कांबोडिया में स्थित है विश्व का सबसे बड़ा 'हिन्दू मंदिर'

Angkor Wat Temple

अंकोरवाट के इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में बताया जाता है और इसका निर्माण कार्य राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने आरंभ कराया था। ऐसा कहा जाता है कि राजा सूर्यवर्मन को अमरत्व की लालसा थी, जिसके लिए वह देवताओं को खुश करना चाहते थे।

भारत स्थित तमाम छोटे-बड़े हिंदू मंदिरों के बारे में आपने अवश्य सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे विशाल हिंदू मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो भारत में नहीं बल्कि विदेश में बना हुआ है और उसकी टक्कर का विशाल मंदिर खुद भारत में भी नहीं है।

जी हां! हम बात कर रहे हैं विश्व के सबसे बड़े हिंदू मंदिर 'अंगकोर वाट' के बारे में, जो कंबोडिया में स्थित है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर को टाइम मैगजीन ने दुनिया की आश्चर्यजनक चीजों में शामिल किया है। इस मंदिर का प्रांगण हजारों वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यही वजह है कि इसे दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर कहा जाता है।

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यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित कर बनाया गया है और इस मंदिर को लेकर कंबोडिया देश के नागरिकों में गहन आस्था है। इतना ही नहीं इस मंदिर को कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज में भी स्थान दिया गया है तथा इसे इस देश के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना जाता है। 

कैसी है मंदिर की बनावट? 

अंकोरवाट के इस मंदिर की दीवारों पर आप हिंदू धर्म ग्रंथ, रामायण और महाभारत के पात्रों को उकेरे हुए देख सकेंगे। इतना ही नहीं, इस मंदिर की दीवारों पर समुद्र मंथन के दृश्यों को भी उकेरा गया है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने अपने पुत्र के निवास के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था।

अंकोरवाट के इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में बताया जाता है और इसका निर्माण कार्य राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने आरंभ कराया था। ऐसा कहा जाता है कि राजा सूर्यवर्मन को अमरत्व की लालसा थी, जिसके लिए वह देवताओं को खुश करना चाहते थे। 

इसी उद्देश्य से उन्होंने एक ऐसे स्थान का निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश की आराधना एक साथ की जा सके। अंकोरवाट मंदिर कम्बोडिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ तीनों देवताओं की मूर्तियां एक साथ स्थापित हैं। बताया जाता है कि 14वीं शताब्दी में इस मंदिर को पूर्ण करने का काम राजा धर्मेंद्र वर्धन के द्वारा हुआ।

क्या है इतिहास?

इतिहासकारों का कहना है कि 13वीं शताब्दी के अंत तक कंबोडिया पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों का कब्जा शुरू हो गया, जिसके बाद अंकोरवाट मंदिर की संरचना में भी तमाम तरह के परिवर्तन होने लगे और मंदिर पर बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने लग गया।

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इसके फलस्वरुप कम्बोडिया में एक संयमित धर्म का उदय होने लगा। वहीं इतिहासकारों का कहना है कि 16वीं शताब्दी की शुरुआत में ही कंबोडिया पर खमेर साम्राज्य के राजाओं ने आक्रमण करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कंबोडिया के समस्त हिंदू मंदिरों को खंडहर के रूप में तब्दील कर दिया गया। हालांकि अंकोरवाट मंदिर पर बौद्ध धर्म के साधु का आधिपत्य था जिसकी वजह से इस मंदिर को कोई विशेष नुकसान नहीं पहुंचा। 

हालाँकि धीरे-धीरे अंकोरवाट मंदिर इतिहास के परिदृश्य से गायब हो गया, लेकिन 19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी खोजकर्ता हेनरी महोत ने अंकोरवाट मंदिर की खोज की और दुनिया के सामने इस मंदिर को लाया। वहीं 1986 से लेकर 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे अपने संरक्षण में रखा और मंदिर की देखभाल तथा जीर्णोद्धार का जिम्मा उठाया। बता दें कि दक्षिण एशिया के सबसे अधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में अंकोरवाट मंदिर का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है।

- विंध्यवासिनी सिंह

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