योगी का भगवा-राज अर्थात ‘सफेद-आतंकियों’ पर गाज

मनोज ज्वाला । Mar 29 2017 11:51AM

देश-दुनिया के वैचारिक वायुमण्डल में बदलाव की तरंगें तेजी से तरंगित हो रही हैं। रामकृष्ण परमहंस के जन्म से १७५ साल बाद का संधिकाल समाप्त होने के साथ वर्ष-२०११ से ही परिवर्तन की यह प्रक्रिया अंधे को भी साफ दिखने लगी है।

नियति का परिवर्तन-चक्र अपनी रीत-नीति व गति से ऐसे चल रहा है, जैसे किसी अतिक्रमण-ग्रस्त इलाके में स्थित मकानों-दुकानों-भवनों को ढाहते-रौंदते हुए कोई बुल्डोजर कहर बरपा रहा हो। महर्षि अरविन्द और युग-ऋषि श्रीराम शर्मा के कथ्य बिल्कुल सत्य घटित हो रहे हैं। भारत फिर से खड़ा हो रहा है, अनीति-अन्याय पर आधारित अवांछित स्थापनायें नीति-न्याय की प्रखर-प्रज्ञा के जागरण से ध्वस्त हो रही हैं। देश-दुनिया के वैचारिक वायुमण्डल में बदलाव की तरंगें तेजी से तरंगित हो रही हैं। रामकृष्ण परमहंस के जन्म से १७५ साल बाद का संधिकाल समाप्त होने के साथ वर्ष-२०११ से ही परिवर्तन की यह प्रक्रिया अंधे को भी साफ दिखने लगी है।

“सनातन धर्म (हिन्दूत्व) ही भारत की राष्ट्रीयता है” यह सत्य अनायास ही प्रमाणित होता जा रहा है और यह राष्ट्रीयता अंगडाई लेती हुई दिख रही है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर साम्प्रदायिक (मुस्लिम) तुष्टिकरण करते हुए अनर्थ बरपाने वाली राजनीतिक शक्तियों और उनके चट्टे-बट्टे बुद्धिबाजों के द्वारा अछूत घोषित कर जिस नरेन्द्र मोदी को राजनीति से ही मिटा देने के बाबत ‘भगवा आतंक’ जैसे षड्यंत्र क्रियान्वित कर साधु-महात्माओं-साध्वी-संतों-योगियों-संयासियों तथा तमाम राष्ट्रवादी संगठनों व उनसे सम्बद्ध लोगों को कठघरे में खड़ा किया जा रहा था, उन्हीं नरेन्द्र मोदी के हाथों में देश की केन्द्रीय सत्ता की बागडोर आ जाने के बाद से समस्त धर्मनिरपेक्षतावादियों की जमात शोक-संतप्त है। मोदी के हाथों सत्ता गवां देने की शोकाकुलतावश ‘असहिष्णुता में वृद्धि’ व ‘अभिव्यक्ति पर पाबंदी’ का विलाप करती हुई यह जमात ‘सम्मान वापसी’ और ‘तरह-तरह की आजादी’ जैसे एक से एक प्रहसनों से दिल बहलाने में लगी हुई थीं कि इसी बीच देश के सभी सियासी सवालों का जवाब देने वाले उतर प्रदेश में उसी भगवाधारी हिन्दूत्ववादी योगी का राज कायम हो गया, जिसे इन लोगों ने ‘भगवा आतंक’ नामक अपने षड्यंत्र की परिधि में लाकर स्वयं का ‘सफेद आतंक’ बरपाया हुआ था।

यु०पी०ए० के दूसरे शासनकाल में कांग्रेस के कथित युवराज ‘पप्पू’ को भारत का ‘भावी सम्राट’ बनाने के निमित्त सोनिया माइनों-दरबार के ढोलचियों-तबलचियों द्वारा मुस्लिम वोट्बैंक रिझाने-बटोरने के बाबत जिहादी आतंक पर पर्दा डालने और हिन्दू संगठनों को कठघरे में ढकेलने हेतु रचे गए ‘भगवा आतंक’ नामक राजनीतिक-रणनीतिक षड्यंत्र का पर्दाफाश करने के लिए तब एक पुस्तक ही लिख डाली थी मैंने- “सफेद आतंक; ह्यूम से माइनों तक”। इस पुस्तक में मुस्लिम-तुष्टिकरणवादी धर्मनिरपेक्षता के झण्डाबरदारों को ‘सफेद आतंकी’ प्रमाणित करने वाले उन तथ्यों को रेखांकित-विश्लेषित किया गया है, जिनके कारण ही उतर प्रदेश में अभी-अभी सत्ता-परिवर्तन हुआ है।

  

मालूम हो कि एक से बढ़ कर एक लगातार घटित जिहादी आतंकी घटनाओं में मुस्लिम आतंकियों के आरोपित होते रहने तथा मुसलमानों के वोट-बैंक पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लोभवश उन आतंकियों का बचाव करने के बाबत मालेगांव बम-धमाका व समझौता एक्सप्रेस विस्फोट-काण्ड की जांच को प्रायोजित करते हुए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व स्वामी असीमानन्द जैसे साध्वी-संतों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों एवं विहिप कार्यकर्ताओं व भाजपा-नेताओं को अभियुक्त बनाते हुए ‘भगवा आतंक’ नामक फिल्म की तैयार की गई पटकथा उन्हीं दिनों तार-तार हो गई थी, जब उसी मामले में योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार करने गोरखपुर गई ए०टी०एस० टीम की झूठ को नंगा कर देने की चुनौतीपूर्ण हुंकार भर दी थी इस युवा योगी ने।

  

देश भर में संघ-भाजपा व हिन्दूवादी संगठनों के विरूद्ध प्रचारित-प्रसारित तथाकथित ‘भगवा आतंक’ नामक आसमानी-सुल्तानी कांग्रेसी ‘तीर का तुक्का’ तो बीतते समय के साथ स्वतः बेतुका हो गया, किन्तु उसका ईजाद करने वाले ‘सफेद-आतंकियों’ का आतंक केन्द्रीय सता पर नरेन्द्र मोदी के आसीन होने के बावजूद पूरे देश में विशेष कर उतर प्रदेश में बढ़ता ही गया था। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा-चुनाव के दौरान अखिलेश को राजनीति का पाठ पढ़ाने वाले उनके पिता मुलायम सिंह ने अपनी समाजवादी पार्टी के घोषणा-पत्र में बाजाब्ता यह घोषणा कर रखी थी कि उनकी सरकार बनने पर जेल में बन्द सारे मुसलमानों पर से वे सारे आपरधिक मुकदमे उठा लेंगे। हुआ भी यही, उनकी सरकार बनने के बाद दोनों पिता-पुत्र ने लखनऊ, वाराणसी, फैजाबाद, बाराबंकी आदि शहरों में दिन-दहाड़े कचहरी परिसर में बम-विस्फोट करने वाले आतंकियों को ‘निर्दोष मुसलमान’ कह कर उनकी रिहाई के लिए प्रशासन को फरमान जारी करते हुए सम्बन्धित न्यायालयों में अर्जियां दाखिल कर-करा दिए थे। प्रतिबंधित इस्लामी संगठन- ‘हुजी’ का एक आतंकी जब स्वाभाविक हृदयाघात के कारण मर गया तब उसके परिजनों को सरकारी खाजाने से पच्चीस लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान कर मुस्लिम-तुष्टिकरण के लिए पुलिस के तत्कालीन डी०जी०पी० सहित सात पुलिसकर्मियों को बेवजह निलम्बित कर रामपुर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल पर हमला करने वाले आतंकियों पर से मुकदमे वापस लेने के बाबत एड़ी-चोटि एक कर दी थी इन बाप-बेटों ने। तब अदालत के एक न्यायाधीश ने उनकी ऐसी करतूतों पर बड़ी तल्ख टिप्पणी की थी- “मुकदमा-वापसी के बाद आतंकियों को पद्मश्री मिलेगा क्या” ? ‘सिमी’ से सम्बद्ध आतंकी- शाहिद बद्र के विरूद्ध बहराइच न्यायालय में चल रहे देश-द्रोह के मुकदमे को वापस लेने तथा नदुआ मदरसा से अबू बकर नामक आतंकी को गिरफ्तार करने वाले पुलिसकर्मियों को भी निलम्बन की सूली पर चढ़ा कर आतंक-रोधी ‘टाडा’ कानून को समाप्त कराने के लिए विधानसभा से संसद तक अभियान चलाने वाले मुलायम-अखिलेश के ऐसे-ऐसे काम ही चुनाव में सिर चढ़ कर बोल रहे थे।

धर्मनिरेपेक्षता के नाम पर सम्प्रदाय विशेष (मुसलमान) का तुष्टिकरण करते हुए सपाई मुलायम अखिलेश ने पूरे प्रदेश की शासन-व्यवस्था का ऐसा हाल कर रखा था कि वहां का बहुसंख्यक समाज घुटन महसूस कर रहा था। मंदिरों पर से लाउडस्पीकर उतरवा देने एवं मस्जिदों-मदरसों पर तमाम तरह की अनावश्यक सुविधाओं की भी झड़ी लगा देने तथा कब्रिस्तानों के लिए सरकारी खजाने से पानी की तरह पैसे बहाते रहने और मुस्लिम आतंकियों-अपराधियों को सरकारी संरक्षण देने, किन्तु हिन्दुओं के मौलिक अधिकारों का भी हनन करते रहने वाली समाजवादी धर्मनिरपेक्षता वास्तव में एक तरह का ‘सफेद आतंक’ ही था, जो वहां सत्ता-परिवर्तन का असली कारण बना। नाम से समाजवादी, किन्तु काम से ‘नमाजवादी’ पार्टी के अखिलेश-मुलायम यादव हों अथवा बसपा की मायावती, सब के सब साम्प्रदायिक तुष्टिकरणवादी धर्मनिरपेक्षता की अपनी-अपनी ऐसी-तैसी दुकानें ऐसे ही चलाते रहे थे। जाहिर है, उनकी ये सियासी दुकानें राष्ट्रीय एकता-अस्मिता-सम्प्रभुता का अतिक्रमण करने एवं अनीति-अन्याय पर आधारित होने की वजह से राष्ट्रीयता की अंगड़ाइयों के निशाने पर आ गईं, तो नियति के परिवर्तन-चक्र का मुकाबला नहीं कर सकीं और भरभरा कर धराशायी हो गईं।

खुद ‘सफेद आतंक’ बरपाते रहे इन समाजवादियों-कांग्रेसियों द्वारा मुस्लिम-वोटबैंक पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए साम्प्रदायिक तुष्टिकरण-आधारित विभेदकारी शासन से बहुसंख्यक समाज में  उत्पन्न असंतोष-अक्रोश ने योगी आदित्यनाथ के हिन्दुत्ववादी तेवर को धार देने और पूरे प्रदेश में उसे चमकाने का काम किया। जाहिर है, उस दौरान प्रदेश के आर्थिक-भौतिक विकास का एजेण्डा पीछे छूट गया।  मुजफ्फरनगर, दादरी, कैराना और प्रदेश के ऐसे अन्य भागों में शासन-संरक्षित मुस्लिम आतंक-जनित घटनाओं की लीपापोती करते हुए पांच साल बीत जाने के बाद परिवर्तन का चुनावी चक्र जब चलने लगा, तब नरेन्द्र मोदी का ‘सबका साथ-सबका विकास’ के साथ योगी का प्रखर हिन्दूत्ववाद मुख्य मुद्दा बन गया। मीडिया के चुनावी विश्लेषकों और राजनीति के विशेषज्ञों की बिकी हुई दृष्टि अपने-अपने आकाओं की उपरोक्त विभेदकारी दुर्नीति के बचाव में चाहे जो भी कुतर्क प्रस्तुत करें, किन्तु सच यही है कि महर्षि अरविन्द-प्रणीत भारतीय राष्ट्रीयता का प्रतीक- हिन्दुत्व के जाग जाने पर युग-ऋषि श्रीराम-विरचित ‘प्रखर प्रज्ञा’ की ‘भगवा-धार’ से ही अवांछित-अनैतिक-साम्प्रदायिक तुष्टिकरणवादिता का सिर कलम हो सका, जिसके परिणामस्वरूप अनीति-अन्याय पर आधारित सपाई-बसपाई व कांग्रेसी सियासत की सजी दुकानें भरभरा कर धराशायी हो गईं। मुस्लिम वोटों की सौदागिरी करने वाले तमाम गैर-भाजपाई दलों की मुखिया- कांग्रेस के ‘पप्पू’ को भारत का ‘भावी सम्राट’ बनाने हेतु ‘मोदी-योगी’ को फांसने की कुत्सित मंशा से रचे गए ‘भगवा आतंक’ नामक षड्यंत्र की कब्र पर स्थापित हुआ आदित्यनाथ का भगवा-राज वास्तव में ‘सफेद-आतंकियों’-‘जिहादियों-गाजियों’ पर गिरी ‘गाज’ है। अब इसके परिणाम भी वही होंगे जो उपरोक्त दोनों ऋषियों द्वारा कहे-लिखे जा चुके हैं।

- मनोज ज्वाला

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