सीमा विवाद के बाद चीन रच सकता है भारत के खिलाफ ये बड़ी साजिश, पढ़ें पूरी खबर

भारत-चीन सीमा विवाद का असर दोनों देशों के राजनयिक संबंधों पर भी पड़ा है। भारत में चीनी उत्पादों के बहिष्कार किया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ चीनी कंपनी वीवो ने आईपीएल से अपने हाथ खींच लिए हैं। आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में भारत के खिलाफ चीन कोई नई रणनीति तैयार कर सकता है।
चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया है। दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों की तादाद का आंकड़ा सैंकड़ों पार कर चुका है। जहाँ एक तरफ देश कोरोना वायरस से जूझ रहा था, वहीं दूसरी तरफ भारत-चीन सीमा विवाद ने मुश्किलें और बढ़ा दी। चीनी सेना द्वारा गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर किए गए हिंसक हमलों ने भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहट भर दी। भारत-चीन सीमा विवाद का असर दोनों देशों के राजनयिक और व्यापारिक संबंधों पर भी पड़ा है। भारत में चीनी उत्पादों के बहिष्कार किया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ हाल ही में चीनी कंपनी वीवो ने आईपीएल से अपने हाथ खींच लिए हैं। आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में भारत के खिलाफ चीन कोई नई रणनीति तैयार कर सकता है।
ऐसे में बहुत संभव है कि चीन भारत को निर्यात होने वाले रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर प्रतिबंध लगा सकता है। आइए जानते हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या होते हैं और ये क्यों हैं इतने जरूरी -
क्या होते हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स
दुर्लभ मृदा तत्व या रेयर अर्थ एलिमेंट्स पृथ्वी की ऊपरी परत (क्रस्ट) पर पाए जाने वाले 17 दुर्लभ धातु तत्त्वों का समूह है। पीरियॉडिक टेबल में 15 लैंथेनाइड (Z-57 से 71) और स्कैंडियम (Scandium) तथा Ytterbium को रेयर अर्थ एलिमेंट्स कहा जाता है। इन्हें रेयर अर्थ एलिमेंट्स के नाम से जाना जाता है लेकिन ये खनिज पदार्थ पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। हालांकि, दुनिया में कुछ ही जगहें ऐसी हैं जहां रेयर अर्थ एलिमेंट्स पाए जाते है। इसके अलावा इनके उत्पादन और प्रसंस्करण की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है जिसके लिए उचित टेक्नोलॉजी कुछ ही देशों के पास है।
आरईई का उपयोग
पृथ्वी पर पाई जाने वाली अन्य धातुओं की अपेक्षा आरईई में बेहतर कैटलिस्टिक (उत्प्रेरक), मैटलर्जिक (धातुकर्म), एटॉमिक (परमाणु), इलेक्ट्रिकल (विद्युत) और मैगनेटिक (चुंबकीय) गुण होते हैं। अपने इन विशिष्ट गुणों के कारण इनका इस्तेमाल विज्ञान से जुड़ी हर तकनीक में होता है। स्मार्ट फोन और HD डिस्प्ले से लेकर हेल्थकेयर, इलेक्ट्रिक कार, एयरक्राफ्ट, परमाणु हथियार और स्पेस प्रोग्राम में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी में आरईई का प्रयोग होता है।
दुनिया में कहाँ पाए जाते हैं आरईई
आरईई पृथ्वी की सतह पर बिखरे हुए हैं यानी ये किसी भी एक जगह पर भारी मात्रा में नहीं पाए जाते है जिसकी वजह से इनका खनन और उत्पादन आर्थिक रूप से महंगा है। विश्व में कुछ ही ऐसे देश हैं जहाँ आरईई पाए जाते हैं, जिनमें से चीन आरईई का सबसे बड़ा उत्पादक है। दुनियाभर में रेयर अर्थ एलिमेंट्स का 70% उत्पादन चीन में होता है। चीन के अलावा अमेरिका, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील और भारत के अलावा कुछ अन्य देश हैं जहां आरईई पाए जाते हैं लेकिन बहुत कम मात्रा में।
आरईई को लेकर चीन का दबदबा
चीन विश्व के सभी अन्य देशों को आरईई निर्यात यानी एक्सपोर्ट करता है जिसकी वजह से चीन अन्य देशों पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश करता रहता है। अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर के दौरान भी चीन ने अमेरिका को धमकी दी थी कि वह अमेरिका को निर्यात होने वाले आरईई पर रोक लगा देगा। बहुत मुमकिन है कि हाल ही में चल रहे भारत-चीन विवाद के बाद चीन भारत के खिलाफ भी ऐसा ही कोई दांव चले।
भारत में भी पाए जाते हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स
भारत में केरल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखण्ड, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स मौजूद हैं। इंडस्ट्री रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत की आरईई इंडस्ट्री की कीमत 90,000 करोड़ रूपये से अधिक है। लेकिन भारत में Atomic Energy Regulatory Board (AERB) के निर्देशों के अनुसार में इनका सीमित खनन किया जाता है। आरईई के खनन के लिए जरूरी तकनीक ना होने के कारण यह अप्रयुक्त और बेकार पड़ी है।
भारत को बनना होगा आत्मनिर्भर
आज के समय में विज्ञान और तकनीकी विकास से जुड़े हर क्षेत्र में रेयर एअर्थ एलिमेंट्स बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। कोरोना वायरस ने देश को आत्मनिर्भर बनने का सबक सिखा दिया है। इसी से सीख लेते हुए अब भारत को चीन या किसी अन्य देश पर निर्भर ना रहते हुए देश में ही आरईई का प्रसंस्करण करना चाहिए। अब समय आ गया है कि भारत आरईई इंडस्ट्री की क्षमताओं को अनदेखा करने की भूल ना करे और इस क्षेत्र में भी सशक्त बने।
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