भीष्म पंचक व्रत से होती है संतान सुख की प्राप्ति

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भीष्म पंचक बहुत पवित्र होता है इसलिए इस दौरान अन्न ग्रहण न करें। साथ ही इस समय फल-फूल दूध और दही का सेवन करें। साथ ही पंचगव्य भी थोड़ी मात्रा में ग्रहण करें। इसके अलावा नहाने के पानी में थोड़ी मात्रा में गोक्षरण डालें फिर पवित्रता पूर्वक स्नान करें। साथ ही भीष्म पंचक के समय आप ब्रह्मचर्य का भी पालन करें।

हिंदू धर्म में भीष्म पंचक का बहुत महत्त्व है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम जानते हैं। कार्तिक महीने में स्नान करने वाले इस व्रत को जरूर करते हैं। यह व्रत बहुत कल्याणकारी होता है तो आइए हम आपको भीष्म पंचक की महिमा के बारे में बताते हैं।


जानें भीष्म पंचक के बारे में

भीष्म पंचक कार्तिक महीने में देवोत्थान एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है। इस वर्ष यह 8 नवंबर से 12 नवंबर तक है। इन पांच दिनों में पूजा कर व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। 

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भीष्म पंचक से जुड़ी कथा

प्राचीन काल में जब महाभारत का युद्ध हुआ तो पांडवों की जीत हुई। पांडवों की जीत के उपरांत श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर भीष्म पितामह के पास गए ताकि पितामह उन्हें कुछ ज्ञान दे सकें। सूर्य के उत्तराय़ण होने की प्रतीक्षा में शैय्या पर लेटे हुए श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से पांडवों को ज्ञान देने का अनुरोध किया। भीष्म ने कृष्ण की बात मान कर पांडवों को वर्ण धर्म, मोक्ष धर्म और राज धर्म के बारे में ज्ञान दिया। भीष्म ने यह ज्ञान पांडवों को पांच दिनों तक दिया। ऐसा माना जाता है कि ये पांच दिन भीष्म पंचक के ही है जो एकादशी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है। ज्ञान देने के पश्चात श्रीकृष्ण ने कहा कि आज से भीष्म पंचक के यह पांच दिन लोगों के लिए बहुत मंगलकारी होंगे और आने वाले दिनों में इन्हें भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा। 

भीष्म पंचक में करें परहेज

भीष्म पंचक बहुत पवित्र होता है इसलिए इस दौरान अन्न ग्रहण न करें। साथ ही इस समय फल-फूल दूध और दही का सेवन करें। साथ ही पंचगव्य भी थोड़ी मात्रा में ग्रहण करें। इसके अलावा नहाने के पानी में थोड़ी मात्रा में गोक्षरण डालें फिर पवित्रता पूर्वक स्नान करें। साथ ही भीष्म पंचक के समय आप ब्रह्मचर्य का भी पालन करें।


भीष्म पंचक में ऐसे करें पूजा 

भीष्म पंचक के पांच दिनों में विशेष प्रकार की पूजा होती है। भीष्म पंचक व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है। मंडप को गाय के गोबर से लीप कर बीच में एक वेदी बनाएं। वेदी पर ध्यान देकर तिल रख कर कलश स्थापित करें। इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की होती है। इस व्रत के दौरान कार्तिक शुक्ल की एकादशी से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं। भीष्म पंचक व्रत करने वाले बहुत परहेज करना पड़ता है। उन्हें पांच दिनों तक सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए।

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भीष्म पंचक का महत्व

भीष्म पितामह ने इन पांच दिनों में पांडवों को ज्ञान दिया था इसलिए इस व्रत को ‘भीष्म पंचक’ नाम से जाना जाता है। कार्तिक मास में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का खास महत्त्व है। यह व्रत न केवल पहले किए गए संचित पाप कर्मों से मुक्ति दिलाता है बल्कि कल्याणकारी भी होता है। भीष्म पंचक व्रत बहुत मंगलकारी और पुण्यफलदायक माना जाता है। जो भी भक्त इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसे मृत्यु के पश्चात् मोक्ष तथा उत्तम गति की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने वाला व्रत सदैव स्वस्थ रहता है तथा प्रभु की कृपा उस पर बनी रहती है। 

प्रज्ञा पाण्डेय

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