अब साधु संत भी करवाएंगे पार्लर में जाकर ग्रूमिंग, भोपाल मे खुला पहला पार्लर स्टूडियो
साधुओं की जटाओं को संवारने के लिए ही इस अनोखे ब्रेडिंग स्टूडियो की शुरुआत की गई है। इस स्टूडियो की संचालक करिश्मा शर्मा है। उन्होंने बताया कि इस स्टूडियो में बीते डेढ साल में 40 से अधिक साधुओं ने अपनी जटाओं का ट्रीटमेंट करवाया है।
कहीं जाने से पहले हम अपने बालों में कंघी जरूर फिराते हैं क्योंकि इससे पूरा लुक सेकेंड्स में बदल जाता है। बालों को संवारने के लिए कभी कई तरह के हेयरस्टाइल किए जाते हैं तो कभी अलग अलग प्रोडक्ट इस्तेमाल कर उन्हें सुंदर बनाया जाता है। मगर क्या आपने कभी किसी साधु को अपने बाल बनाते या उन्हें संवारते हुए देखा है।
आमतौर पर साधुओं के बाल जटा में तब्दिल हो चुके होते है। ये जटाएं साधुओं की खास पहचान बन जाती है। इन जटाओं की देखभाल करने के लिए आमतौर पर साधु कोई खास कदम नहीं उठाते दिखते है। मगर इसी बीच साधुओं की जटाओं का ध्यान रखने और उन्हें संवारने के लिए मध्यप्रदेश के भोपाल में खास ब्रेडिंग स्टूडियो की शुरुआत की गई है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में कई धार्मिक स्थल हैं, जहां साधुओं की संख्या भी काफी अधिक है। इन साधुओं की जटाओं को संवारने के लिए ही इस अनोखे ब्रेडिंग स्टूडियो की शुरुआत की गई है। इस स्टूडियो की संचालक करिश्मा शर्मा है। उन्होंने बताया कि इस स्टूडियो में बीते डेढ साल में 40 से अधिक साधुओं ने अपनी जटाओं का ट्रीटमेंट करवाया है।
खुद से आई प्रेरणा
बता दें कि करिश्मा को खुद भी फैशन के अलग अलग ट्रेंड्स को फॉलो करना पसंद है। इसी ट्रेंड को फॉलो करते हुए उन्होंने खुद भी एक जटा रखी, जिसके रखने के बाद उन्हें समझ आया कि इसका रखरखाव काफी मुश्किल होता है। शुरुआत में फैशन के लिए उन्होंने इसे रखा मगर इसको संभालना काफी कठिन हो गया।
स्टूडियो खोलने से पहले की जांच
करिश्मा ने इस स्टूडियो की शुरुआत करने से पहले काफी जांच पड़ताल और रिसर्च की। उन्होंने उज्जैन के अलावा मध्य प्रदेश के कई तीर्थस्थलों में जाकर उन्होंने जटाधारी साधुओं से बात की, जिसके बाद उसे पता चला कि साधुओं की जटाएं टूटी हुई थी। वर्षों से जटा धारण करने वाले साधुओं के बालों में कोई पोषण नहीं था। आलम ये था कि कई साधुओं ने छोटे-मोटे जुगाड़ कर जटाओं को संजोया हुआ था। कई ने सुई धागे से टूटी जटा को जोड़ने की कोशिश की थी।
इन साधुओं की समस्या देखने के बाद उन्होंने सोचा कि वो साधुओं की जटाओं को संवारने की कोशिश की जानी चाहिए। इसके बाद उन्होंने अपने स्टूडियो की शुरुआत की जहां वो साधुओं की जटाओं का निशुल्क ट्रीटमेंट करती है। अगर कोई साधु जिद कर पैसा देता है तो आशीर्वाद मानकर ही वो उस राशि को रखती हैं मगर साधुओं से खुद को फीस नहीं लेती है।
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