ईमानदार और विश्वस्त नेता जेटली ने देश को आर्थिक मोर्चे पर कई उपलब्धियाँ दिलाईं

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जेटली की वाकपटुता और उनकी प्रशासनिक क्षमता के वाजपेयी भी कायल थे तभी पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार में जेटली की तरक्की कर उन्हें राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बना दिया था और उन्हें देश के वाणिज्य, कंपनी मामले और कानून मंत्रालय का प्रभार सौंपा था।

नयी सरकार में अरुण जेटली मंत्री नहीं बन रहे हैं इससे भले किसी अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता के लिए रायसीना हिल्स स्थित अहम मंत्रालय में स्थान प्राप्त करना आसान हो जाये लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह वाकई एक कठिन समय है जब वह अपने निकट मित्र और सहयोगी को कैबिनेट में शामिल नहीं कर पाएंगे। अरुण जेटली मोदी के लिए कितना मायने रखते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि 2014 में अमृतसर से अरुण जेटली के चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था और शुरू में वित्त और रक्षा जैसे दो महत्वपूर्ण मंत्रालय एक साथ सौंपे थे। जब मनोहर पर्रिकर गोवा वापस चले गये तब एक बार फिर रक्षा मंत्रालय का कार्यभार अस्थायी तौर पर जेटली को ही दिया गया था।

वैसे तो मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री के बाद वरिष्ठता के लिहाज से गृहमंत्री को दूसरे स्थान पर माना जाता है लेकिन मोदी मंत्रिमंडल में पूरे समय यह स्थान अरुण जेटली के पास ही रहा। अरुण जेटली का स्वास्थ्य पिछले लगभग डेढ़ साल से ठीक नहीं है और दो बार तो उन्हें जब इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस दौरान उनके मंत्रालय का कार्यभार पीयूष गोयल को अस्थायी तौर पर सौंपा गया। इस साल जब सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया था तो उसे पीयूष गोयल ने ही बतौर वित्त मंत्री पेश किया।

जीवटता की मिसाल हैं जेटली

अरुण जेटली ने इस दौरान कभी भी अपनी बीमारी को अपनी जिम्मेदारी पर हावी नहीं होने दिया। डॉक्टरों ने उन्हें संक्रमण से बचने के लिए लोगों के संपर्क में आने से बचने की सलाह दी तो वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठकों को संबोधित करने लगे। अस्पताल जाने से पहले अधिकारियों के साथ बैठक और अस्पताल से आने के बाद अधिकारियों के साथ बैठक करना, यह जीवटता जो उन्होंने दिखायी है वह कम लोगों में ही देखने को मिलती है।

शुरू से ही रहे हैं भाजपा के दिग्गज नेता

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी यह बात सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि उनके और आडवाणी के बाद वह प्रमोद महाजन और अरुण जेटली में भाजपा का भविष्य देखते हैं। अरुण जेटली की वाकपटुता और उनकी प्रशासनिक क्षमता के वाजपेयी भी कायल थे तभी पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार में जेटली की तरक्की कर उन्हें राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बना दिया था और उन्हें देश के वाणिज्य, कंपनी मामले और कानून मंत्रालय का प्रभार सौंपा था।

संगठन में भी दिखाया है कमाल

अरुण जेटली सिर्फ सरकार में ही अपनी क्षमताएं दिखा पाए हों ऐसा नहीं है। भाजपा संगठन को जब-जब उनकी जरूरत पड़ी वह तब-तब सामने खड़े रहे। आज जिस तरह अमित शाह को जीत दिलाने वाले नेता के रूप में देखा जाता है उसी प्रकार अरुण जेटली के पास जिस राज्य का प्रभार रहा वहां भाजपा की सत्ता आ जाती थी। दक्षिण के किसी राज्य में जब पहली बार कमल खिला तो उसमें जेटली की बड़ी भूमिका थी। कर्नाटक में पहली बार भाजपा सरकार बनवाने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की। यही नहीं जेटली मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के अलावा कई अन्य राज्यों में भी अपने सांगठनिक कौशल का लोहा मनवा चुके हैं। 

वित्त मंत्री के रूप में जेटली जहाँ पूरे कार्यकाल में देश की आर्थिक सेहत की देखभाल करते रहे वहीं राजनीतिक मोर्चे पर भी सरकार के खेवनहार रहे। राफेल मामले पर संसद में हुई बहसों पर सरकार की ओर से उन्होंने ही जवाब देने की जिम्मेदारी संभाली और समय-समय पर अपने ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से सरकार की नीतियों और उपलब्धियों को जनता तक सरल तरीके से पहुँचाया और विपक्ष के आरोपों और अभियानों का जवाब भी दिया।

जेटली-मोदी की दोस्ती

अरुण जेटली की मोदी से करीबी जगजाहिर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी ने जब अरुण जेटली को 1999 में पहली बार अपनी सरकार में बतौर सूचना प्रसारण राज्यमंत्री शामिल किया तो उन्हें गुजरात से राज्यसभा लाया गया। गुजरात से सांसद जेटली ने अपने मित्र नरेन्द्र मोदी को राज्य का मुख्यमंत्री बनवाने के लिए लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर काफी प्रयास किये थे। यही नहीं गुजरात दंगों के बाद जब मोदी सरकार कानूनी चक्करों में फंसी तो जेटली एक तरह से उसके कानूनी सलाहकार के तौर पर खड़े रहे। अमित शाह के खिलाफ भी जब कुछ मामले लगाये गये तो अरुण जेटली ही उन्हें आगामी कदमों की सलाह देते थे। यही कारण है कि मोदी और शाह, दोनों की पसंद हैं जेटली। अरुण जेटली ही एकमात्र ऐसे शख्स हैं जिनके लिए मोदी ने यह कहा होगा कि यह मुझसे ज्यादा योग्य व्यक्ति हैं। जेटली जब 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से लड़ रहे थे तब भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी ने यह बात कही थी।

जेटली पर पूरा विश्वास करते हैं मोदी

आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को विपक्ष ने ही नहीं अपने लोगों ने भी खूब घेरा। खासतौर पर नोटबंदी के फैसले के बाद मची अफरातफरी, जीएसटी को लेकर कारोबारियों को हुई परेशानियों आदि ने सरकार की मुश्किलें भले खूब बढ़ाईं, लेकिन प्रधानमंत्री का पूरा विश्वास अरुण जेटली पर बना रहा। यह प्रधानमंत्री का जेटली पर विश्वास ही था कि 2014 में राजग के सत्ता संभालने से पहले भारत अर्थव्यवस्था विकास दर मामले में विश्व में जहां 11वें नंबर पर था वहीं पहली सरकार का कार्यकाल खत्म होने पर वह लंबी छलांग लगा कर छठे नंबर पर था।

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यह सही है कि विपक्ष को सरकार की आलोचना का हक है लेकिन निगाहें आलोचनात्मक ही रहेंगी तो उपलब्धियों पर नजर नहीं जाएंगी। कोई कुछ भी कहे लेकिन वित्त मंत्री के रूप में जेटली की उक्त उपलब्धियों से इंकार नहीं किया जा सकता।

-नोटबंदी के बाद उपजे हालातों को बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बेहतरीन तरीके से संभाला था। शुरुआत में लोगों को जिस तरह परेशानियां आती रहीं, उनका दैनिक आधार पर सरकार की ओर से हल निकाला जाता था। विपक्ष अकसर सवाल करता है कि नोटबंदी से देश को क्या लाभ हुआ। लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता कि नोटबंदी के बाद के एक साल में बैंकों ने ब्याज दरों में 1 फीसदी तक की कटौती की। साथ ही नोटबंदी के बाद कैशलेस ट्रांजैक्शन को काफी बढ़ावा मिला। यही नहीं कालेधन के खिलाफ लड़ाई में भी नोटबंदी का फैसला काफी काम आया क्योंकि 17.92 लाख ऐसे लोगों की पहचान हुई जिनके बैंक खाते में जमा रकम का मेल उनकी आय से नहीं हुआ।

-जीएसटी को लागू करने की बात लंबे समय से होती रही लेकिन अरुण जेटली के कार्यकाल में ही इसे अमली जामा पहनाया जा सका। जीएसटी पर राज्यों के वित्त मंत्रियों के समूह में विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति बनवाना कोई आसान बात नहीं है। जीएसटी से भी शुरू में छोटे-बड़े कारोबारियों को कई तरह की दिक्कतें आईं लेकिन त्वरित गति से सभी समस्याओं का समाधान किया गया और आज यह व्यवस्था पूरी तरह स्थापित हो चुकी है और बिलकुल सरल हो गयी है।

-कर नहीं बढ़ाकर कर आधार बढ़ाया। इस वर्ष प्रस्तुत अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने पांच लाख रुपये तक की आय को करमुक्त कर दिया था। पूरे पांच वर्ष सरकार ने आयकर में कोई वृद्धि नहीं की। सरकार ने कर का भार नहीं बढ़ाकर करदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए मेहनत की। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में जहां 3.8 करोड़ लोगों ने अपना रिटर्न फाइल किया था वहीं अब 6.8 करोड़ से ज्यादा लोग आयकर रिटर्न फाइल कर रहे हैं।

-विश्व के लिए यह चौंकने का विषय हो सकता है कि पांच साल के अंदर किसी सरकार ने लगभग 34 करोड़ लोगों के बैंक अकाउंट खोल दिये हों। जनधन योजना के तहत लगभग 34 करोड़ खाते खुलवाना वित्त मंत्री की एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। इन खातों के खुलने से सरकार और जनता को क्या लाभ हुआ है इस बात को इससे समझा जा सकता है कि जनधन खातों में जमा राशि करीब 85 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। साथ ही जनधन खाते खुलने और उनके आधार नंबर से लिंक होने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुँच रहा है और बीच में होने वाली लीकेज बंद हो गयी है।

-बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रुपे कार्ड जारी करने का नया रिकॉर्ड बनाया और इसमें ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी के साथ माइक्रो यूनिट के लिए क्रेडिट गारंटी की योजना भी जोड़ी। इसके अलावा नोटबंदी के बाद ऑनलाइन भुगतान प्रणाली को पहले से बेहतर और सरल बनाते हुए इसका उपयोग करने पर कई प्रकार की विशेष छूट का प्रावधान कर इसे लोकप्रिय बनवाया।

-विदेशों में जमा कालेधन और अवैध संपत्ति के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया गया और टैक्स हेवेन समझे जाने वाले देशों के साथ नये सिरे से समझौते किये गये ताकि देश का पैसा विदेश ले जाने वालों को भारतीय कानून की गिरफ्त में आसानी से लाया जा सके।

-फर्जी कंपनियों की पहचान कर उन्हें बंद किया। नोटबंदी के बाद करीब 2.24 लाख से ज्यादा ऐसी कंपनियों को बंद कर दिया गया, जिन्होंने 2 साल से कोई भी कामकाज नहीं किया। साथ ही 3 लाख डायरेक्टरों को अयोग्य घोषित किया गया।

-महँगाई को काबू में रखने में सफल रही सरकार। बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली को सबसे ज्यादा इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने महँगाई को काबू में रखा। हालांकि सरकार पर इस बात के आरोप लगे कि उसने मुद्रास्फीति को मापने के तरीके बदल दिये लेकिन यहाँ इस बात पर गौर करना चाहिए कि जब वैश्विक रेटिंग एजेंसियां भारत सरकार के इन आंकड़ों को पूरी तरह परख कर भारतीय अर्थव्यवस्था की सुनहरी तसवीर पेश कर रही हैं तो आंकड़ों की आलोचना स्वतः खारिज हो जाती है।

-ईज ऑफ डुइंग बिजनेस वाले देशों की सूची में भारत लगातार शानदार उछाल मार रहा है। विश्व बैंक ने 2019 में जो सूची जारी की है उसमें भारत ने 23 अंकों का जोरदार उछाल मारकर 77वीं रैंक हासिल की है जबकि 2017 में भारत 100वें नंबर पर था। इससे पहले 2018 में भारत 30 अंकों के शानदार उछाल के साथ 100वें नंबर पर आया था।

-वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 13 साल बाद भारत की रेटिंग अरुण जेटली के कार्यकाल में ही सुधारी। यही नहीं हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार के लिए तब एक अच्छी खबर आई थी जब विश्व बैंक ने अनुमान लगाया कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत की विकास दर में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिलेगी और अगले दो सालों में यह बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो जाएगी। विश्व बैंक के मुताबिक भारत में बढ़ती मांग और निवेश के कारण यह वृद्धि देखने को मिलेगी। विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी भी साफ कर चुके हैं कि भारत का लक्ष्य विश्व में तेजी से बढ़ रही तीन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होना है।

-प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत बड़ी संख्या में स्वरोजगार के लिए लोन बांटना रहा हो या देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बड़ी संख्या में आकर्षित करना रहा हो या विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड वृद्धि करना हो या फिर प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना या फिर होम लोन की दरों को लगभग नियंत्रित रखना, यह सब भी अरुण जेटली की बड़ी उपलब्धियां रही हैं।

बहरहाल, कहा जा सकता है कि एक ईमानदार राजनीतिज्ञ का सक्रिय राजनीति से दूर होना जहाँ पार्टी के तौर पर भाजपा के लिए झटका है वहीं संसदीय लोकतंत्र के लिए भी यह सही नहीं रहा। प्रशासनिक कार्यों में दक्ष, प्रखरता से अपनी बात देश-विदेश में रखने वाला राजनीतिज्ञ, संसद में अपने ओजस्वी और तर्कपूर्ण भाषणों से अपनी पार्टी का पक्ष रखने वाले कुशल वक्ता और समय-समय पर खड़ी हो जाने वाली राजनीतिक समस्याओं का हल निकाल देने वाले 'जादूगर' अरुण जेटली के बेहतर स्वास्थ्य के लिए देश दुआएं कर रहा है ताकि वह फिर पूरे जोश के साथ कामकाज संभाल सकें।

-नीरज कुमार दुबे

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