इस तरह खेल-खेल में पपेटियर के रूप में बनाएं अपना कॅरियर

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एक पपेटियर का मुख्य काम कठपुतली को इस तरह संचालित करना होता है कि देखने वाला व्यक्ति उस काल्पनिक किरदार को वास्तविक समझ बैठता है। एक पपेटियर सिर्फ कठपुतली को ही संचालित नहीं करता, बल्कि उसे बीच−बीच में डायलॉग्स भी बोलने होते हैं।

बचपन में हम सभी ने कठपुतली का खेल देखा है और उसे देखने में काफी मजा भी आता है। लेकिन टेक्नोलॉजी के इस युग में कठपुतली का खेल दिखाने वाले कम ही नजर आते हैं। आज के समय में भले ही यह सड़कों पर या गांव की नुक्कड़ पर दिखाई न देते हों, लेकिन फिर भी इनका क्रेज कम नहीं हुआ है। बस समय के साथ इनका रूप बदल गया है। वर्तमान में फिल्म और टीवी में पपेटियर ज्यादा नजर आते हैं। अगर आप भी चाहें तो बतौर पपेटियर अपना भविष्य देख सकते हैं। 

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क्या होता है काम

एक पपेटियर का मुख्य काम कठपुतली को इस तरह संचालित करना होता है कि देखने वाला व्यक्ति उस काल्पनिक किरदार को वास्तविक समझ बैठता है। एक पपेटियर सिर्फ कठपुतली को ही संचालित नहीं करता, बल्कि उसे बीच−बीच में डायलॉग्स भी बोलने होते हैं। साथ ही वह अपनी आवाज के उतार−चढ़ाव के जरिए उन संवादों में जान डाल देता है। इन सबके अतिरिक्त तरह−तरह के पपेट को बनाना भी उसके कार्य का एक अहम हिस्सा है। अपने काम के दौरान एक पपेटियर को कई तरह के मेटेरियल्स से तैयार होने वाले अलग−अलग डिजाइन के पपेट तैयार करने होते हैं।

क्या है कठपुतली की कला

कठपुतली भारत में कहानी कहने की सबसे पुरानी कला है। कठपुतली भी लंबे समय तक संचार का एक बहुत प्रसिद्ध रूप था। भारत के अलग−अलग राज्यों की अपनी−अपनी कठपुतली शैली है। भारत में कठपुतली की समृद्ध विरासत रही है, जो पिछले कुछ समय से कहीं विलुप्त होती जा रही हैं। लेकिन अब विभिन्न संस्थान एक बार फिर से इस कला को सहेजने का कार्य कर रहे हैं।

स्किल्स

एक बेहतरीन और सफल पपेटियर बनने के लिए किसी भी व्यक्ति का कल्पनाशील व आत्मविश्वासी होना बेहद आवश्यक है। साथ ही अगर आपकी मिमिक्री, स्कल्प्चर, ड्रामा तथा डांस आदि में रुचि है तो इस क्षेत्र में सफलता पाना काफी आसान हो जाता है। आजकल धागे से चलाने वाले पपेट का इस्तेमाल कम किया जाता है, बल्कि हाथों में पहने जाने वाले पपेट अधिक देखे जाते हैं। इसलिए एक पपेटियर को अपना डायलॉग्स को कुछ इस तरह से बोलना होता है कि देखने वाला व्यक्ति उसे समझ न पाए। यह भी एक कला है, जिसका काफी अभ्यास करना पड़ता है।

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योग्यता

एक पपेटियर बनने के लिए किसी फॉर्मल डिग्री का होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन फिर भी आप पपेटरी में डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इस कोर्स के दौरान आपको उंगली, कलाई और हाथों का संचालन, कठपुतली की आवाज निकालना व पपेट बनाना आदि आ जाता है, जिससे आपको काम के दौरान काफी आसानी होती है।


संभावनाएं

एक पपेटियर विभिन्न जगहों पर काम की तलाश कर सकता है। आजकल टीवी के विभिन्न चैनलों में ऐसे कई शोज आते हैं, जिनमें कठपुतली या साफट टॉयज को बतौर पपेट इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में आप वहां पर काम ढूंढ सकते हैं। अगर आप पपेट को हैंडल करने के साथ−साथ कई तरह की आवाजें निकालने में सक्षम है तो टीवी चैनलों में का मिलना काफी आसान हो जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्कूल्स, पार्टी व अन्य जगहों पर पपेट शोज करवाए जाते हैं, आप वहां भी काम कर सकते हैं। इतना ही नहीं, जो लोग इस कला को सीखना चाहते हैं, उन्हें आप इसे सिखाकर भी पैसा कमा सकते हैं।

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आमदनी

इस क्षेत्र में आमदनी पूरी तरह से आपके स्किल्स पर निर्भर है। अगर आपके शोज लोगों को पसंद आते हैं तो आप इस क्षेत्र में अच्छी कमाई कर सकते हैं। वहीं किसी टीवी चैनल से जुड़कर काम करने में भी आप 15000−30000 प्रतिमाह आसानी से कमा सकते हैं।


प्रमुख संस्थान

यूनियन इंटरनेशनल डी लॉ मेरियनेट (यूनिमा), कोलकाता

जामिया मिलिया इस्लामिया विवि, दिल्ली।

मुंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई

वरूण क्वात्रा

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