आदतें हमारी सुधर नहीं रही, चालान बढ़ता जा रहा है, ट्रैफिक पुलिस के मजे आ गये

new-motor-vehicle-act-increased-traffic-police-income
संतोष उत्सुक । Sep 18 2019 11:35AM

कहने और लिखने वाले सवाल कर रहे हैं कि कहीं नए क़ानून ने पुलिसवालों की आर्थिक प्रोमोशन तो नहीं कर दी। अभी तो कई राज्यों में राजनीतिक स्वार्थ पसरे हुए हैं। वहां पहले की तरह रोजाना चालान निबटाए जा रहे हैं।

सात दशकों में हमें सड़क के बाएं चलना नहीं आया तो कैसे माना जा सकता है कि हम यातायात के नियमों के प्रति अविलम्ब जागरूक होने वाले हैं। स्वच्छता अभियान को दुनिया में सराहना मिल रही है लेकिन प्लांड सिटी ऑफ एशिया, चंडीगढ़ में काफी लोग अभी पालीथिन को पकड़ कर बैठे हैं। हम सब अपने सिस्टम के बिगाड़े हुए हैं तभी तो बेचारी जागरूकता है कि जागती ही नहीं है। ट्रैफिक के मामले में भी यही कहा गया कि इतना जुर्माना बढ़ाने से पहले जागरूक तो करते। बेचारी आम जनता को कानून का कहाँ पता होता है, कानून का तो वकील को पता होता है। सरकार चाहे नोटिफिकशन करे, न करे, चाहे मौके पर चालान भुगतान का प्रावधान करे, न करे और चाहे तो मशीन को डीफ़ंशन कर दे। मशीन कभी इतनी जल्दी अपडेट नहीं की जा सकती। मशीन है इंसान तो नहीं है।

  

इंसानों ने छूट दे देकर और इंसानों ने छूट लेकर पूरा मज़ा लिया है। थ्री व्हीलर, स्कूटर, कार, टैक्सी यहां तक कि ट्रक वालों को भी गलत सड़क पर उलटी दिशा में, बिना पूरे कागज़ात के चलने की आदत है और बचपन से है। अब पचास साल तक यहां वहां चलने दिया अब कह रहे हैं ठीक चलो। ऐसा करना गलत बात है। इतने साल से एक स्कूटी पर तीन, कभी कभी तो चार भी चलते ही हैं, इनमें प्रसिद्ध, गणमान्य लोग व पुलिसवाले भी शामिल होते रहे हैं। समझदार लोगों ने यह सोच कर किया कि अगर चारों दो वाहनों पर जाएंगे तो पापा को एक और वाहन लेकर देना पड़ेगा, सड़क पर पहले ही इतना रश है, इस बहाने भीड़ कम हुई न पापा के पैसे भी बचे न। चार हेलमेट के पैसे भी बचे न। जान की कीमत तो वैसे भी अब ज़्यादा नहीं रही।

इसे भी पढ़ें: सिर्फ चालान काटने की होड़ है, जनता की परेशानियों से किसी को लेना-देना नहीं

‘लालबत्ती है तो सही, पर निकल लो’, यह सोचकर स्मार्ट शहर चंडीगढ़ शहर में, जहां पुलिस का काफी दबदबा माना जाता है, निकलने वाले निकल जाते हैं। वैसे तो अच्छा वाहन चालक उसे माना जाता है जो रात को खाली सड़क पर भी ट्रैफिक नियमों का पालन करे। पुलिस कर्मी भी कम हैं, उन्हें भी सुरक्षात्मक तरीके से नौकरी करनी होती है, आजकल छोटी नहीं, ज़रा ज़रा सी बात पर बहस करने लगते हैं। यहां तो कई बंदे सालों तक ड्राइविंग लाइसेन्स नहीं बनवाते कहीं फंसते हैं तो पुलिस वालों को अपने जैसा इंसान समझकर निबटा देते हैं।

हमारे देश में क़ानून कैसे प्रयोग किया जाता है, सर्वविदित है। कहने और लिखने वाले सवाल कर रहे हैं कि कहीं नए क़ानून ने पुलिसवालों की आर्थिक प्रोमोशन तो नहीं कर दी। अभी तो कई राज्यों में राजनीतिक स्वार्थ पसरे हुए हैं। वहां पहले की तरह रोजाना चालान निबटाए जा रहे हैं। चालान करवाने वालों के पास समय कहां होता है। सड़कों की हालत से ठेकेदार, अफसर और मंत्री मन ही मन खुश हैं। मुरम्मत के भारी एस्टिमेट बनाए जा रहे हैं, उधर पुलिस वाले भी अंदर खाते खुश हैं कि आमदनी कुछ तो बढ़ ही जाएगी। उधर साफ सुथरा मैदान ढूंढ़ कर, सड़क के गड्ढे, खड्ढे, खोदी हुई सड़क के टुकड़े, खराब सिग्नल, अतिक्रमित फुटपाथ, टूटी लाइटें, अंधेरी सड़कें मिलकर बैठकें कर रहे हैं, उन्होंने प्रस्ताव पास किया है कि उनकी खराब हालत के लिए ज़िम्मेदार सरकारी कारिंदों पर जुर्माना लगाया जाए। घोड़े पालना और सवारी करना तो ज़्यादा लोगों के बस का नहीं रहा, हां हो सकता है अब गधों, ट्टुओं और खच्चरों के अच्छे दिन आ जाएं, लोग थोड़ी दूरी तक जाने के लिए इनका इस्तेमाल शुरू कर दें। चालान से बचने के लिए अपना चाल चलन तो बदलना ही पड़ेगा। कुल मिलाकर यही कहा जा रहा है कि किसी भी क़ानून से असली फ़ायदा, जिनका होना है, होकर रहेगा। परिस्थितियों ने देश की अर्थ व्यवस्था का भी चालान कर रखा है क्या उसमें ट्रैफ़िक चालान का योगदान हो सकता है।

-संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़