रूस और अमेरिकी संबंध और बिगड़े तो विश्व युद्ध का खतरा बढ़ जायेगा

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अशोक मधुप । Mar 18 2023 11:08AM

एक साल से ज्यादा से चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध में अब यह साबित हो गया कि नाटो देश यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर रूस को सबक सिखाना चाहते हैं। उसे तोड़ना चाहते हैं। उनका इरादा रूस की अकड़ खत्म करने का है।

एक साल से ज्यादा से चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध में अमेरिका और नाटों के दखल को देख शायद रूस ने अब इनसे ही सीधे सुलटने का निर्णय ले लिया है। वह इस तरह की पहले से इसकी चेतावनी देता भी रहा है। लगता है कि इसकी शुरुआत उसने कालासागर में अमेरिकी ड्रोन को मार कर कर दी है। उसने अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका को एक तरह से चेतावनी भी दे दी है। अपने इरादे भी बता दिए हैं। घटना को लेकर रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा कि हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। अमेरिका रूस की जासूसी कर रहा है। इसी वजह से ये घटना हुई। रूसी रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि अगर भविष्य में अमेरिका ने कोई उकसावे की कार्रवाई की तो रूस भी उसका 'उचित जवाब' देगा।

एक साल से ज्यादा से चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध में अब यह साबित हो गया कि नाटो देश यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर रूस को सबक सिखाना चाहते हैं। उसे तोड़ना चाहते हैं। उनका इरादा रूस की अकड़ खत्म करने का है। यह खुद तो नहीं लड़ रहे किंतु युद्धरत यूक्रेन की अस्त्र−शस्त्र और अन्य प्रकार की पूरी क्षमता से मदद करने में लगे हुए हैं। रूस भी हालत को समझ गया है। उसने पीठ पीछे की कहानी को आगे करने का निर्णय लिया। इसी के तहत रूस ने काला सागर के ऊपर उड़ते अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया। उसकी ये कार्रवाई बताती है कि उसने अमेरिका और नाटो देशों से अब सीधे निपटने का फैसला कर लिया है। अच्छा है कि नाटो अब भी संभाल जाए। सुधर जाए। रूस के दुश्मन यूक्रेन की परोक्ष और अपरोक्ष रूप से की जाने वाली मदद बंद कर दें। ऐसा न होने पर वह नाटो देशों के विरुद्ध सीधी कार्रवाई कर सकता है।

यूक्रेन एक छोटा-सा देश है। रूस जैसी महाशक्ति से उसका कोई मुकाबला नहीं। यूक्रेन नाटो में शामिल होने के प्रयास में लगा था। रूस चाहता था कि यूक्रेन नाटो गठबंधन में शरीक न हो। रूसी राष्ट्रपति पुतिन  यूक्रेन को रूस का हिस्सा मानते रहे हैं। पुतिन की सदा मंशा रही कि वो रूस को साल 1991 से पहले यानि सोवियत संघ के विघटन से पहले वाले स्वरूप में वापस लेकर आएं। यूक्रेन रूस का हिस्सा बन जाए। वह ऐसा नहीं कर पाए। उधर यूक्रेन नाटों में शामिल होने के प्रयास में लग गया। इससे उन्हें लगा कि यदि ऐसा हो गया तो नाटो की सेनाएं यूक्रेन में आ जाएंगी। यूक्रेन की और रूस की सीमा सटी है। नाटो की सेनाएं यूक्रेन में आकर रूस के लिए परेशानी ही पैदा करेंगी। साथ ही उसकी यूक्रेन के रूस में मिलाने की योजना भी धूसरित हो जाएगी।

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यूक्रेन पूरी क्षमता से नाटो में शामिल होने के प्रयास में लगा था। रूस के मना करने की अपील का उस पर असर नजर नही आ रहा था। ऐसे में उसे सबक सिखाने में लिए रूस ने ये हमला किया। उसने इसे छोटा  सैन्य आपरेशन नाम दिया। रूस ने हमला ये सोचकर किया कि यूक्रेन के नाटों में शामिल होने के बाद नाटो देश उसका साथ देंगे, पहले नहीं, किंतु एक साल से चल रहे युद्ध ने स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका और नाटो देश खुद युद्ध नहीं लड़ रहे, अपितु वे यूक्रेन को युद्ध लड़ा रहे हैं। मदद कर रहे हैं। खुद युद्ध के मैदान में नही हैं किंतु हथियार और गोला बारूद उनका है। सिर्फ लड़ने वाले उनके सैनिक नहीं हैं। वे सिर्फ यूक्रेन के जवान हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, तकरीबन 30 देशों ने भारी तादाद में यूक्रेन को हथियार और जरूरी चीजें मुहैया कराईं। ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों ने भी ऐलान किया है कि यूक्रेन को विध्वंसकारी टैंक जैसे- 'चैलेंजर 2 टैंक' और 'लेपर्ड 2 टैंक' यूक्रेन को मुहैया कराये जाएंगे। यूक्रेन को सबसे ज्यादा मदद अमेरिका कर रहा है। अमेरिका ने यूक्रेन को 90 स्ट्राइकर भेजे हैं। इसके अलावा, अमेरिका ने यूक्रेन को 59 ब्रेडली इन्फैंट्री लड़ाकू विमान भेजे हैं। रूस के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिका लगातार अपने हथियारों का जखीरा यूक्रेन को दे रहा है। गौरतलब है कि रूस लगातार यह बात कहता आया है कि यह युद्ध यू्क्रेन के अलावा अमेरिका भी लड़ रहा है।

रूस लंबे समय से अमेरिका और नाटो देशों को चेतावनी दे रहा है कि यूक्रेन की मदद की तो ठीक नहीं होगा। वह मदद को सीधा अपने पर हमला मानेगा। कई बार वह परमाणु अस्त्रों के प्रयोग की धमकी भी देता रहा है। यह भी कहा है कि किसी देश की सैटलाइट उनके देश की जासूसी करती मिली, तो वह उस सैटलाइट को मार गिराएगा। अमेरिका और नाटो देशों की कोशिश थी कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसे कमजोर कर दिया जाए। किंतु एक साल बीतने पर भी ऐसा नहीं हो सका। रूस पेट्रोलियम उत्पाद का बड़ा केंद्र है। यह यूरोपियन देशों को पेट्रोलियम पदार्थ गैस आदि की आपूर्ति करता रहा है। युद्ध के दौरान उसने भारत और चीन को सस्ते पेट्रोलियम उत्पाद बेचकर अपनी आर्थिक हालत मजबूत बनाए रखी। इसका अमेरिका और नाटो देशों ने विरोध किया। भारत ने तो साफ कर दिया कि वह अपनी जरूरत का सामान उस देश से लेगा, जिससे उसे लाभ होगा। उसके हित सिद्ध होंगे। चीन के बारे में दुनिया जानती है, इसलिए उसने भी किसी की नहीं सुनी। रूस की मजबूती का एक कारण दुनिया के कई देशों को शस्त्रों की आपूर्ति भी है। वह लगातार जारी है।

इस युद्ध की सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध रूस की जमीन पर नहीं लड़ा जा रहा। युद्ध यूक्रेन की भूमि पर लड़ा जा रहा है। युद्ध का मैदान बना होने के कारण बर्बाद यूक्रेन हो रहा है, रूस नहीं। रूस ने युद्ध के दौरान भारत को एस 400 मिसाइल डिफैंस सिस्टम की तीसरी यूनिट ही नहीं दी, बल्कि वह पुराने करार के अनुरूप भारत समेत अन्य देशों को शस्त्र दे रहा है। उसके कल कारखाने पहले की तरह की काम कर रहे हैं। अभी रूस और ईरान के बीच 24 सुखोई विमान बेचने का सौदा हुआ है। उधर रूस भारत में सुपर सुखोई सुपर जेट और उसके कलपुर्जे बनाने की बात चला रहा है। रूस भारत का लंबे समय से सच्चा मित्र  रहा है। भारत की समय−समय पर पूरी ताकत से मदद भी की है।

   

उधर युद्ध का मैदान बना होने के कारण यूक्रेन बर्बाद होने के कगार पर है। उसके यहां जरूरत के सामान की कमी होने लगी है। उद्योग धंधे बमबारी और मिसाइल हमले से बर्बाद हो रहे हैं। कृषि भूमि और खेत खाली पड़े हैं। यूक्रेन की मदद करने वाले अमेरिका और नाटो देश, यूक्रेन में प्रयोग होने वाले संसाधन और जरूरत के सामान की आपूर्ति कर रहे हैं। इतना ही नहीं जरूरत के शस्त्र और गोला बारूद भी दे रहे हैं। उनकी इस कार्रवाई से उनके देश की अर्थव्यवस्था ही प्रभावित हो रही है। उधर रूस अमेरिका और नाटो देशों द्वारा यूक्रेन की की जा रही मदद को लेकर परेशान है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कुछ ही दिन में यूक्रेन को विजयी करने का इरादा रखते थे। लगातर लंबे चलते युद्ध और अमेरिका समेत नाटो देशों के यूक्रेन की मदद से वे झल्लाए हैं। परेशान हैं। वे देख रहे हैं कि नाटों देशों के राष्ट्राध्यक्ष चोरी छिपे यूक्रेन का दौरा कर रहे हैं। युद्ध के एक साल पूरा होने के आसपास अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन यूक्रेन जा चुके हैं। माना जाता है कि यूक्रेन को दौरा कर उन्होंने उसका हौसला ही नहीं बढ़ाया, बल्कि सब तरह की सहायता का आश्वासन भी दिया है।

देखना यह है कि रूस की अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने की कार्रवाई को अमेरिका या मित्र देश कैसे लेते हैं। लगता है कि अब रूस मित्र देशों द्वारा यूक्रेन को भेजी जा रही आपूर्ति रोकने की कार्रवाई करेगा। सहायता सामग्री लेने वाले विमान या जलपोत को भी वह निशाना बना सकता है। ऐसे में अमेरिका और मित्र देश जवाब देने के लिए खुद आगे आएंगे, ऐसा नहीं लगता। यदि वे जवाब देने के लिए आगे आए तो सीमित क्षेत्र में लड़ा जा रहा यह युद्ध बड़ा आकार ले लेगा। यह विश्व युद्ध की ओर भी जा सकता है।

-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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