आजादी का मतलब मनमानी नहीं है, जश्न मनाएं पर नियमों का पालन जरूर करें

celebrate-independence-day-but-follow-the-rules

हमें आजादी के मायनों पर भी चिंतन मनन करना होगा। आज भी हमारे−आपके बीच बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए आजादी का मतलब मनमानी और स्वच्छंदता है। कानून कायदे और स्थापित नियम तोड़ना हमारा शगल बन चुका है।

200 साल ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी के पश्चात् 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था। लाखों देशवासियों ने कुर्बानियां देकर आजादी प्राप्त की थी। 73वें स्वतंत्रता दिवस पर हम जोशो-खरोश के साथ आजादी का जश्न मनाने जा रहे हैं। इस वर्ष आजादी का जश्न हम ऐसे माहौल में मना रहे हैं जब जम्मू−कश्मीर में मोदी सरकार ने धारा 370 हटा दी। हालाँकि इसे हटाने का वादा भाजपा के घोषणा पत्रों में काफी समय से किया जा रहा था। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी सफलता से उत्साहित मोदी सरकार ने आखिरकार धारा 370 हटाकर एक देश एक विधान और एक निशान का अपनी पूर्व पार्टी जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना साकार कर दिया।

अभी तक कश्मीर में शांति है और शेष भारत में अधिकतर लोगों ने खुशी जाहिर की है। सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में इस धारा के कारण अलगाववादियों और आतंकवादियों को मनमानी की छूट मिली हुई थी और अब यहाँ विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। कुछ लोग इसे तूफान के पहले की शांति बता रहे हैं। पाकिस्तान भारत के इस कदम से बौखलाया हुआ है और कई प्रकार की धमकियां दे रहा है। विश्व जनमत भारत के साथ है। देशभर में देशभक्ति का ज्वार अपने चरम है। यह तो भविष्य ही बताएगा इससे देश की एकता और अखंडता कितनी मजबूत होगी।

इसे भी पढ़ें: आत्म-प्रशंसा की बजाय आलोचना पर ध्यान देंगे तभी देश के अच्छे दिन आएंगे

बहरहाल देशवासियों को अपनी आजादी का जश्न जोर शोर से मनाने का यह पर्व है। इसी के साथ हमें आजादी के मायनों पर भी चिंतन मनन करना होगा। आज भी हमारे−आपके बीच बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए आजादी का मतलब मनमानी और स्वच्छंदता है। कानून कायदे और स्थापित नियम तोड़ना हमारा शगल बन चुका है। चौराहों पर ट्रैफिक नियमों के पालन की बात हो चाहे बंद रेलवे क्रॉसिंग से झुक कर निकलने की। ट्रेन निकलने का इंतजार करने की बजाय लोग बाइक और साइकिलों को झुका कर बैरियर के नीचे निकलने में कोई संकोच नहीं करते हैं। सड़क पर दौड़ने वाले वाहनों पर भी कार्रवाई का कोई खौफ नहीं है। जहां मर्जी हुई खड़ा कर दिया। राह चलते पीक थूकना आम बात है। कुछ खा रहे हैं तो उसे भी सड़क पर फेंकना अपनी शान समझते हैं। लड़की दिख गयी तो टीका टिप्पणी करने से नहीं चूकेंगे। अव्यवस्थाओं के लिए हम सिस्टम के सिर दोष मढ़ते−मढ़ते थक जाते हैं, लेकिन कभी खुद के गिरेबां में झांक कर देखने की जरूरत नहीं समझते। यह सोचने-विचारने की बात है कि क्या इसी दिन के लिए देश आजाद हुआ था कि देशवासी मनमानी करें। हम अपने दिल पर हाथ रख कर मंथन करें क्या यही आजादी के मायने हैं।

इसे भी पढ़ें: भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर जानिये 15 अगस्त से जुड़ी 15 बड़ी बातें

युवाओं के लिए रोजगार की बातें गौण हो गई है। गरीब के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की बात दोयम हो गई है। महिलाओं की स्वतंत्रता कागजों में दफन हो रही है। सरकारी नौकर के लिए आजादी का अर्थ जेब भरना है। देश और समाज का हर पक्ष अपनी-अपनी बात पर दृढ़ता से कायम है। अपने कुर्ते को दूसरे के कुर्ते से अधिक उजला बताया जा रहा है। भ्रष्टाचार की विष बेल लगातार बढ़ती ही जा रही है। सहिष्णुता को कुश्ती का अखाड़ा बना लिया गया है। परस्पर समन्वय, प्रेम, भातृत्व और सच्चाई को दरकिनार कर घृणा और असहिष्णुता हम पर हावी हो रही है। आजादी के दीवाने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, तिलक, गाँधी, नेहरू, पटेल और लोहिया के सिद्धांतों और विचारों के अपने-अपने हित में अर्थ निकाले जा रहे हैं। आजादी के बाद कई दशकों तक सत्तासीन लोग सत्ता सुख को अब तक नहीं भूल पाए हैं और राज करना अपना  जन्मसिद्ध अधिकार मान रहे हैं। वहीँ नए सत्ता सुख पाने वाले देश को असली आजादी और लोकतंत्र का धर्म सिखा रहे हैं। साम्प्रदायिकता को लेकर देश दो फाड़ हो रहा है। सेकुलर शब्द की नयी-नयी परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हैं। दल बदलते ही कल के सेकुलर आज के सांप्रदायिक हो जाते हैं और सांप्रदायिक रातों रात सेकुलर बन जाते हैं। बलिहारी है भारत के लोकतंत्र की, इन सब के बावजूद गाँधी की दुहाई के साथ देश आगे बढ़ता जा रहा है।

−बाल मुकुन्द ओझा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़