Jungle Book Censorship | विशाल भारद्वाज का खुलासा, कैसे गुलजार ने लोकप्रिय ‘जंगल बुक’ गीत को सेंसरशिप से बचाया

Vishal Bhardwaj
ANI
Renu Tiwari । Nov 17 2025 2:45PM

बच्चों के लोकप्रिय गीत ‘जंगल-जंगल बात चली है’ में इस्तेमाल हुए शब्द ‘चड्डी’ को बदलने की नौबत आ गई थी, लेकिन गीतकार गुलजार इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं हुए। इस गीत को बनाने वाले संगीतकार विशाल भारद्वाज ने बताया कि गुलजार ने गीत की मासूमियत और कल्पनाशीलता को किसी भी कीमत पर कम नहीं होने दिया।

बच्चों के लोकप्रिय गीत ‘जंगल-जंगल बात चली है’ में इस्तेमाल हुए शब्द ‘चड्डी’ को बदलने की नौबत आ गई थी, लेकिन गीतकार गुलजार इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं हुए। इस गीत को बनाने वाले संगीतकार विशाल भारद्वाज ने बताया कि गुलजार ने गीत की मासूमियत और कल्पनाशीलता को किसी भी कीमत पर कम नहीं होने दिया। ‘देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल’ के सातवें संस्करण में शनिवार को भारद्वाज ने बताया कि कैसे मूल संगीतकार के काम छोड़ देने के बाद उन्हें अंतिम समय पर ‘जंगल बुक’ के इस मशहूर गीत की रचना के लिए बुलाया गया।

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90 के दशक में रुडयार्ड किपलिंग की एनिमेटेड शृंखला ‘जंगल बुक’ का यह शीर्षक गीत बच्चों में बेहद लोकप्रिय था। उन्होंने कहा, “उस समय एनएफडीसी विदेशी एनिमेटेड शृंखलाओं को हिंदी में डब करवाता था। जिस संगीतकार को यह काम (गीत की रचना) करना था, वह किसी समस्या के कारण नहीं आ सके। तब गुलजार साहब ने मुझे अपने घर बुला लिया। उन्हें पता था कि मैं संघर्ष के दौर से गुजर रहा हूं। ” विशाल ने बताया, “हमें तुरंत गाना तैयार करना था, अगले दिन उसे रिकॉर्ड करना था और उसके अगले दिन टीवी पर प्रसारित होना था। इसी तरह यह गाना बना।”

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भारद्वाज ने कहा कि उन्हें गर्व है कि उन्होंने फिल्मों और गैर-फिल्म प्रोजेक्ट्स, दोनों में सबसे अधिक गाने गुलजार के साथ ही बनाए हैं। उन्होंने बताया, ‘‘एनएफडीसी के अधिकारियों को ‘चड्डी’ शब्द अजीब लगा, लेकिन गुलजार ने एकदम स्पष्ट कहा-अजीब तो दिमाग का वहम है। यह बच्चे की कल्पना है। अगर गाना टीवी पर जाएगा तो इसी तरह जाएगा, नहीं तो मत चलाइए।” आखिरकार, कोई विकल्प न होने पर, गीत को जैसा था वैसा ही प्रसारित किया गया।

मशहूर फिल्म निर्माता भारद्वाज ‘मकबूल’ और ‘ओमकारा’ जैसी चर्चित फिल्मों के साथ-साथ ‘मकड़ी’ और ‘द ब्लू अम्ब्रेला’ जैसी बच्चों की फिल्मों के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने अफसोस जताया कि भारत में अब भी बच्चों के लिए सच्चे अर्थों में बनाई गई फिल्मों की कमी है। उन्होंने कहा, “हम बच्चों के मनोरंजन के लिए काम ही नहीं करते।

बच्चों को हॉलीवुड, बाहर की एनीमेशन फिल्मों या फिर बॉलीवुड की घटिया फिल्मों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसमें बच्चों के लिए कुछ नहीं होता।” दून इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित तीन दिवसीय साहित्य उत्सव का विषय था—‘वसुधैव कुटुंबकम: वॉइसेज ऑफ यूनिटी।’ इसमें पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, अभिनेता-फिल्म निर्माता नंदिता दास, लेखिका शोभा डे और गायिका उषा उत्थुप जैसे कई बड़े नाम शामिल हुए। यह साहित्यिक आयोजन रविवार को समाप्त होगा।

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