दुर्लभ खनिजों पर दुनिया को एकजुट करने की पहल, मोदी ने दी चीन को कूटनीतिक चुनौती

हम आपको यह भी बता दें कि भारत चीन की आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने के लिए पहले से ही कई उपायों पर काम कर रहा है। इसके लिए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और अफ्रीका के देशों के साथ क्रिटिकल मिनरल्स पर साझेदारी की जा रही है।
रियो डी जेनेरो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा और उसे भू-राजनीतिक दबाव से मुक्त रखने की ज़रूरत को जोरदार ढंग से उठाया। उनका यह भाषण ऐसे समय में आया है जब चीन विश्व की 90% से अधिक दुर्लभ खनिज (rare earth) प्रसंस्करण क्षमता पर नियंत्रण रखता है और हाल ही में इन संसाधनों के निर्यात पर प्रतिबंध जैसी कार्रवाइयों से उसने वैश्विक चिंताओं को जन्म दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी प्रधानमंत्री की उपस्थिति में यह चेतावनी दी कि रणनीतिक संसाधनों का "हथियारकरण" वैश्विक असंतुलन को जन्म देगा। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि कोई भी देश इन संसाधनों का अपने निजी स्वार्थ या दूसरों के खिलाफ हथियार के रूप में उपयोग न करे। हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, परंतु संदर्भ और समय को देखते हुए यह टिप्पणी चीन के संदर्भ में एक अप्रत्यक्ष आलोचना के रूप में देखी जा रही है।
प्रधानमंत्री के भाषण के मायने
हम आपको बता दें कि चीन की दुर्लभ खनिजों पर पकड़ स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों, सेमीकंडक्टर और एआई जैसे भविष्य के उद्योगों को नियंत्रित करने का माध्यम बनती जा रही है। हाल में चीन द्वारा इन खनिजों के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों ने अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे देशों को आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा को लेकर सचेत और चिंतित किया है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स मंच से अपने भाषण में यह स्पष्ट किया कि वैश्विक ऊर्जा संक्रमण और तकनीकी नवाचार के लिए क्रिटिकल मिनरल्स– जैसे लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और दुर्लभ मृदा तत्व अनिवार्य हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि इन खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला कुछ देशों के एकाधिकार में है, जो वैश्विक असंतुलन का कारण बन सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों से सामूहिक रूप से इस चुनौती से निपटने का आह्वान करते हुए कहा, “हमें मिलकर क्रिटिकल मिनरल्स और तकनीक की आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित और विश्वसनीय बनाना होगा।”
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देखा जाये तो यह संदेश केवल चीन की नीति के विरोध में नहीं था, बल्कि ब्रिक्स के भीतर सहयोग और विविधीकरण के नए अवसरों को तलाशने की दिशा में एक सक्रिय पहल भी थी। इसलिए मोदी ने एक "ब्रिक्स क्रिटिकल मिनरल्स साझेदारी (BCMP)" की स्थापना का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत सदस्य देश इन संसाधनों की खोज, निष्कर्षण और प्रसंस्करण में सहयोग कर सकें। साथ ही आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविध और लचीला बनाया जा सके तथा ग्लोबल साउथ के देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता दी जा सके। भारत की यह पहल वैश्विक जलवायु लक्ष्य प्राप्ति के साथ-साथ घरेलू मैन्युफैक्चरिंग, विशेषकर इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और सेमीकंडक्टर उद्योगों को बल देने की रणनीति का हिस्सा है।
साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने केवल खनिजों तक सीमित न रहकर वैश्विक शासन प्रणाली में भी व्यापक बदलाव की मांग की। उन्होंने कहा कि “अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं 21वीं सदी की वास्तविकताओं को दर्शाएं और विकासशील देशों को सशक्त आवाज़ दें।” हम आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), IMF, विश्व बैंक और WTO जैसे संस्थानों में सुधार की मांग भारत द्वारा लंबे समय से की जा रही है और यह भाषण उस नीति की निरंतरता है।
हम आपको यह भी बता दें कि भारत चीन की आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने के लिए पहले से ही कई उपायों पर काम कर रहा है। इसके लिए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और अफ्रीका के देशों के साथ क्रिटिकल मिनरल्स पर साझेदारी की जा रही है। खनिज सुरक्षा साझेदारी जैसे अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क में भागीदारी की गयी है। साथ ही घरेलू स्तर पर दुर्लभ खनिजों की खोज और उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। देखा जाये तो यह केवल आर्थिक सुरक्षा नहीं, बल्कि रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी निर्णायक कदम है।
हम आपको यह भी बता दें कि पिछले सप्ताह अमेरिका में संपन्न क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने और आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविध बनाने के उद्देश्य से ‘क्वाड क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव’ की शुरुआत करने पर भी सहमति बनी है। यह कदम आर्थिक सुरक्षा को मज़बूती देने की दिशा में एक व्यापक प्रयास का हिस्सा है, जो चीन द्वारा इस क्षेत्र में मूल्य हेरफेर समेत अन्य दबावयुक्त रणनीतियों की चिंताओं के मद्देनज़र उठाया गया है।
ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत के पास आयेगी
प्रधानमंत्री मोदी का ब्रिक्स मंच से दिया गया संदेश इस बात का प्रमाण है कि भारत अब भविष्य की सामरिक अर्थव्यवस्था के केंद्र में रहना चाहता है, वह केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि संचालक और नीति-निर्माता के रूप में उभर रहा है। चीन के खनिज प्रभुत्व के विरुद्ध सामूहिक वैश्विक सोच को आकार देने के लिए प्रधानमंत्री का यह भाषण एक निर्णायक मोड़ साबित होगा। हम आपको यह भी बता दें कि भारत अगले वर्ष ब्रिक्स की अध्यक्षता करेगा। प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में कहा है कि अगले वर्ष भारत की ब्रिक्स अध्यक्षता में “मानवता सर्वप्रथम” दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। उन्होंने कहा, “जिस प्रकार हमने अपनी अध्यक्षता के दौरान जी-20 को व्यापकता दी, एजेंडे में ‘ग्लोबल साउथ’ के मुद्दों को प्राथमिकता दी, उसी प्रकार ब्रिक्स की अध्यक्षता के दौरान हम इस मंच को जन-केंद्रित और मानवता सर्वप्रथम की भावना के साथ आगे ले जाएंगे।” उन्होंने कहा, “भारत की ब्रिक्स अध्यक्षता के तहत, हम ब्रिक्स को एक नये रूप में परिभाषित करने के लिए काम करेंगे। ब्रिक्स का अर्थ होगा- सहयोग और स्थिरता के लिए लचीलेपन तथा नवाचार का निर्माण करना।”
मोदी और चीनी प्रधानमंत्री की मुलाकात
इसके अलावा, ब्रिक्स बैठक के इतर प्रधानमंत्री मोदी और चीनी प्रधानमंत्री ली क्यांग के बीच अनौपचारिक मुलाक़ात हुई। सूत्रों के अनुसार, यह बातचीत सीमित समय की थी परन्तु रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का स्पष्ट कहना है कि भारत-चीन संबंधों का सामान्यीकरण LAC (Line of Actual Control) पर शांति और यथास्थिति की बहाली पर निर्भर करता है। इसके अलावा, हाल में कई स्तरों की वार्ताओं के दौरान भारत ने चीन के साथ व्यापार घाटे का मुद्दा भी उठाया और बाजार तक न्यायसंगत पहुंच की बात की। हम आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच लगातार क्रिटिकल टेक्नोलॉजी, जलवायु परिवर्तन और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की जा रही है। साथ ही विदेश मंत्री एस जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने के लिए चीन जाने वाले हैं। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 2020 के सैन्य गतिरोध के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव आने के बाद, जयशंकर की यह पहली चीन यात्रा होगी। बताया जा रहा है कि विदेश मंत्री 14 और 15 जुलाई को आयोजित होने वाले एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए तियानजिन जाने से पहले अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ वार्ता करने को लेकर बीजिंग की यात्रा करेंगे। जयशंकर की यह यात्रा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीनी शहर चिंगदाओ की यात्रा के कुछ ही हफ्तों बाद हो रही है। हम आपको बता दें कि चीन एससीओ का वर्तमान अध्यक्ष है और वह समूह की बैठकों की मेजबानी कर रहा है।
बहरहाल, देखा जाये तो भारत की नीति अब "विरोध के साथ संवाद" वाली प्रतीत हो रही है— अर्थात जहाँ आवश्यक हो वहाँ प्रतिरोध और जहाँ संभव हो वहाँ सहयोग। यह संतुलन भारत की स्वायत्त रणनीतिक स्थिति को मजबूती प्रदान करता है। कुल मिलाकर देखें तो ब्रिक्स बैठक में प्रधानमंत्री मोदी की दमदार उपस्थिति न केवल भारत के आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों की अभिव्यक्ति थी, बल्कि यह भी संकेत थी कि भारत अब क्रिटिकल मिनरल्स जैसी जटिल वैश्विक चुनौतियों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने को तैयार है। चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता में संयम और स्पष्टता दोनों का प्रदर्शन करके भारत ने यह भी सिद्ध किया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता किए बिना संवाद की नीति पर कायम है। आने वाले समय में यह संतुलन भारत को ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्ता के रूप में और अधिक सशक्त करेगा।
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