भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू नहीं सुभाष चंद्र बोस थे

pm-modi-to-honour-subhas-chandra-bose-s-legacy-from-ramparts-of-red-fort
तरुण विजय । Oct 20 2018 10:13PM

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस हैं और आशा की जानी चाहिए कि इतिहास की भूल को सुधार कर संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव लेकर सुभाष चंद्र बोस को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का स्थान दिया जायेगा।

अचानक एक कार्यक्रम तय हुआ कि इक्कीस अक्टूबर को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी लाल किले से तिरंगा फहराएंगे और नेताजी सुभाष बोस की याद में वहां एक संग्रहालय का भी उद्घाटन करेंगे। क्यों ? 

भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के नाते पंडित नेहरू का हम सम्मान करते हैं लेकिन क्या 1943 में स्थापित आज़ाद भारत की प्रथम अस्थायी एवं विदेशस्थ सरकार के राष्ट्राध्यक्ष के नाते सुभाष चंद्र बोस को  माना जा सकता है ? इस पर विचार होना चाहिए। और आशा की जानी चाहिए कि इतिहास की भूल को सुधार कर संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव लेकर सुभाष चंद्र बोस को भारत की प्रथम अस्थायी एवं विदेशस्थ सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री का स्थान दिया जायेगा।

सिंगापुर में ही उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज की एक प्रकार से पुर्नस्थापना की, क्योंकि 1942 में मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिन्द फौज उसी वर्ष दिसम्बर में विघटित कर दी गयी थी। अब अनेक ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकारें सुभाष बोस के भारत स्वतंत्र कराने के अभियान को मदद देना चाहती थीं पर उनको इसके लिए आवश्यक था एक ऐसा सरकार का ढांचा जिसे वे मान्यता दे सकें। इसलिए सुभाष बोस ने 21 अक्टूबर को आरज़ी हुकूमत ए आज़ाद हिन्द की स्थापना कर स्वयं उसके राष्ट्राध्यक्ष का पद संभाला। 

यह भारत की बाहर घोषित भारत की प्रथम स्वतंत्र सरकार थी जिसे ग्यारह देशों ने मान्यता दी- इनमें जर्मनी, इटली, नानकिंग चीन, थाईलैंड, बर्मा, क्रोएशिआ, फिलीपींस, मंचुटो और जापान शामिल थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को मिल रही अंतरराष्ट्रीय सहायता और मान्यता ब्रिटिश सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय थी और भारत को 1947 में मिली आज़ादी का कारण गाँधी जी का अहिंसावादी आंदोलन नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के बढ़ते कदम थे। 1943 में स्थापित आज़ाद भारत की प्रथम सरकार के राष्ट्राध्यक्ष के नाते भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस हैं और आशा की जानी चाहिए कि इतिहास की भूल को सुधार कर संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव लेकर सुभाष चंद्र बोस को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का स्थान दिया जायेगा।

1943 में आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के बाद उनकी सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप आज़ाद कराया और उसका नाम शहीद और स्वराज रखा। उसके बाद आज़ाद हिन्द फौज ने मणिपुर में मोइरांग पर कब्ज़ा किया और कोहिमा से दिल्ली की और बढ़ना शुरू किया। 'चलो दिल्ली' का नारा इसी समय दिया गया था। आज भारत की सेना और हर देशभक्त जिस नारे के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं उस जय हिन्द का नारा भी सुभाष चंद्र बोस का दिया हुआ है न कि गाँधी के नकली कांग्रेसियों का। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री आरसी मजूमदार ने अपने संस्मरणों में 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमण्ट एटली का बाह्यण उद्धृत किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि 1942 के आंदोलन की असफलता के बावजूद अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र इसलिए किया क्योंकि सुभाष चंद्र बोस के सैन्य अभियान से ब्रिटिश सरकार हिल गयी थी और नौसैनिकों के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ होने के संकेत मिल गए थे। गाँधी नहीं, सुभाष थे भारत की आज़ादी के सबसे बड़े कारण। 21 अक्टूबर को प्रधानमंत्री=द्वारा सुभाष बोस द्वारा घोषित भारत की आज़ाद सरकार के 75वीं जयंती के पीछे वस्तुतः तृणमूल कांग्रेस के विद्वान और सुभाष-बोस भक्त नेता श्री सुखेंदु शेखर राय की बड़ी भूमिका है जिन्होंने 10 अगस्त को राज्य सभा में इस मांग को उठाया था और मांग की थी कि  प्रधानमंत्री लाल किले से इस दिवस की घोषणा करें और नेताजी संग्रहालय का उद्घाटन इसी दिन करें। इस विषय पर सुधि पाठक जेएनयू के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री प्रियदर्शन मुखर्जी की पुस्तक 'नेताजी सुभाष बोस एंड इंडियन लिबरेशन मूवमेंट इन ईस्ट एशिया' का अध्ययन लाभदायक पाएंगे।

21 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री श्री मोदी उसी आरजी-ए- हुकूमत ए  आज़ाद हिन्द की स्थापना की 75वीं जयंती लाल किले पर भव्यता से मनाएंगे। सोचिये अगर कांग्रेस का राज होता तो ऐसा हो पाता क्या ?

-तरुण विजय

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़