साक्षात्कारः किसी को ठेस पहुँचाने का नहीं बल्कि देश के सामने सच लाना हमारा मकसद थाः अग्निहोत्री

vivek ranjan agnihotri
डॉ. रमेश ठाकुर । Mar 21 2022 11:25AM

साक्षात्कार में विवेक अग्निहोत्री ने कहा, ''किसी को पीड़ा देना, भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मकसद नहीं? पर, गलतियों से देशवासियों को वाकिफ कराना, कोई गुनाह तो नहीं है? मुझे लगता है कश्मीर के नरसंहार में केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन की नाकामी शामिल थी।''

‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की चर्चा इस समय ना सिर्फ हर घर में है, बल्कि प्रत्येक इंसान की जुबान पर है। कोरोना के बाद खुले सिनेमा घरों पर लगने वाली ये पहली फिल्म है जिसने धूम मचाई हो और कमाई के रिकॉर्ड भी तोड़े हों। महानगर से लेकर कस्बों तक के सभी सिनेमा हाल हाउसफुल जा रहे हैं। एक वर्ग फिल्म को प्रोपेगेंडा बता रहा है, तो दूसरा पक्ष देर से ही सही लेकिन देशवासियों को तल्ख हकीकत से रूबरू होना करार दे रहा है। फिल्म में कश्मीरी पंडितों के साथ आज से तीन दशक पूर्व जो हुआ उसे सिनेमाई रूप देकर प्रस्तुत किया गया है। पिछले सप्ताह फिल्म के लेखक-निर्देशक और उनकी पूरी टीम दिल्ली में रही। फिल्म पर उठे विवाद को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने लेखक व निदेशक विवेक रंजन अग्निहोत्री से समझना चाहा कि आखिर बखेड़ा क्यों खड़ा हुआ। उन्होंने तसल्ली पूर्वक जवाब दिया। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

प्रश्नः क्या आपने सोचा था, फिल्म से इतना बवाल हो जाएगा?

उत्तर- कुछ लोगों को आपत्ति होगी, ये दिलो दिमाग में पहले से था। पर, इस कदर बौखलाहट होगी ये नहीं पता था। हालांकि ज्यादातर लोग फिल्म के सपोर्ट में हैं। जबकि, विरोध करने वाले ‘द कश्मीर फाइल्स’ को प्रोपेगेंडा बता रहे हैं। देखिए, हम सिनेमाई लोग हैं हमें किसी किस्म की राजनीति और फसाद में नहीं पड़ना। मुझे लगता है मेरी इकलौती फिल्म नहीं है जिस पर विवाद हुआ हो, इससे पहले भी कई फिल्मों ने लोगों के विरोध का सामना किया। लेकिन जो व्यक्ति गंभीरता से और बिना राजनीतिक सोच से फिल्म देख रहा है, वह समझ रहा है कि वह क्या देख रहा है?

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प्रश्नः ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का आइडिया कैसे आया और कब?

उत्तर- हमारी टीम कई वर्षों से इस विषय पर काम कर रही थी। कई-कई दिनों तक हमने उन जगहों पर रह कर हर चीज को बारीक से समझा और स्थानीय लोगों से मिले। तब के विस्थापित कश्मीरी पंडित जो अब दिल्ली और अन्य जगहों पर रहते हैं उनसे उस वक्त के हाल-ए-वारदात की घटनाओं को जाना। सुनकर हम खुद भावुक हो रहे थे। फिल्म उन्हीं भावनों को दिखाती है। ऐसा सच जिसे आज की पीढ़ी को जानने का हक है। कल्पनाई सिनेमा के पर्दे पर मात्र फिल्म देखकर हम भावुक हैं, जरा सोचिए उन पर क्या बीती होगी जिन्होंने उस दर्द को झेला होगा।'

प्रश्नः गुजरे दर्दनाक लम्हों को कुरेदने का आखिर मकसद क्या है?

उत्तर- किसी को पीड़ा देना, भावनाओं को ठेस पहुंचाने का हमारा कोई मकसद नहीं? पर, गलतियों से देशवासियों को वाकिफ कराना, कोई गुनाह तो नहीं है? मुझे लगता है कश्मीर के नरसंहार में केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन का सामूहिक सेलेक्टिव फेलियर था। फिल्म किसी एक के सिर पर दोष नहीं मढ़ती। सबकी भागीदारी एक जैसी थी। फिल्म बनाते वक्त हमारा फोकस सिर्फ जनभावनाओं पर केंद्रित था। निश्चित रूप से ये फिल्म एक गुजरे वक्त की दास्तां सुनाती है जिस पर किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए।

प्रश्नः फिल्म देखने के बाद नफरत का भाव जनमानस में फिर भी पैदा हुआ है?

उत्तर- इसमें बुराई क्या है? नफरती लोगों के प्रति नफरत होनी चाहिए। आपसी मधुरता वाले सौहार्द में जिन लोगों ने उस वक्त जहर घोला था, उन्हें एक्सपोज होना चाहिए। कश्मीरी नेताओं की शह पर ये सब हुआ, ये बात बच्चा-बच्चा जानता है। घटना बहुत बड़ी है जिसे ढाई-तीन घंटे में नहीं समेटा जा सकता, पूरी सीरीज बनाई जा सकती है। मैं मानता हूं कई बातें छूटी हैं जिन्हें शामिल किया जाना चाहिए था। लेकिन स्क्रिप्ट की डिमांड के लिहाज से हम सेलेक्टिव घटनाओं का ही ज्रिक कर सके। रही बात नफरत फैलाने की, तो उसका सवाल ही नहीं उठता।

प्रश्नः जम्मू-कश्मीर में चुनाव भी होने हैं, पता ही होगा आपको?

उत्तर- मुझे उससे क्या लेना-देना? चुनाव और ‘द कश्मीर फाइल्स’ में कोई समानता नहीं है। वह अलग बात है कि कुछ लोग चुनावों से जोड़कर इस फिल्म को देख रहे हैं। मेरी दर्शकों से प्रार्थना है कि फिल्म को फिल्म समझकर ही देखें। विरोध या चुनाव से फिलहाल जोड़कर ना जोड़ें।

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प्रश्नः फिल्म में दिखाए तथ्यों पर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कड़ा विरोध जताया है?

उत्तर- वह क्या, पूरा विपक्ष मुझ पर हमलावर है। फिल्म का एक-एक सीन उन्हें काटने को दौड़ रहा है। देशवासियों के निशाने पर जो आ चुके हैं। उनकी गलतियां जो उजागर हो गई हैं। खैर, उन्हें जो भी कहना है कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारी टीम ने बड़ी मेहनत और ईमानदारी से अपना काम किया है। सभी को पता है कि जनवरी 1990 तक घाटी में जिहादियों का कब्जा हो चुका था, पाकिस्तान खुलकर सहयोग कर रहा था। तब फारूक अब्दुल्ला की हुकूमत थी। उस वक्त उनको जो करना चाहिए था, उन्होंने नहीं किया।

  

प्रश्नः आपको वाई कैटेगरी सुरक्षा देने का भी सरकार ने निर्णय लिया है?

उत्तर- देखिए, मैं आलोचनाओं के घेरे में तो घिर ही गया हूं। धमकियां भी मिलनी शुरू हो गई हैं। लेकिन आलोचनाओं से ज्यादा तारीफें मिल रही हैं। इसलिए डर नहीं है मुझे। केंद्र सरकार का धन्यवाद दूंगा, उन्होंने मुझे सुरक्षा देने का निर्णय किया। घर पर भी धमकियों के खत पहुंचे हैं। फिलहाल वहां पांच आर्म्ड स्टैटिक गार्डों की तैनाती कर दी गई है। बाकी सब भगवान पर निर्भर है।

- डॉ. रमेश ठाकुर

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