ताजमहल किसी धर्म की नहीं बस प्यार की निशानी है

एक शहंशाह ने बनवा के हसीन ताजमहल....सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है....शकील बदायूनी ने 1964 में जब फिल्म 'लीडर' के लिए ये गाना लिखा था तो हर कोई उनका मुरीद हो गया था। लेकिन 54 साल बाद आज तस्वीर बदल गई है...आज ताजमहल की खूबसूरती भूलाकर उस पर सियासत हो रही है। अपने बयानों को लेकर विवादों में रहने वाले यूपी के मेरठ से बीजेपी विधायक संगीत सोम ताजमहल को हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों से मिटा देना चाहते हैं..तो उन्हीं के पार्टी के नेता विनय कटियार ताजमहल को पहले शिवमंदिर बताकर उसका नाम बदलने की मांग कर रहे हैं। जिस ताजमहल पर हर भारतवासी को नाज है आज उसे दागदार करने की साजिश रची जा रही है।
ताजमहल का विरोध करने वाले नेताओं का तर्क सुनिए...संगीत सोम कहते हैं कि ताजमहल को गद्दारों ने बनवाया है इसलिए इसे इतिहास में जगह नहीं मिलनी चाहिए...और तो और संगीत सोम ने मुगलों को लुटेरा करार देकर ताजमहल को भारतीय संस्कृति के लिए धब्बा बता डाला। दुनिया के 7 अजूबों में शुमार ताजमहल पर अगर उसी के देश में आवाज उठने लगे तो लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
आगरा में संगमरमर से बना ताजमहल एक इमारत नहीं प्यार का प्रतीक है जो हर साल दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर खींचती है। भारत में मुगल शासकों ने लंबे समय तक राज किया....उनके बाद इस देश पर अंग्रेजों की हुकूमत रही तो क्या हम उन सभी ऐतिहासिक धरोहरों को मिटा देंगे जिसके कारण दुनिया भर में हमारी पहचान बनी? जिस लालकिले से स्वतंत्रता दिवस पर हर साल हमारे प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं उसे भी मुगल शासक शाहजहां ने ही बनवाया था...क्या अब उसे लेकर भी सवाल उठेंगे?
ताजमहल का विरोध करने वाले कुछ लोगों की दलील ये है कि इसे बनाने में मजदूरों का शोषण हुआ था....तो क्या राजस्थान में राजपूत राजाओं ने जो आलीशन महल खड़े किए उसमें मजदूरों का शोषण नहीं हुआ? दिल्ली से लेकर मुंबई तक बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल से लेकर इमारतों की नींव मजदूरों ने ही रखी है क्या उसमें उनका शोषण नहीं हुआ? अगर बाकी सबकुछ ठीक है तो ताजमहल को लेकर हाय तौबा क्यों? ताजमहल को किसी मजहब से नहीं जोड़ा जा सकता...ना ही किसी धर्म से, ताजमहल प्यार की निशानी है और हमें इसे उसी रूप में देखना चाहिए। शायर शकील बदायूनी को दुनिया छोड़े 46 साल हो गए...आज अगर वो हमारे बीच होते तो सबसे ज्यादा पीड़ा उन्हें ही होती। नेताओं का क्या है उन्हें तो बस सियासत करनी है।
मनोज झा
लेखक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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