प्रतिस्पर्धा नहीं बालमन को चाहिए मोटिवेशन

CBSE Exam
ANI

आज बच्चों को खुला आसमान चाहिए। जहां वह अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन कर सकें। मोदी जी ने बच्चों को मोटिवेट करते हुए कहा है कि विफलताओं से निराश नहीं होकर उससे सबक लेना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए बहुत कुछ होता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर परीक्षाओं से पहले देश के परीक्षार्थी बच्चों, अध्यापकों और अभिभावकों से मन की बात के माध्यम से संवाद कायम कर मोटिवेट करने की बडी पहल की है। मन की बात में परीक्षा पर चर्चा के आठवें संस्करण का महत्व इसलिए महत्वपूर्ण और सामयिक हो जाता है कि आने वाले दिनों में सीबीएसई और राज्यों के बोर्डों की परीक्षाएं होने जा रही है। देश के प्रधानमंत्री की संपूर्ण परीक्षा व्यवस्था और इसके साइड इफेक्ट को समझते हुए संवाद कायम करना अपने आप में महत्व रखता है। देश के लगभग सभी कोनों से तनाव, शिक्षकों और अभिभावकों की अतिमहत्वाकांक्षा के चलते बच्चों द्वारा डिप्रेशन में जाने और अपनी जीवन लीला समाप्त करने के समाचार आम होते जा रहे हैं। हांलाकि शिक्षा नगरी कोटा बच्चों की आत्महत्या के लिए बदनाम हो गया है पर कोटा से अधिक आत्महत्याएं देश के अन्य हिस्सों में भी हो रही है। हांलाकि कोचिंग हब कोटा को आत्महत्याओं के दाग को धोने के लिए सार्थक प्रयास करने होंगे। खैर यह विषयांतर होगा। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक जिम्मेदार अभिभावक की भूमिका निभाते हुये ना केवल परीक्षार्थियों की हौसला अफजाई की है अपितु अध्यापकों और पैरेंट्स को भी स्पष्ट संदेश दिया है।

इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि बच्चों के कोमल मन को प्रतिस्पर्धा के बोझ तले दबाने में आज घर, परिवार, समाज, शिक्षा केन्द्र और सोशियल मीडिया प्रमुखता से नकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। पता नहीं शिक्षा व्यवस्था में भी यह किस तरह का बदलाव है कि 20-21 वीं सदी में दसवीं पास करना बड़ी बात माना जाता था तो परीक्षा देने वाले लाखों बच्चों में से फर्स्ट डिविजन कुछ हजार तक ही रहते थे उसके बाद लगभग दोगुणे द्वितीय श्रेणी में व बाकी तीसरी डिविजन में संतोष कर लेते थे। आज हालात यह है कि परीक्षा देने वाले अधिकांश बच्चों के मार्क्स तो 90 प्रतिशत या इससे अधिक ही होते हैं। 80 से 90 प्रतिशत तक उससे कम और पर उनसे भी कम बच्चें इससे कम प्रतिशत में होते हैं। यहां सवाल परीक्षा प्रणाली को लेकर हो जाता है तो दूसरी और प्रतिस्पर्धा की यह खिचड़ी 90 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले बच्चों और खासतौर से उनके पैरेंटस में होने लगी है। अब तो हो यह गया है कि पैरेंट्स की प्रतिष्ठा के लिए बच्चों की बली चढ़ाई जाने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी ने सही ही कहा है कि कूकर के प्रेशर की तरह बच्चों को प्रेशर में रखना ही अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका में आ गया है। अब अभिभावक दिशा देने वाले के स्थान पर अपनी कुंठा को बच्चों से पूरा कराने में जुटे हैं। यह वास्तविकता है। बच्चें की लगन किसी और दिशा में होती है और उससे अपेक्षा कुछ और करने या बनाने की होने लगती है। कुछ बच्चों का कोमल मन यह प्रेशर सहन नहीं कर पाता है और डिप्रेशन या मौत को गले लगा लेते हैं और फिर पैरेंट्स आंसू पूछते रह जाते हैं।

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परीक्षा पर चर्चा की अच्छी बात यह है कि देश के 3.30 करोड़ बच्चों, 20 लाख शिक्षकों और साढ़े पांच लाख से अधिक अभिभावक इससे जुड़े। मोदी जी ने बच्चों को मोटिवेट करते हुए क्रिकेट का उदाहरण देते हुए बैटिंग करने वाले खिलाड़ी की भूमिका निभाने का संदेश दिया तो टाइम मैनेजमेंट पर फोकस करने, लिखने की आदत ड़ालने, खुल कर अपनी बात कहने, मन को शांत रखने, केवल किताबी कीड़ा नहीं बनने, रोबोट नहीं इंसान बनने और पूरी नींद लेने के लिए मोटिवेट किया। सबसे खास बात यह कि बच्चों को स्वयं से प्रतिस्पर्धा करने का संदेश दिया। हमें दूसरे के स्थान पर स्वयं से प्रतिस्पर्धा करनी है। स्वयं से प्रतिस्पर्धा करेंगे तो आत्मविश्वास बढ़ेगा। दरअसल होता यह है कि दूसरे प्रतिस्पर्धा करने के चक्कर में नकारात्मकता अधिक आती है। होना तो यह चाहिए कि अपनी कमियों को ही सबक बनाकर बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

आज बच्चों को खुला आसमान चाहिए। जहां वह अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन कर सकें। मोदी जी ने बच्चों को मोटिवेट करते हुए कहा है कि विफलताओं से निराश नहीं होकर उससे सबक लेना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए बहुत कुछ होता है। मोदी जी ने मन की बात में बच्चों, परिजनों और टीचर्स तीनों को ही संदेश देने का प्रयास किया है। होता यह है कि जो बच्चें होशियार होते हैं या प्रभावशाली परिवार के हैं तो टीचर्स का उन पर विशेष ध्यान होता है और जो बच्चें कमजोर होते हैं तो पीटी मीटिंग के माध्यम से पैरेंट्स को नीचा दिखा कर इतिश्री कर लेते हैं। बच्चों की नाकामी पर कभी किसी स्कूल ने या टीचर ने जिम्मेदारी ली हो यह आज तो लगभग असंभव ही है। चाहे आप पढ़ाई के नाम पर स्कूल को कितनी ही फीस देते हो आप पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर बच्चें को ट्यूशन कराने का दबाव तो आ ही जाता है। यदि शिक्षण संस्थानों में कमजोर और औसत बच्चों पर अधिक ध्यान दिया जाएं तो तस्वीर का पहलू दूसरा ही हो सकता है। इसी तरह से पैरेंट्स को भी नसीहत देने में मोदी जी पीछे नहीं रहे हैं। पैरेंट्स को बच्चों की लगन, रुचि को समझना होगा। अपनी अपेक्षाएं उस पर लादने के स्थान पर दिशा देने के प्रयास करने होंगे। बच्चों के साथ बैठकर खुलकर बात करें। उनकी ईच्छा, लगन और कोई परेशानी है तो उसे समझने का प्रयास करें। बच्चों में परस्पर तुलना करके बालक मन को कुंठित नहीं करना चाहिए। बच्चों को निराश करने के स्थान पर मोटिवेट करने के समग्र प्रयासों की आवश्यकता है। बच्चों को मशीन नहीं बनाया जाना चाहिए। बच्चों को समझाया यह जाना चाहिए कि 24 घंटें का समय सभी के पास होता है, इस समय को किस प्रकार से उपयोग करना है इस पर फोकस हो तो निश्चित रुप से अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। कहने का अर्थ यह है कि बच्चों का मनोबल बढ़ाने उनमें सकारात्मकता विकसित करने की दिशा में हमें काम करना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने परीक्षाओं से पहले अपने प्रधानमंत्री काल में 8 वीं बार परीक्षा पर चर्चा करते हुए बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों को संदेश देने का सार्थक प्रयास किया गया है। अब सबका दायित्व हो जाता है कि इन सकारात्मक पक्षों को बच्चों तक पहुंचाया जाएं। बच्चों को समझाना होगा कि बड़ी बात जीवन में सफल होना है।

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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