संक्रांति पर गंगासागर का है खास महत्व, गंगा का होता है सागर से मिलन

Makar Sankranti

गंगासागर में मकर संक्रान्ति से पन्द्रह दिन पहले ही मेला शुरू हो जाता है। मेले में दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, साधु-संत आते हैं और संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देते हैं। मेले की विशालता के कारण लोग इसे मिनी कुंभ मेला भी कहते हैं।

भारत के तीर्थों में गंगासागर एक महातीर्थ हैं। मकर संक्रान्ति पर यहां प्रतिवर्ष बहुत बड़ा मेला लगता है। जिसमें दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु गंगा सागर स्नान के लिए आते हैं। गंगासागर की तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान मानी जाती है। भारत में सबसे पवित्र गंगा नदी गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को गंगासागर के नाम से जाना जाता है। इस स्थान को सागरद्वीप के नाम से भी जाना जाता है। 

कुम्भ मेले को छोडकर देश में आयोजित होने वाले तमाम मेलों में गंगासागर का मेला सबसे बड़ा मेला होता है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है। जहां मकर संक्रान्ति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते है। कोरोना के कारण 2021 के मकर संक्रान्ति स्नान के अवसर पर यहां आने वाले लोगों की संख्या पहले की तुलना में कम ही रहेगी।

पहले गंगासागर जाना हर किसी के लिये सम्भव नहीं होता था। तभी कहा जाता था कि सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। हालांकि यह पुराने जमाने की बात है जब यहां सिर्फ जल मार्ग से ही पहुंचा जा सकता था। आधुनिक परिवहन साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर बना हुआ हैं। जिन्होंने भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था। मान्यता है कि यहां मकर संक्रान्ति पर पुण्य-स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। 

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गंगासागर में मकर संक्रांति से पन्द्रह दिन पहले ही मेला शुरू हो जाता है। मेले में दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, साधु-संत आते हैं और संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देते हैं। मेले की विशालता के कारण लोग इसे मिनी कुंभ मेला भी कहते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन यहा सूर्यपूजा के साथ विशेष तौर कपिल मुनि की पूजा की जाती है।

ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। भगवान विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। उन्होने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली फलस्वरुप कपिलमुनी का जन्म हुआ जिन्हें विष्णु का अवतार माना गया। 

आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा। 

अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ का अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिला। फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हे शापित करते हुये अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है। 

हिन्दू मान्यता के अनुसार साल की 12 संक्रान्तियों में मकर संक्रान्ति का सबसे महत्व ज्यादा है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य मकर राशिन में आता हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरु हो जाता है। गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन एवं पिण्डदान कर पितरों को जल अर्पित करते हैं। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। मान्यतानुसार जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं। उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वेच्छित वधु प्राप्त होती है। मेले में आये लोग कपिल मुनि के आश्रम में उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।

सुन्दरवन निकट होने के कारण गंगासागर मेले को कई विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफान व ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं। इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां, नहरें भी है। बहुत पहले इस स्थान पर गंगा जी की धारा सागर में मिलती थी। किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की एक बहुत छोटी सी धारा सागर से मिलती है। यह मेला पांच दिन चलता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन दिनों का होता है। यहां अलग से गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है। मेले के लिये एक स्थान निश्चित है। कहा जाता है कि यहां स्थित कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर सागर की लहरें बहा ले गयी थी। मन्दिर की मूर्ति अब कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व यहां के पुरोहितों को पूजा अर्चना के लिये मिलती है।

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गंगासागर वास्तव में एक टापू है जो गंगा नदी के मुहाने पर स्थित है। यहां बंगला भाषी आबादी रहती है। यह पूरी तरह से ग्रामीण ईलाका है। यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के रहने के लिए यहां पर होटल, आश्रम व धर्मशालायें है। अब पूरे वर्ष लोग यहां लोगों का आवागमन लगा रहता है। कोलकाता से पूरे मार्ग में सडक बनी हुयी है मात्र 8 किलोमीटर पानी में नाव का सफर करना पड़ता है। गंगासागर में मकर संक्रांति के दिन 14 व 15 जनवरी को मुख्य मेला लगता है। जिसमें लाखों लोग स्नान और पूजा करने आते हैं। 

गंगासागर की कायापलट में जुटी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गंगासागर के लिए मुरिगंगा में ब्रिज का निर्माण करवाने को प्रयासरत है। इस ब्रिज के बनने से श्रद्वालु सडक मार्ग से कचुबेरिया तक आ सकेगें। लोगों को यहां जल मार्ग से नहीं आना पड़ेगा। गंगासागर मेला किसी भी तरह कुम्भ मेले से कम नहीं है। यहां दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। इस कारण गंगासागर मेले को भी कुंभ मेले जैसा दर्जा मिलना चाहिये। ताकि यहां के विकास के लिये कुम्भ मेले की तरह अलग से बजट उपलब्ध हो। जिससे इस क्षेत्र का समुचित विकास सम्भव हो पाये। 

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वतंत्र पत्रकार

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