सैनिक की बुद्धि और तकनीक की शक्ति मिलाकर भारत ने तैयार की निर्णायक रक्षा क्षमता, बदल डाली सामरिक संतुलन की परिभाषा

‘शूट-टू-किल’ की नई रणनीति के साथ 7.62 मिमी की राइफलें और .338 स्नाइपर राइफलें सेना के हाथ में दी जा रही हैं। यह बदलाव केवल हथियारों का नहीं, बल्कि मानसिकता का भी संकेत है कि अब भारतीय सेना प्रतिरोध नहीं, निर्णायक आक्रमण की सोच रखती है।
21वीं सदी के युद्ध अब केवल बंदूकों और तोपों की ताक़त से नहीं, बल्कि तकनीक, गति और सटीकता से तय हो रहे हैं। ड्रोन, स्मार्ट हथियार, सॉफ्टवेयर-आधारित रेडियो और सैटेलाइट निगरानी जैसे साधन अब आधुनिक युद्ध का चेहरा बदल रहे हैं। इसी दिशा में भारत ने दो बड़े कदम उठाए हैं— पहला, थलसेना के पैदल सैनिकों का तेज़ी से आधुनिकीकरण और दूसरा- रक्षा मंत्रालय की ओर से 79,000 करोड़ रुपये की नई रक्षा खरीद को मंज़ूरी। ये दोनों फैसले मिलकर भारत की सामरिक दिशा और उसकी सुरक्षा नीति का नया चेहरा पेश करते हैं।
भारतीय थलसेना, जो 11.5 लाख जवानों की सबसे बड़ी शाखा है, लंबे समय से आधुनिक उपकरणों की कमी से जूझ रही थी। अब सेना इन 382 इन्फैंट्री बटालियनों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाने में जुटी है। इसमें नए स्नाइपर राइफल्स, मशीनगन, कार्बाइन, टैंक-रोधी मिसाइलें, और सॉफ्टवेयर-डिफाइंड रेडियो सिस्टम शामिल हैं। साथ ही, सेना ने ‘भैरव’ नाम से नई लाइट कमांडो इकाइयाँ और ‘आशनी’ नाम से ड्रोन प्लाटून भी खड़ी की हैं। यह बदलाव दिखाता है कि भारत अब अपनी पारंपरिक सैन्य क्षमता को टेक्नोलॉजी से जोड़कर एक नई शक्ति-संतुलन रचना चाहता है।
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थलसेना के इन्फैंट्री प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार ने हाल ही में कहा कि अब ध्यान "lethality, mobility, transparency और survivability" पर है। इसका सीधा मतलब है कि अब हर पैदल सैनिक को एक ‘weapon system’ के रूप में देखा जा रहा है यानी सैनिक केवल आदेश पालन करने वाला नहीं, बल्कि एक सशक्त डिजिटल योद्धा है। ‘शूट-टू-किल’ की नई रणनीति के साथ 7.62 मिमी की राइफलें और .338 स्नाइपर राइफलें सेना के हाथ में दी जा रही हैं। यह बदलाव केवल हथियारों का नहीं, बल्कि मानसिकता का भी संकेत है कि अब भारतीय सेना प्रतिरोध नहीं, निर्णायक आक्रमण की सोच रखती है।
दूसरी ओर, रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में 79,000 करोड़ रुपये की रक्षा खरीद योजनाओं को मंज़ूरी दी है। इसमें थलसेना के लिए Nag Missile System (NAMIS Mk-II), Ground-Based Mobile ELINT System, और High Mobility Vehicles शामिल हैं। नौसेना के लिए Landing Platform Docks, Naval Surface Guns, और Advanced Light Weight Torpedoes, जबकि वायुसेना के लिए Long Range Target Destruction Systems जैसी परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं। यह सभी परियोजनाएँ मिलकर भारत की तीनों सेनाओं को आधुनिक युद्ध के हर मोर्चे पर सक्षम बनाने जा रही हैं।
इस रक्षा खरीद की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसका अधिकांश भाग ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत स्वदेशी उत्पादन पर आधारित है। भारत न केवल आयात पर निर्भरता घटा रहा है, बल्कि अब खुद रक्षा उत्पादन का केंद्र बनने की ओर बढ़ रहा है। Bharat Forge, Adani Defence-Israel JV जैसे साझेदार इस दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इससे न केवल घरेलू रक्षा उद्योग को बल मिलेगा, बल्कि भारत वैश्विक रक्षा बाज़ार में भी प्रतिस्पर्धी स्थिति हासिल कर सकेगा।
अब सवाल है कि इन निर्णयों का सामरिक अर्थ क्या है? देखा जाये तो सबसे पहले, यह कदम भारत के लिए द्वि-मोर्चा सुरक्षा तैयारी को मज़बूत करता है। चीन और पाकिस्तान दोनों से एक साथ संभावित चुनौती की स्थिति में अब भारतीय सेना के पास तेज़ और निर्णायक प्रतिक्रिया की क्षमता होगी। दूसरा- ड्रोन, एंटी-टैंक मिसाइल और डिजिटल नेटवर्क जैसी तकनीकें सीमित सैनिक बल से भी अधिकतम प्रभाव पैदा कर सकती हैं। तीसरा- यह कदम भारत को वैश्विक सुरक्षा भागीदारों के बीच एक “टेक्नोलॉजिकल मिलिट्री पॉवर” के रूप में स्थापित करता है।
सामरिक दृष्टि से यह आधुनिकीकरण दक्षिण एशिया में शक्ति-संतुलन को भी बदल सकता है। जहां चीन अपनी सेना को ‘AI वॉरफेयर’ और स्वायत्त हथियारों से लैस कर रहा है, वहीं भारत ने एक व्यावहारिक रणनीति अपनाई है— “मानव और मशीन का संयोजन”। भारत न तो पूरी तरह स्वचालित युद्ध की ओर भाग रहा है, न ही पारंपरिक सोच में अटका हुआ है। वह एक संतुलित मॉडल बना रहा है, जिसमें सैनिक की बुद्धि और तकनीक की शक्ति मिलकर निर्णायक क्षमता तैयार करती है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत के यह कदम केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत भी हैं। जब भारत सीमाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया, हाइब्रिड वॉरफेयर और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस के लिए नए सिस्टम तैयार कर रहा है, तो यह केवल किसी एक देश के लिए नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए संदेश है कि दक्षिण एशिया में अब भारत “Security Provider” की भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
कुल मिलाकर देखें तो बदलती युद्धभूमि का यह रूप भारत के सैन्य और राजनीतिक आत्मविश्वास का प्रतीक है। जहां कभी ‘बूट्स ऑन ग्राउंड’ की अवधारणा पर्याप्त मानी जाती थी, वहीं आज ‘ब्रेन इन स्काई’ यानी तकनीकी दृष्टि से लैस बुद्धिमान सैनिक ही निर्णायक साबित होंगे। भारत ने इस दिशा में जो ठोस कदम उठाए हैं, वे केवल सीमाओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन में अपनी सक्रिय भूमिका का भी संकेत हैं। नई सदी के इस दौर में जब ड्रोन हवा में और डेटा युद्ध के मैदान में निर्णायक बन चुका है तब भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल दर्शक नहीं, बल्कि इस बदलती युद्धभूमि का रणनीतिक खिलाड़ी है।
-नीरज कुमार दुबे
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