधिकारी भी खाद्य सुरक्षा अधिकारी के समर्थन में आ गए, जिससे बात बिगड़ गई। इसके उलटा गाजियाबाद पुलिस ने नंदकिशोर गुर्जर के पुराने आपराधिक रिकॉर्ड को देखते हुए विधायक और उनके समर्थकों के खिलाफ ही कार्रवाई कर दी। यह बात विधायक को नागवार गुजरी।

खैर, यह सब चल ही रहा था, इसी बीच एक और ट्वीट ने योगी सरकार की धड़कनें बढ़ा दीं। हरदोई के गोपामऊ सीट से बीजेपी विधायक श्याम प्रकाश ने किसानों, कर्मचारियों और अधिकारियों की तर्ज पर विधायक संगठन बनाने की अजीबोगरीब मांग करके अपनी ही सरकार की धड़कनें तेज कर दीं। इसके बाद योगी की कोशिशों से काफी कुछ कंट्रोल तो हो गया, लेकिन योगी सरकार को नसीहत भी मिल गई कि संगठन की अनदेखी करके कोई सरकार नहीं चल सकती है। हरदोई के गोपामऊ से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश ने विधायकों की यूनियन बनाने का सुझाव दिया है। बुधवार को श्याम प्रकाश ने फेसबुक पर लिखा कि चपरासी से आईएएस, होमगार्ड से आईपीएस, सभी विभागों के अधिकारी, कर्मचारी, किसान, व्यापारी आदि सबके संगठन हैं। विधायकों को भी अपने अस्तित्व व अधिकारों की रक्षा के लिए यूनियन बनानी चाहिए। क्योंकि, आज राजनीति में विधायक ही सबसे कमजोर कड़ी बन गए हैं।

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यह सब तब हुआ जबकि संगठन से जुड़े नेताओं और जनप्रतिनिधियों की बात सरकार तक पहुंच सके, इसके लिए सीएम योगी ने मंत्रियों का समूह बना रखा था। एक मंत्री की अगुआई में 12−12 विधायकों का समूह बना था, लेकिन यह मंत्री कैसे पार्टी नेताओं और जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक और संवाद करते इस ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उक्त मंत्री ही अगर विधायकों की बात ठीक से सुनकर आगे बढ़ा देते तो ऐसी स्थिति कभी नहीं पैदा होती। बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कि जाए तो उन्होंने भी सप्ताह में एक दिन विधायकों से मिलने के लिए तय कर रखा था। सरकार बनने के शुरूआती दिनों में तो यह सिलसिला ठीकठाक चला, लेकिन मुख्यमंत्री की व्यस्तता व बाहरी दौरों के चलते धीरे−धीरे मेल−मिलाप का दौर इतिहास बनकर रह गया। योगी सरकार के दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कई नए चेहरे जुड़े, नए विधायक मंत्री बने, लेकिन उसके बाद विधायक व मंत्रियों के समूह का नए सिरे से अब तक गठन भी नहीं किया गया।

बात विधायकों की कि जाए तो उनका कहना था कि हम अपने पत्र पर जिस अधिकारी या कर्मचारी की उच्च स्तर पर शिकायत करते हैं, उसी के पास जांच पहुंच जाती है। न तो प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जाता है और न ही सम्मान का। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान भी विधायकों ने अफसरों के बेलगाम रवैये की शिकायत की। सीएम ने इसके लिए आवश्यक निर्देश का आश्वासन भी दिया था, मगर बात आगे बढ़ नहीं पाई। अब विधानसभा में फजीहत के बाद सरकार को संगठन से संवाद की याद आई है। इसी क्रम में संगठन के शीर्ष पदाधिकारी विधायकों का दुख−दर्द बांटने में जुटे दिखे तो सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद करीब दो दर्जन विधायकों से व्यक्तिगत मुलाकात की। विधायकों को आश्वस्त किया गया है कि उनकी अपेक्षा से संगठन और सरकार को अवगत कराएगा। 

-अजय कुमार

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