राजनीति में भद्रता की मिसाल थे अरुण जेटली, उन पर धमकाने का आरोप लगाना घटिया राजनीति है

राहुल गांधी के बयान पर भाजपा नेता तो पलटवार कर ही रहे हैं साथ ही स्वर्गीय अरुण जेटली के पुत्र रोहन जेटली ने भी राहुल गांधी के बयान को तथ्यात्मक रूप से गलत और दिवंगत नेता की स्मृति के प्रति अनादरपूर्ण बताया है।
खुद कई मामलों में जमानत पर चल रहे राहुल गांधी की सारी राजनीति आरोप लगाते रहने पर ही टिकी हुई है। वह भारत में बोलें या विदेशी धरती पर, उनके संबोधनों में सिर्फ भारत की सरकार और भारत के संवैधानिक संस्थान ही निशाने पर होते हैं। राहुल गांधी पहले प्रधानमंत्री के लिए 'चौकीदार चोर है' वाली टिप्पणी का उपयोग करते थे, मगर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई तो वह संवैधानिक संस्थानों को चोर बताने लग गये हैं। एक दिन पहले राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के अधिकारियों को धमकाते हुए कहा था कि रिटायर हो जाओगे तब भी तुम्हें ढूँढ़ निकालेंगे और आज उन्होंने उन लोगों पर हमले शुरू कर दिये जोकि इस धरा पर अपना पक्ष रखने के लिए नहीं हैं।
राहुल गांधी ने स्वर्गीय पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली पर जो आरोप लगाये हैं वह बेहद निचले स्तर की राजनीति है। राहुल गांधी अमीर घराने से जरूर हैं लेकिन सभ्यता के मामले में बेहद गरीब हैं क्योंकि वह यह सामान्य-सी बात भी नहीं जानते कि हमारे धर्म और संस्कृति में यही सिखाया जाता है कि स्वर्गीय व्यक्ति के प्रति कभी भी अनादर नहीं प्रकट करना चाहिए। राहुल गांधी आरोप लगा रहे हैं कि अरुण जेटली ने उन्हें धमकाया जबकि असलियत यह है कि स्वर्गीय अरुण जेटली जनवरी 2019 से ही एक तरह से बिस्तर पर थे। हम आपको याद दिला दें कि फरवरी 2019 में जब जेटली को बतौर वित्त मंत्री लोकसभा चुनावों से पहले संसद में अंतरिम बजट पेश करना था तब उनकी अमेरिका में सर्जरी होने की वजह से उनकी जगह वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था। उसके बाद जेटली की जगह पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया था।
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हम आपको यह भी बता दें कि अरुण जेटली की 14 मई 2018 को किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी हुई थी और उसके बाद से वह घर से ही काम कर रहे थे। वह अपने मंत्रालय की बैठकों में भी ऑनलाइन शामिल होते थे और अत्यंत आवश्यक होने पर ही लोगों से मुलाकात करते थे क्योंकि डॉक्टरों ने उन्हें किसी से मिलने से मना किया हुआ था। ऐसे में राहुल गांधी का यह दावा कि अरुण जेटली उन्हें धमकाने गये थे ना सिर्फ सफेद झूठ है बल्कि देश के ईमानदार नेताओं में शुमार रहे व्यक्ति की छवि पर प्रहार भी है। देखा जाये तो राहुल गांधी कहने को तो कांग्रेस के लीगल कॉन्कलेव में बोल रहे थे लेकिन यहां बातें उन्होंने इल-लीगल कह दीं।
दूसरी ओर, राहुल के बयान पर भाजपा नेता तो पलटवार कर ही रहे हैं साथ ही स्वर्गीय अरुण जेटली के पुत्र रोहन जेटली ने भी राहुल गांधी के बयान को तथ्यात्मक रूप से गलत और दिवंगत नेता की स्मृति के प्रति अनादरपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा, “मेरे पिता का 2019 में निधन हो गया था, जबकि कृषि कानून 2020 में पेश किए गए थे। राहुल गांधी का यह दावा समय-सीमा के हिसाब से असंभव है।” रोहन ने यह भी कहा कि अरुण जेटली लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते थे और कभी भी दबाव की राजनीति नहीं करते थे। रोहन ने कहा कि वह संवाद और सहमति निर्माण में विश्वास रखते थे। यदि कोई राजनीतिक मतभेद होता भी, तो वे खुली और रचनात्मक चर्चा के माध्यम से समाधान निकालने का प्रयास करते थे। उन्होंने राहुल गांधी को चेतावनी दी कि दिवंगत नेताओं को राजनीतिक विवादों में न घसीटें। रोहन जेटली ने कहा कि राहुल गांधी ने मनोहर पर्रिकर जी के मामले में भी कुछ ऐसा ही किया था। कृपया departed leaders को शांति से रहने दें।
इस बीच, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने भी राहुल गांधी पर जमकर हमला बोला है। उन्होंने X पर लिखा, “राहुल गांधी के झूठ अब बर्दाश्त से बाहर हैं। वह बार-बार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का नाम अपनी कल्पनाओं से भरे बयानों में घसीटते हैं। यह दावा कि अरुण जेटली जी ने उन्हें कृषि कानूनों पर धमकाया, न सिर्फ हास्यास्पद है बल्कि पूरी तरह से शर्मनाक और घृणित है।” प्रमोद सावंत ने यह भी याद दिलाया कि राहुल गांधी ने स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर के मामले में भी गलत बयान दिए थे। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने राफेल सौदे पर झूठा आरोप लगाने के लिए पर्रिकर जी से मुलाकात का गलत अर्थ प्रस्तुत किया था। ऐसे बयान न केवल तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, बल्कि उन नेताओं की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन समर्पित किया।
बहरहाल, देखा जाये तो राहुल गांधी की यह आदत बन गयी है कि वह राजनीतिक लाभ के लिए दिवंगत नेताओं के नाम और छवि का इस्तेमाल करते हैं। यह न केवल राजनीतिक शिष्टाचार के खिलाफ है बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अनुचित है। साथ ही ऐसे बयानों से न केवल राजनीतिक विमर्श का स्तर गिरता है, बल्कि दिवंगत नेताओं की छवि भी अनावश्यक रूप से विवादों में घसीटी जाती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे तथ्यों के साथ अपनी दलीलें रखें और व्यक्तिगत या मृत नेताओं पर हमले करने से बचें।
-नीरज कुमार दुबे
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