विधानसभा चुनावों में अगर भाजपा हारी तो जरूर बनवाएगी राम मंदिर

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आशीष वशिष्ठ । Nov 14 2018 2:51PM

जिस तरह राम मंदिर मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदूवादी संगठन और भाजपा हवा बनाने में जुटे हैं उससे ऐसा आभास हो रहा है कि क्या मोदी सरकार जल्द ही राम मंदिर पर अध्यादेश लाने वाली है?

जिस तरह राम मंदिर मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदूवादी संगठन और भाजपा हवा बनाने में जुटे हैं उससे ऐसा आभास हो रहा है कि क्या मोदी सरकार जल्द ही राम मंदिर पर अध्यादेश लाने वाली है? ऊपरी तौर पर तो मामला कुछ ऐसा ही दिखाई देता है लेकिन असलियत कुछ और है। असल में आरएसएस, भगवा ब्रिगेड और भाजपा राम मंदिर मुद्दे के ‘करंट’ को मापने के साथ जनमानस का दिल टटोल रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों ने भाजपा को पर्याप्त मात्रा में राजनीतिक प्राणवायु प्रदान की है और इससे उत्साहित भगवा टोली नये सिरे से अयोध्या विवाद को गरमाने में जुट गयी है। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में मोदी सरकार इस मसले पर अध्यादेश लाने से कुछ ज्यादा करने की स्थिति में नहीं है। राजनीतिक गलियारों से जो हवाएं छनकर आ रही हैं वो यह संदेश दे रही हैं कि मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर पर अध्यादेश लाएगी। राम मंदिर अध्यादेश की खबर ऊपरी हवा है। अंदरखाने भगवा टोली पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों पर नजरें गड़ाए है और पांच राज्यों के चुनाव नतीजे ही राम मंदिर निर्माण का भविष्य तय करेंगे।

आरएसएस और हिंदूवादी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद की सुनवाई की तारीख से पूर्व ही मोदी सरकार पर राम मंदिर के लिये अध्यादेश लाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था। संघ प्रमुख ने चेतावनी भरे लहजे में सरकार को इस बाबत कोई ठोस कदम उठाने का फरमान सुनाया है। संघ, हिन्दूवादी संगठनों और जनमानस से मिल रही प्रतिक्रियाओं के बीच मोदी सरकार के सामने राम मंदिर का मुद्दा सुरसा के मुंह की भांति खड़ा हो गया है। यह बात सच है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मोदी सरकार की मुश्किल बढ़ा दी है, लेकिन एक सच यह भी है कि इस फैसले से बीजेपी को नया चुनावी मुद्दा भी मिल सकता है। यदि विकास के नाम पर भाजपा के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत मिलती है तो संभव है कि मोदी सरकार राम मंदिर निर्माण पर अध्यादेश के बारे में विचार भी न करे, लेकिन कहीं अगर उसके हाथ हार लगी तो हिंदुत्व की शरण में जाने के सिवाय बीजेपी के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। 

राम मंदिर की सियासत के उबाल के बीच मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में बिल पेश किए जाने या सत्र के बाद अध्यादेश का सहारा लेने के सियासी नफा नुकसान तौलने में पूरी तरह जुट गई है। सरकार, भाजपा और संघ का एक बड़ा धड़ा शीतकालीन सत्र में बिल पेश कर कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष को सियासी पिच पर बैकफुट पर धकेलने के पक्ष में है। 11 दिसंबर को पांच राज्यों के चुनाव नतीजे देश के सामने होंगे। इसके बाद पूरे घटनाक्रम में नाटकीय मोड़ आ सकता है। दिसंबर के दूसरे स्पताह में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होगा। रणनीति के तहत मंदिर निर्माण मामले में सरकार फ्रंट फुट पर खेलने के लिए तैयार है। फिलहाल दो विकल्पों- अध्यादेश लाने या बिल पेश किए जाने के प्रश्न पर सरकार, भाजपा, संघ और संतों के बीच गहन विमर्श का दौर जारी है। यदि बीजेपी 2019 लोकसभा चुनाव राम नाम पर लड़ने का मन बनाती है तो उसके पास दो विकल्प होंगे, पहला- अध्यादेश और दूसरा शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने का। जानकारों की माने तों अगर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए तो राम मंदिर मामले में सरकार दो टूक निर्णय लेगी।

पिछले दिनों दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित धर्मादेश कार्यक्रम में देशभर से आए साधु-संतों ने राम मंदिर निर्माण के लिए प्रस्ताव पास किया है। इस मौके पर संत समाज ने कहा कि अब राम मंदिर के निर्माण को लेकर किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा, इसके लिए सरकार जल्द से जल्द अध्यादेश लेकर आए या फिर कानून बनाए। धर्मादश में स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि, अगर सरकार 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर बनवाने में नाकाम रहती है तो भगवान उन्हें सजा देगा।  राममंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार चैतरफा दबाव में है। लेकिन इस दबाव ने राफेल के मुद्दे की आवाज दबाने के साथ भाजपा को विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का मौका दिया है। राम मंदिर के लिए हिलोरे लेते लहरों के बीच भाजपा अपने सियासी नफे-नुकसान का गणित समझने में जुटी है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और प्रवक्ताओं से कहा गया है कि मंदिर बनने वाला है इस तरह का माहौल बनाया जाए। और ऐसी बयानबाजी की जाए कि कि सिर्फ नरेंद्र मोदी ही राम मंदिर जैसे मुश्किल मुद्दे पर फैसला कर सकते हैं। इसके बाद अगर विधानसभा चुनाव में पार्टी हारी तो सुनी-सुनाई है कि राम मंदिर के नाम पर अध्यादेश आना लगभग तय है।

मोदी सरकार अध्यादेश लाई तो क्या होगा ? सरकार, संघ और भाजपा का एक बड़ा धड़ा शीत सत्र में राम मंदिर निर्माण के लिए बिल पेश करने का पक्षधर है। रणनीतिकारों का मानना है कि बिल से कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष की परेशानी बढ़ेगी। बिल के विरोध की स्थिति में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के नरम हिंदुत्व की हवा निकल जाएगी। हालांकि सरकार के लिए मुश्किल सहयोगियों को मनाना होगा। सवाल है कि क्या इसके लिए लोजपा, अपना दल, रालोसपा जैसे सहयोगी दल सरकार का साथ देंगे ? मंदिर निर्माण के लिए सरकार के पास अध्यादेश भी एक विकल्प है। एक धड़ा किसी की परवाह किए बिना सत्र के तत्काल बाद अध्यादेश लाने के पक्ष में है। शीतकालीन सत्र में भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आने वाले हैं। जानकारों के मुताबिक अध्यादेश की तुलना में सदन के पटल पर विधेयक लाना बीजेपी के लिए ज्यादा मुफीद होगा। हालांकि, लोकसभा में तो बीजेपी इसे पास करा सकती है, लेकिन राज्यसभा में इसकी राह आसान नहीं। ऐसे में कानून न बन पाने का ठीकरा बीजेपी विपक्ष पर फोड़कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। बीजेपी भले ही मंदिर निर्माण में सफल न हो, लेकिन वह कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने का पूरा प्रयास करेगी। 

संघ और भगवा टोली के पास जो फीडबैक है उसके मुताबिक मोदी सरकार की योजनाओं के बलबूते लोकसभा चुनाव में एनडीए का बहुमत पाना उन्हें दूर की कौड़ी मालूम पड़ रही है। संघ ने भाजपा को यह फीडबैक दिया है कि हर बीतते दिन के साथ केंद्र सरकार के प्रति शिकायतें बढ़ रही हैं और कांग्रेस कोई न कोई ऐसा मुद्दा उठाने में कामयाब हो रही है जिसकी चर्चा गांव के चौपाल से लेकर शहर के चौराहे तक हो रही है। वहीं कांग्रेस भी सोशल मीडिया के मंच पर भाजपा को पूरी तरह टक्कर देने लगी है। भाजपा के तमाम नेता और सांसद इस चिंता में घुले जा रहे हैं कि वे अगला चुनाव किस मुद्दे पर लड़ेंगे, मोदी सरकार की किस बात पर वोट मांगेंगे। जन-धन योजना, प्रधानमंत्री आवास, उज्जवला योजना, जन औषधि योजना या प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि का बखान कर वोट नहीं मिलने वाले हैं। ये योजनाएं चुनाव नहीं जिता सकती हैं। इसलिए एक ऐसा सॉलिड ब्रह्मास्त्र चाहिए जिसे लेकर भाजपा के उम्मीदवार गांव-गांव जाएं और प्रचारित करें कि यह काम सिर्फ मोदी ही कर सकता है। ऐस में राम मंदिर से ज्यादा मुफीद और क्या हो सकता है। 

अब ये तय हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर पर फैसला नहीं आने वाला है। 2014 लोकसभा चुनाव के बीजेपी के घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा काफी नीचे था, लेकिन जिस तरह से घटनाक्रम चल रहा है, उससे इस बात की पूरी संभावना बन रही है कि 2019 लोकसभा चुनाव में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सबसे ऊपर होगा। अब तक भाजपा पर इल्जाम लगता था, राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे। लेकिन इस बार भाजपा बदले तेवरों और नये नारे के साथ खड़ी दिख सकती है- राम लला हम आएंगे। तारीख नहीं बताएंगे, सीधे मंदिर बनाएंगे। फिलवक्त राम मंदिर का भविष्य पांच राज्यों के जनादेश पर टिका है। 

-डॉ. आशीष वसिष्ठ

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