चाइल्ड काउंसलर बनकर बच्चों का और अपना भविष्य संवारें

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एक चाइल्ड काउंसलर के पास संभावनाओं की कमी नहीं है। वह स्कूल से लेकर हॉस्पिटल्स तक में काम कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न एनजीओ व बच्चों के लिए काम कर रही संस्थाओं में उनकी आवश्यकता होती है। वहीं आप स्पेशल स्कूल्स या बाल सुधार गृह में भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं।

आज के तनावपूर्ण जीवन में सिर्फ बड़े ही नहीं, बल्कि बच्चे भी कई तरह की परेशानियों जैसे माता−पिता व अन्य लोगों से रिश्ते, एग्जाम प्रेशर व पीयर प्रेशर आदि से दो−चार होते हैं। यहां सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वह अपनी परेशानी किसी से शेयर नहीं करते और कई बार तो अपनी परेशानियों को मन में ही रखने के कारण वह अवसादग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में उनकी परेशानियों को समझकर उन्हें अंधेरे से निकालकर उजाले में लाने का काम करते है चाइल्ड काउंसलर। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां पर व्यक्ति को दूसरों की सहायता करके एक अजीब सी संतुष्टि का अनुभव होता है।


क्या होता है काम

एक चाइल्ड काउंसलर बच्चों के व्यवहार और भावनात्मक मुद्दों पर उनकी सहायता प्रदान करते हैं। साथ ही वह बच्चों के डेवलपमेंट मुद्दों जैसे चिंता, नींद, पर्सनैलिटी डिसआर्डर व ईटिंग डिसआर्डर को भी दूर करते हैं। उनका मुख्य काम पहले बच्चों के साथ एक रिश्ता विकसित करना होता है ताकि वह अपने मन की उन बातों को भी साझा करें, जिसे वह किसी से भी नहीं कह पाते। इसके बाद वह उनकी बातों को सुनकर व उसके हाव−भावों के जरिए उसके मन की परेशानी को गहराई से समझते हैं। वह न सिर्फ बच्चों को काउंसिल करता है, बल्कि समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए पैरेंट्स को भी काउंसिल करते हैं। जिससे माता−पिता बच्चों के मन की बात समझकर उनके लिए सपोर्ट सिस्टम बन सकें।

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स्किल्स

जो लोग एक सफल चाइल्ड काउंसलर बनना चाहते हैं, उनमें कम्युनिकेशन स्किल्स व इंटरपर्सनल स्किल्स काफी अच्छे होने चाहिए। इसके अतिरिक्त उसमें बच्चे को आसानी से सहज करने व बेहतरीन तालमेल बिठाने की भी क्षमता होनी चाहिए। अगर आप सच में एक बेहतरीन चाइल्ड काउंसलर बनने की इच्छा रखते हैं तो आपको तटस्थ व निष्पक्ष होकर बच्चे की बातों को सुनना व समझना चाहिए। अधिकतर बच्चे अपने दोस्तों या माता−पिता को महज इसलिए अपनी बात नहीं बताते क्योंकि उन्हें लगता है कि वह उनकी बात नहीं समझेंगे या फिर उन्हें गलत समझेंगे। ऐसा अनुभव उन्हें चाइल्ड काउंसलर की बातों से नहीं होना चाहिए। आपके भीतर यह क्षमता होनी चाहिए कि आप बच्चों को यह विश्वास दिला सके कि आप उनकी बातों को सुनेंगे, जज नहीं करेंगे।

योग्यता

इस क्षेत्र में कदम रखने के लिए 12वीं के बाद साइकोलॉजी में बैचलर डिग्री कर सकते हैं। साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन करने के बाद आप साइकोलॉजी में मास्टर डिग्री या पीजी डिप्लोमा इन गाइंडेस व काउंसिलिंग कर सकते है। इसके बाद एमफिल या पीएचडी भी की जा सकती है। 

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संभावनाएं

एक चाइल्ड काउंसलर के पास संभावनाओं की कमी नहीं है। वह स्कूल से लेकर हॉस्पिटल्स तक में काम कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न एनजीओ व बच्चों के लिए काम कर रही संस्थाओं में उनकी आवश्यकता होती है। वहीं आप स्पेशल स्कूल्स या बाल सुधार गृह में भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं। वहीं आप खुद का सेंटर भी खोलकर काम कर सकते हैं।

आमदनी

अगर वेतन की बात की जाए तो इसमें सैलरी से अधिक मानसिक संतुष्टि को महत्व दिया जाता है। वहीं एक स्कूल में नियुक्त काउंसलर 15000 से 20000 रूपए प्रतिमाह कमा सकता है। वहीं एक अनुभवी चाइल्ड काउंसलर की सैलरी एक बड़े स्कूल में 25000 से 30000 तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त अगर आप किसी प्रतिष्ठित प्राइवेट हॉस्पिटल में काम कर रहे हैं तो आपकी सैलरी 30000 या उससे अधिक हो सकती है।

प्रमुख संस्थान

दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली

इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली

अंबेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली

पंजाब यूनिवर्सिटी, पंजाब

जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली

इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ काउंसिलिंग, नई दिल्ली

वरूण क्वात्रा

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