पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष की धमकी और भारतीय सेनाध्यक्ष के बयान ने दुनिया को कई बड़े संदेश दिये हैं

Upendra Dwivedi Asim Munir
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असीम मुनीर ने The Economist को दिए साक्षात्कार और अमेरिकी धरती पर दिए बयानों में साफ कहा— “हम पूर्व से शुरू करेंगे।” यह बयान भारत-बांग्लादेश गलियारे की ओर इशारा करता है, जहाँ हालिया राजनीतिक बदलावों के बाद ढाका का रुख पाकिस्तान के प्रति कुछ नरम दिख रहा है।

दक्षिण एशिया में सामरिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। एक ओर पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर के ताज़ा बयान ने भारत के पूर्वी मोर्चे पर संभावित खतरे का संकेत दिया है तो दूसरी ओर भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आने वाले युद्ध को केवल सैनिकों का नहीं, बल्कि पूरे देश का युद्ध बताया है। दोनों बयान यह स्पष्ट कर रहे हैं अगला टकराव पारंपरिक सीमाओं से परे होगा, यह सैन्य शक्ति, तकनीक, सूचना युद्ध और जन-भागीदारी का सम्मिलित परीक्षण होगा।

हम आपको बता दें कि असीम मुनीर ने The Economist को दिए साक्षात्कार और अमेरिकी धरती पर दिए बयानों में साफ कहा— “हम पूर्व से शुरू करेंगे।” यह बयान भारत-बांग्लादेश गलियारे की ओर इशारा करता है, जहाँ हालिया राजनीतिक बदलावों के बाद ढाका का रुख पाकिस्तान के प्रति कुछ नरम दिख रहा है। यहां पुराने इस्लामी नेटवर्क और आतंकी चैनलों के फिर से सक्रिय होने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा, मुनीर ने न केवल पूर्वी मोर्चे पर रणनीतिक वार की बात की, बल्कि जल युद्ध की धमकी देते हुए कहा, “भारत बांध बनाए और हम उसे दस मिसाइलों से उड़ा देंगे।” साथ ही, परमाणु हमले की अप्रत्यक्ष चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पाकिस्तान पर अस्तित्व का संकट आया, तो “हम आधी दुनिया को अपने साथ ले डूबेंगे।”

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मुनीर के ये बयान उस समय आए हैं जब पाकिस्तान-अमेरिका रिश्तों में सुधार देखने को मिला है। अमेरिकी सेंटकॉम के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात और पाकिस्तान को फिर से अमेरिकी रणनीतिक मानचित्र में लाने का दावा, मुनीर के आत्मविश्वास को बढ़ा रहा है। महीने भर में दो बार अमेरिका की यात्रा करने के बाद मुनीर जिस तरह परमाणु धमकियां दे रहे हैं और भारत के साथ आधी दुनिया को लेकर डूबने की बात कह रहे हैं उससे अमेरिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

देखा जाये तो पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर का अमेरिका की धरती से भारत को सीधी परमाणु धमकी देना केवल द्विपक्षीय संबंधों के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी गंभीर संकेत है। यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को भारत-पाकिस्तान के बीच “शांति दूत” के रूप में प्रस्तुत कर नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नैतिक आधार तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। मुनीर ने न केवल “यदि हमारे अस्तित्व पर खतरा हुआ तो हम आधी दुनिया को ले डूबेंगे” जैसी उत्तेजक भाषा का प्रयोग किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी जिम्मेदार परमाणु शक्ति की तरह व्यवहार करने को तैयार नहीं है। ऐसे में ट्रंप के ‘शांति दूत’ होने का दावा हास्यास्पद प्रतीत होता है, क्योंकि उनके देश में खड़े होकर ही पाकिस्तान के शीर्ष सैन्य नेता ने परमाणु युद्ध की धमकी दी।

यह स्थिति अमेरिका की कूटनीतिक साख पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है। सवाल उठता है कि क्या वाशिंगटन अपने मेहमानों के कट्टर और आक्रामक भाषणों को महज “राजनीतिक बयानबाज़ी” मानकर अनदेखा करता रहेगा? और क्या दुनिया ऐसे “शांति प्रयासों” को गंभीरता से लेगी, जिनके बीच ही परमाणु युद्ध की आशंका का सार्वजनिक प्रसारण हो रहा हो? मुनीर का यह बयान एक बार फिर याद दिलाता है कि पाकिस्तान की नीति में परमाणु हथियार सिर्फ रक्षा का साधन नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामरिक दबाव का हथियार हैं— और यही वैश्विक स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

इसके अलावा, असीम मुनीर का अमेरिका में खड़े होकर भारत को परमाणु धमकी देना केवल सैन्य या कूटनीतिक बयान नहीं, बल्कि इसके पीछे एक गहरी आर्थिक मंशा भी झलकती है। पाकिस्तान की यह पुरानी रणनीति रही है कि जब भी उसकी आर्थिक हालत चरमरा जाती है, वह भारत के साथ तनाव बढ़ाकर और परमाणु युद्ध की आशंका पैदा करके वैश्विक वित्तीय संस्थाओं और दाता देशों पर दबाव बनाता है। इस बार भी यही पैटर्न दिखाई देता है— अंतरराष्ट्रीय मंच पर परमाणु धमकी देकर पाकिस्तान ने अप्रत्यक्ष रूप से विश्व बैंक, आईएमएफ और अन्य वित्तीय एजेंसियों को यह संदेश दिया कि अगर उसके भुगतान रोके गए तो दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ सकती है, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। यह “न्यूक्लियर ब्लैकमेल” की रणनीति पाकिस्तान दशकों से अपनाता आ रहा है और कई बार उसे आपातकालीन वित्तीय पैकेज भी इसी दबाव के चलते मिल चुके हैं।

समस्या यह है कि वैश्विक संस्थाएँ पाकिस्तान की इस रणनीति को भलीभांति जानती हैं, फिर भी क्षेत्रीय अस्थिरता के डर से उसके आगे झुक जाती हैं। यह प्रवृत्ति न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून और जिम्मेदार परमाणु आचरण के खिलाफ है, बल्कि इससे पाकिस्तान को यह गलत संदेश भी जाता है कि वह धमकी की राजनीति से आर्थिक लाभ उठाता रह सकता है। वास्तव में, यदि दुनिया सचमुच दक्षिण एशिया में स्थिरता चाहती है तो उसे इस तरह की परमाणु धमकियों को पुरस्कृत करने की बजाय इन पर कड़े आर्थिक और कूटनीतिक प्रतिबंध लगाने की नीति अपनानी होगी।

दूसरी ओर, भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने IIT मद्रास में स्पष्ट शब्दों में कहा— “अगला युद्ध निकट हो सकता है और हमें इसकी तैयारी अभी करनी होगी।” उन्होंने ‘Whole-of-Nation’ दृष्टिकोण पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस बार लड़ाई सिर्फ सीमाओं पर तैनात सैनिक नहीं लड़ेंगे; नागरिक तैयारी, तकनीकी श्रेष्ठता और सूचना प्रबंधन उतने ही निर्णायक होंगे। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण दिया, जिसमें पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पीओके में सटीक हमले किए गए। इस अभियान में तकनीक, सामरिक संदेश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नैरेटिव सेट करने का संयोजन किया गया। पाकिस्तान के भीतर जहाँ इसे जीत के रूप में पेश किया गया, वहीं भारत ने “Justice Done” संदेश के साथ वैश्विक स्तर पर समर्थन हासिल किया। इस संदेश को महिला अधिकारियों की प्रेस ब्रीफिंग और विशेष ऑपरेशन लोगो जैसे प्रतीकों से और मज़बूत किया गया।

देखा जाये तो यह साफ है कि पाकिस्तान की धमकियों में केवल सैन्य टकराव का इशारा नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और सूचना युद्ध का भी संकेत है। मुनीर का ‘पूर्व से शुरू’ करने का दावा भारत की बहु-मोर्चीय सुरक्षा चुनौतियों को रेखांकित करता है, जहाँ चीन-पाकिस्तान की सामरिक साझेदारी, बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा और आतंकी नेटवर्क एक साथ सक्रिय हो सकते हैं। वहीं, भारत की ‘पूरे राष्ट्र’ वाली रक्षा अवधारणा, केवल पारंपरिक हथियारों पर निर्भर रहने की बजाय, तकनीक, नागरिक सुरक्षा ढांचे और सामूहिक संकल्प को भी युद्ध के निर्णायक तत्व मान रही है।

बहरहाल, मुनीर के बयानों और जनरल द्विवेदी की चेतावनी में एक साझा संदेश छिपा है— अगला संघर्ष बहु-आयामी होगा। यह पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों से लेकर सूचना और साइबर स्पेस तक फैला होगा। भारत के लिए यह समय केवल सैन्य तैयारी का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकजुटता, तकनीकी नवाचार और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को एक साथ साधने का है। क्योंकि इस बार, खतरा न सीमा जानता है, न पारंपरिक युद्ध के नियम।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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