नेचुरोपैथी डे पर जानें प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े महत्वपूर्ण फायदे

Naturopathy Day 2020

योग और प्राकृतिक चिकित्सा को चिकित्सा पद्धति के रूप में सीमित नहीं किया जाना चाहिये। ये अलग से चिकित्सा पद्धति न होकर जीवनशैली की वे खूबियां हैं जिन्हें सभी मान्यताप्राप्त चिकित्सा पद्धतियां किसी न किसी रूप में स्वीकार करतीं हैं।

2020 के वैश्विक संक्रमण ने नेचुरोपैथी और योग के महत्व को प्रतिपादित किया है। अनेक अध्ययनों और सामान्य अवलोकनों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जहाँ-जहाँ लोगों ने योग और नेचुरोपैथी के अनुकूल जीवनशैली को अपनाया है या योग और नेचुरोपैथी के प्रतिकूल जाने से बचे हैं, वहाँ-वहाँ इस संक्रमण और संक्रमण के दुष्प्रभाव से काफी हद तक सुरक्षा हुई है। वर्तमान संक्रमण के परिप्रेक्ष्य में विकसित देशों के मुकाबले भारतीय उपमहाद्वीपीय देशों में और शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में फेटेलिटी रेट व केस फेटेलिटी रेट कम पाए जाने से संबंधित आंकड़े इस दावे की पुष्टि करते हैं। संक्रामक बीमारियों के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में 20 सितम्बर 2020 को प्रकाशित मेटाएनालीसिस  (लिंक-doi:10.1016/j.ijid.2020.09.1464) में विस्तृत जानकारी दी गई है |

यह अध्ययन से स्थापित सर्वज्ञात तथ्य है कि योग और नेचुरोपैथी के उसूलों के विरुद्ध जीवनशैली के कारण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदयरोग, लीवर-किडनी की समस्याएं पैदा होती हैं। नेचर नामक प्रसिद्ध पत्रिका के 8 जुलाई 2020 के अंक 584 में पृष्ठ क्रमांक 430-436 में एलिजाबेथ ने आंकड़ो के आधार पर स्पष्ट किया है कि इन समस्याओं को झेलने वाले लोग संक्रमण के आसानी से शिकार बन जाते हैं। यही नहीं संक्रमण ऐसे लोगों पर अधिक घातक प्रभाव भी डालता है। डिफेन्स प्रणालियों में योग और नेचुरोपैथी के योगदान से कौन इन्कार कर सकता है?

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योग और प्राकृतिक चिकित्सा को चिकित्सा पद्धति के रूप में सीमित नहीं किया जाना चाहिये। ये अलग से चिकित्सा पद्धति न होकर जीवनशैली की वे खूबियां हैं जिन्हें सभी मान्यताप्राप्त चिकित्सा पद्धतियां किसी न किसी रूप में स्वीकार करतीं हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरह ये खूबियाँ भी किसी न किसी अंश में सभी चिकित्सा पद्धतियों में समाई हुई हैं।

कोशिकाओं के स्तर पर संरचनाओं और क्रियाओं का सूक्ष्म अध्ययन- परीक्षण,नेनो पार्टिकल तक की भूमिका का ज्ञान, पोषण सम्बन्धी बारीकियों की जानकारी और इलाज में काम आने वाली तकनीकों का विकास आदि विषय चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत आते हैं। आमतौर पर चिकित्सा विज्ञान को केवल एलोपैथी का हिस्सा मान लिया जाता है, जबकि योग और प्राकृतिक चिकित्सा की तरह चिकित्सा विज्ञान सभी चिकित्सा पद्धतियों का आवश्यक अंग है।

एलोपैथी और चिकित्सा विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं, किन्तु दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं। इस बात को भली भांति समझने की जरूरत है। भले ही चिकित्सा विज्ञान को समृद्ध करने में एलोपैथिक डॉक्टरों की बड़ी भूमिका रही है, लेकिन चिकित्सा विज्ञान किसी चिकित्सा पद्धति के लिये अस्वीकार्य नहीं है। योग व नेचुरोपैथी के विशेषज्ञों को चिकित्सा विज्ञान की सहायता से अपनी अपनी विधा को समृद्ध करने का प्रयत्न करना चाहिए, ताकि विश्व में प्राकृतिक नियमों की अवहेलना कम हो और अवहेलना के कारण होने वाले दुष्प्रभावों में कमी हो।

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार आदमी ने संघर्ष और चुनौतियों का सामना करते हुए ही विकास किया है। मानव शरीर का डिफेंस सिस्टम भी कई पीढ़ियों के अनुवांशिक योगदान से इसी प्रकार  मजबूत हुआ है।

डिफेंस सिस्टम में इम्युनिटी के अलावा, डीएनए, शरीर के आंतरिक संतुलन सम्बंधित सभी पाथवे, एंजिओजेनेसिस, न्यूरोजेनेसिस, हितकारी माइक्रोबायोम, लीवर, किडनी, लिम्फ, हार्मोन, और न्यूरोट्रांसमीटर आदि क्रियायें, अंग व तन्त्र शामिल हैं। योग और नेचुरोपैथी व भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के उपचार सम्बन्धी सिद्धांत और उपाय इन सभी क्रियाओं, तन्त्रों व अंगों की सुरक्षा का ध्यान रखकर ही विकसित हुए हैं। इसलिये ये चिकित्सा विज्ञान के अनुकूल हैं। किंतु एलोपैथी में कभी कभी इन क्रियाओं, तन्त्रों या अंगों का क्षरण अथवा विनाश करने वाली दवाओं या अन्य उपायों को आजमाया जाता है, जिसके घातक दुष्परिणाम सामने आते हैं। इसमे एलोपैथी नहीं उसके क्रियान्वयन में होने वाली गलतियों का दोष है। बड़ी मात्रा में हो रहीं इस तरह की आजमाइशों से व्यक्तिगत स्वास्थ्य ही नहीं बिगड़ रहा, वरन अनुवांशिक दुष्प्रभाव भी पड़ रहे हैं, जिन्हें आगे की पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। वर्तमान संक्रमण (सोशल मीडिया में चल रही अघोषित सेंसरशिप से बचने के लिए जानबूझकर यहाँ नाम का उल्लेख नहीं किया जा रहा है।) की चिकित्सा में तो ऐसी आजमाइशों की अति ही हो गई है।

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मेरे विचार से अस्पतालों में होने वाली मौतों में से असंख्य मौतें इसी वजह से हुई होंगीं, जिन्हें वर्तमान में चल रहे संक्रमण से हुई मौतों के खाते में दर्ज किया जा रहा है। योग और नेचुरोपैथी के उपायों से करोड़ों लोगों की इस संक्रमण से रक्षा हुई है, जिसका न कोई रिकार्ड है, न मान्यता। यह मानवीय स्वास्थ्य का दुर्भाग्य ही है कि एक तरफ एलोपैथी को कुछ भी प्रयोग (RTC) करने की छूट दी जा रही है दूसरी ओर योग और नेचुरोपैथी के प्रतिकूल आचरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। यही नहीं, सदियों के अनुभवों से प्रमाणित भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की अवहेलना भी की जा रही है। कमाल है, खता एलोपैथी की है, सजा योग, नेचरोपैथी व आयुर्वेद को दी जा रही है !

इन विचारों की पुष्टि में कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।

1- वर्तमान संक्रमण की चिकित्सा के लिये अनेक चिकित्सा प्रोटोकॉल प्रचलन में हैं। अधिकांश प्रोटोकॉल एंटीबायोटिक, एंटीवायरल, एन्टीइम्यूनल, "इसके एंटी उसके एंटी" की प्रवृत्ति वाली दवाओं से युक्त हैं। उनमे  से एक मैथप्लस प्रोटोकॉल का उदाहरण लेते हैं। (विस्तृत जानकारी http://pulmnccm.org/ ards-review/covid पर उपलब्ध) इसमें पहली दवाई मिथाइल प्रेडनीसोलोन है, ये या इसके समकक्ष दूसरी स्टेराइड जैसे डेकसामेथासोंन हमारी इम्युनिटी को दबाने का काम करती है। जिस समय वायरस अपनी संख्या बढा रहा हो, तब उससे लड़ने वाली इम्युनिटी को घटा देना उचित नहीं है। मैथप्लस प्रोटोकॉल के प्रस्तोता/लेखक डॉ पॉल मेरिक ने इस तथ्य को रेखांकित किया है। फिर भी लक्षण विहीन या कम लक्षण वाले संक्रमितों को स्टेराइड दिये जायेंगे तो हानि की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। कितने लोग इस गलती से बीमार पड़े होंगे और उनमें से कितने मरे होंगे?

2- पॉल मेरिक ने अपने प्रोटोकॉल में यह भी स्पष्ट किया है कि संक्रमण के कुछ दिन बाद (प्रायः9-10 दिन) बाद वायरस मर चुका होता है, लेकिन उसके अवशेष के प्रति प्रतिक्रिया में इम्युनिटी का रिस्पॉन्स होता है। ऐसे समय मे दिया जाने वाला स्टेराइड घातक हो सकता है। (नेचरोपैथी में स्टेराइड प्रतिबंधित है और योग में दवा का प्रावधान ही नहीं है।) मैथ प्रोटोकॉल को पूरा समझे बगैर कितने एलोपैथी डॉक्टरों ने यहाँ भी गलती की होगी? इस गलती से कितने लोग मरे होंगे?

3- सुपर कम्प्यूटर की सहायता से की गई मॉडलिंग पर आधारित एक स्टडी के अनुसार ब्रेडीकाईनिन स्टार्म को इस संक्रमण की उलझनों के लिये जिम्मेदार ठहराया गया है। (सन्दर्भ-7 जुलाई 2020 को प्रकाशित माइकल आर ग्रविन et. al. का अध्ययन-  doi:10:7554/elife.59177) से होने वाले कॉम्प्लिकेशन से निपटने के लिए साइटोकाईन स्टार्म से मुकाबला करने वाले ड्रग देकर कितने मरीजों को नुकसान हुआ होगा?

4- अनावश्यक विटामिन के सप्लीमेंट्स या मेगाडोज़ भी कभी कभी गम्भीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। आहार से असाध्य बीमारियों को मिटाने के लिये प्रसिद्ध डॉक्टर बिस्वरूप राय चैधरी ने अपने साहित्य में एविडेंस के साथ इस तथ्य का जिक्र किया है। क्या इलाज में इस तथ्य का ध्यान रखा गया?

ऐसे असंख्य उदाहरण दिये जा सकते हैं, जिनमें बचाई जा सकने वाली मौतों के लिये एलोपैथी के गलत इलाज को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस कथन का यह अर्थ न लगाया जाये कि एलोपैथी गलत है। मेरा आशय है कि एलोपैथिक इलाज में योग व प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर इलाज करना गलत है। राजनीतिक दलों की तरह चिकित्सा पद्धतियां परस्पर  विवाद न करके परस्पर समन्वय का रास्ता अपनाएं तो शायद ऐसी गलतियाँ न हों।

फोन और सोशल मीडिया के मार्फ़त हमने नियमित योग अभ्यास करने वाले लोगों पर इस संक्रमण के प्रभाव का अध्ययन करने की कोशिश की, इनमें से कोई गम्भीर हुआ हो, ऐसी जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। मेरे विचार से ऐसे लोगों में इननेट रिस्पॉन्स और टी साइटो टॉक्सिक रिस्पॉन्स इतना मजबूत हो जाता है कि विषाणु प्रारम्भिक मुकाबले में ही परास्त कर दिए जाते हैं, जिससे ऐसे साधकों को लक्षणों का भी पता नहीं चलता या बहुत थोड़े लक्षण ही होते हैं। किसी किसी को तो एंटीबाडी भी नहीं बनती होंगीं।

वैश्विक प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर विश्वसमुदाय से अपील है कि मानवता की रक्षा के लिए योग व प्राकृतिक चिकित्सा के आधारभूत सिद्धांतों को समझ कर जीवन शैली का अंग बनाने की दिशा में अग्रसर हो। एलोपैथी जगत से अनुरोध है कि अपने पाठ्यक्रम में योग और प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों व उपायों का समावेश करे,ताकि इलाज की गलतियों से हो रहे दुष्प्रभावों और जेनेटिक नुकसानों से मानवता की रक्षा हो सके। सरकारों और वैश्विक स्वास्थ्य संस्थाओं से अनुरोध है कि महामारियों सहित अन्य बीमारियों से बचाव और उनकी चिकित्सा में योग और नेचुरोपैथी के प्रयोगों को बढ़ावा दें तथा एलोपैथी के साथ दूसरी चिकित्सा पद्धतियों का समन्वय करने की दिशा में नीतियाँ बनाएं।योग और नेचरोपैथी के विद्यार्थियों और विद्वानों से आह्वान है कि वे अपनी विधा को समृद्ध करने के लिये  पाठ्यक्रम में मेडिकल साइंस के ज्ञान का अधिकाधिक समावेश करें।

(डॉ श्याम सिंह B.E. Mech, M.Tech (Environment), Ph. D, M.Sc. Yog, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष- योग एवं नेचरोपैथी फेडरेशन)

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