रिटायरमेंट की प्लानिंग करने के लिए कुछ बेहद जरूरी टिप्स

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कमलेश पांडे । Jun 21 2018 4:49PM

हरेक कामकाजी व्यक्ति एक न एक दिन अपने रोजमर्रे के काम-धंधे से अवकाश पा लेता है जिसे रिटायरमेंट कहते हैं। आमतौर पर अवकाश प्राप्ति की औसतन उम्र सीमा साठ-पैंसठ साल है। कहीं कुछ कम तो कहीं कुछ ज्यादा।

हरेक कामकाजी व्यक्ति एक न एक दिन अपने रोजमर्रे के काम-धंधे से अवकाश पा लेता है जिसे रिटायरमेंट कहते हैं। आमतौर पर अवकाश प्राप्ति की औसतन उम्र सीमा साठ-पैंसठ साल है। कहीं कुछ कम तो कहीं कुछ ज्यादा। यह सरकारी या निजी संस्थाओं के नियमन पर निर्भर है। हालांकि कुछ व्यक्तिगत पेशेवर जब तक स्वस्थ हैं तब तक अवकाश लेना नहीं चाहते, लेकिन सत्तर से पचहत्तर पार करते करते ऐसे लोग भी जिंदगी से थक जाते हैं और न चाहते हुए भी स्वैच्छिक अवकाश लेकर आराम करना पसंद करते हैं। बस यहीं से उनकी आर्थिक योजना की परीक्षा शुरू हो जाती है। इसलिए बुद्धिमान लोग बैंक बैलेंस के साथ साथ चल-अचल संपत्ति सृजन पर भी ज्यादा ध्यान देते हैं।

अमूमन, गांव और शहर की जरूरतें और प्राथमिकताएं अलग-अलग होती हैं। इसलिए बुद्धिमान लोग उस हिसाब से भी अपनी आर्थिक योजनाएं बनाते हैं। मसलन, किसी भी गांव में जीवन गुजर-बसर के लिए कृषि योग्य भूमि, सब्जी की क्यारियां या फलों का बगान जरूरी होता है जिससे नियमित आमदनी होती रहे। कुछ लोग पशुपालन को भी प्राथमिकता देते हैं। हालांकि अब यहां भी मकान-दुकान से किराया और स्वरोजगार से आमदनी विकसित होने की संभावनाएं बलवती हुई हैं।

इसी प्रकार किसी भी शहर या महानगर के लिए आवासीय मकान/फ्लैट्स, दुकान, फैक्ट्री, फार्म हाऊस, होटल्स आदि का होना जरूरी है ताकि उन्हें किराया पर लगाकर भी नियमित आमदनी सुनिश्चित किया जा सके। हालांकि स्कूल, कॉलेज, प्रकाशन संस्थान या व्यक्तिगत स्वामित्व वाले अन्य पेशेवर संस्थानों, एनजीओज, ट्रस्ट, कम्पनीज की संभावना किसी भी व्यक्ति की निवेश योग्यता और बचत क्षमता पर भी निर्भर करती हैं। फिर सुयोग्य और सुशिक्षित सन्तानों जैसा सुरक्षित निवेश विकल्प कुछ भी नहीं है। क्योंकि फिक्स, चालू या बचत खाता और पेंशन प्लान से रुपए-पैसे चाहे आप कितना भी जमा/इकट्ठा कर लें। लेकिन उसे यदि जरूरत या समझदारी पूर्वक खर्च करने की कला आपमें या आपकी संतान में नहीं है तो जीवन का अन्तिम कालखण्ड वाकई दुखदाई हो जाता है।

आम तौर पर महसूस किया जाता है कि कुछ लोगों के लिए यह एक डर पैदा करने वाला उम्र का पड़ाव होता है जिसमें पहला सवाल यही उठता है कि क्या हमारी बचत पर्याप्त है? क्या हम अपने मन मुताबिक अपनी जिंदगी के शेष पल गुजार पाएंगे? यदि बीमार हो गए तो फिर क्या होगा? ये ऐसे सवाल हैं जिनका समुचित जवाब स्वतः न मिले तो सम्बन्धित व्यक्ति की उम्र अपने आप कम होती जाती है। दूसरी ओर, कुछ लोगों के लिए रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी उम्मीदों से भरी होती है, क्योंकि अब वे पर्याप्त समय मिलने के बाद अपनी सभी शेष इच्छाएं पूरी कर सकते हैं, जैसे मनपसंद जगहों की यात्रा करना, पसंदीदा शौक पालना या फिर ऐसे कामकाज निष्पादित करना, जिनके लिए पहले पर्याप्त समय नहीं था। क्योंकि हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि आखिरकार रिटायरमेंट नौकरी से ले रहे हैं, अपनी शेष जिंदगी से नहीं। इसलिए इसकी योजना पहले से बनाइए और यदि किसी कारणवश नहीं बना पाए हैं तो जो बचा है उसे सुव्यवस्थित कर लीजिए।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि उपरोक्त बातें जीवन रूपी सिक्के के दो पहलू की तरह हैं, जिसमें चित्त या पट्ट होना नियति और व्यक्तिगत समझदारी पर निर्भर है। फिर भी यदि आप रिटायरमेंट के लिए पहले से योजना बनाने में चूक गए हैं तो अब जीवन को वित्तीय रूप से सहेजने और सुरक्षित करने की योजना पर शीघ्र अमल कीजिए, अन्यथा रोजमर्रे की समस्याएं आप पर हावी पड़ जाएंगी। कहना न होगा कि भले ही आप की वित्तीय स्थिति बेहद अच्छी हो, लेकिन लंबी अवधि के लिए रुपए-पैसों का प्रबंधन करना और अपने विभिन्न खर्चों पर लगाम रखना किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी होता है। खासकर रिटायरमेंट के बाद तो इन बातों का ध्यान रखना और भी आवश्यक होता है, क्योंकि आप इन्हें ध्यान में रखकर ही बेहतर तरीके से अपना वित्तीय प्रबंधन कर सकते हैं।

#जानिए, आपको क्या करना चाहिए

आपको पता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए प्रत्येक महीने के खर्च की एक निश्चित योजना होती है जिसमें कमी की गुंजाइश कदापि नहीं होती। हां, कतिपय आकस्मिक खर्चों के चलते वह कब और कैसे बढ़ जाएंगी, उन्हें रोकना मुश्किल होता है। लिहाजा आप उन निवेश विकल्पों में अपने पैसे लगाएं जिनसे आपको अपना घर खर्च पूरा करने के लिए नियमित रिटर्न मिलेगा। यदि आपने फिक्स्ड डिपॉजिट या डेट-ओरिएंटेड इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश किया है तो अपने टैक्स बोझ को भी जानिए-समझिए और सरकार की बदलती आर्थिक नीतियों के मद्देनजर ऐसे निवेश विकल्पों को चुनिए जो कि टैक्स कम करने के बाद महंगाई दर से ज्यादा रिटर्न देते हों। इसके अलावा, छोटी अवधि की अपनी जरूरतों के लिए भी लगने वाले पैसों को आप डेट फंड में लगाएं और मनमाफिक उसका उपयोग सुनिश्चित करें।

यही नहीं, दीर्घ अवधि की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने निवेश पोर्टफोलियों में से शेष/बाकी विकल्पों के साथ इक्विटी फंड को भी जरूर रखें। यदि आप ऐसा करेंगे तो चिकित्सीय आपातकाल, स्वास्थ्य जांच और आकस्मिक खर्चों (घर की मरम्मत, आदि) से भी एकबारगी जूझ सकते हैं। इसलिए इन सभी के लिए आप अलग से आपात फंड बनाएं तो बेहतर रहेगा। इसके अलावा, आप अपनी वसीयत भी तैयार कीजिए ताकि आपके अचानक गुजर जाने के बाद किसी को कोई समस्या नहीं हो। हां, यदि आपने पहले ही कोई वसीयत बनाई हुई है तो साल में कम से कम एक बार उसकी समीक्षा अवश्य करें और यह सुनिश्चित करें कि आपकी संपत्ति (भौतिक और वित्तीय दोनों) की सूची सामयिक है और प्रत्येक संपत्ति के लिए आपके नॉमिनी का नाम स्पष्ट लिखा हुआ है। ऐसा करके आप एक बेहतर अभिभावक होने का परिचय दे सकते हैं।

#समझिए, आपको क्या नहीं करना चाहिए

मेरी सलाह मानेंगे तो आपको अपना काम करते रहना चाहिए, उन्हें करना बिल्कुल न छोड़ें क्योंकि अब आपके लिए पूरे वक्त की नौकरी करना जरूरी नहीं है, बल्कि आप एक कंसल्टंट या फ्रीलांसर के तौर पर भी अपना काम जारी रख सकते हैं। ध्यान रखिए कि ऐसा करने से न सिर्फ आपको सुनिश्चित आय मिलेगी, बल्कि आपको मानसिक और शारीरिक तौर पर भी सक्रिय रखेगी जो कि अवकाश प्राप्ति के बाद बेहद जरूरी होता है। यही नहीं, अपनी सुनिश्चित आय के लिए आप कई पेंशन प्लान खरीदने से बचें, क्योंकि इन प्लानस पर महंगाई की मार अक्सर पड़ती है एवं इनमें किए हुए निवेश पर लॉक-इन पीरियड भी होता है। इसलिए हमेशा ख्याल रखिए कि टैक्स लगने वाले डेट निवेश विकल्पों में अपनी बड़ी पूंजी कभी न लगाएं। इससे आपका जोखिम बढ़ जाएगा। यही नहीं, पूंजी घाटे के जोखिम वाले निवेश विकल्पों में भी ज्यादा पैसा लगाने से आप बचें। कुल मिलाकर इक्विटी में निवेश कुल पोर्टफोलियो का 25 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। साथ ही यह भी याद रखें कि एक ही तरह के निवेश विकल्प या फंड में पैसा बिल्कुल न लगाएं। क्योंकि इससे आपको क्षति हो सकती है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि लंबी अवधि में विविधीकरण वाले पोर्टफोलियो के साथ कम जोखिम जुड़ा होता है। इसलिए सभी निवेश विकल्पों में नॉमिनी का नाम लिखना न भूलें। अन्यथा आपके गुजर जाने के बाद आपके उत्तराधिकारी को परेशानी हो सकती है।

#देखिए, अपना निजी बजट ऐसे बनाएं

किसी भी व्यक्ति का निजी बजट बनाना आसान काम है, लेकिन यह एक उबाऊ काम है, इसलिए अधिकांश लोग इसमें दिलचस्पी नहीं लेते। लेकिन जो नहीं लेते, उनका आर्थिक भविष्य प्रायः मजबूत नहीं होता। क्योंकि भले ही शुरुआत में आपको अपनी आय के हर स्रोत और सम्भावित खर्च की पूरी सूची बनानी पड़ती है। लेकिन, आप जब एक बार अपनी सूची बना लेंगे, तब खर्चों में बदलाव करना और अपने अनुमानित बजट पर नजर रखना बेहद आसान हो जाएगा।

लिहाजा, सबसे पहले आपको महीने के कुल खर्च का हिसाब किताब लगाना है। क्योंकि इनमें से कुछ ऐसे खर्च होंगे जिन्हें आपको हर महीने करना ही करना होता है, जैसे सोसाइटी फीस, नगरपालिका टैक्स, बिजली उपभोग शुल्क, पेपर, दूध, दाई आदि। निःसन्देह, इनको लेकर आप कुछ अधिक बदलाव नहीं कर पाएंगे। क्योंकि इनमें से ज्यादातर खर्च बढ़ते-घटते रहते हैं जो आपकी मासिक या सालाना आय पर निर्भर होते हैं। इसलिए इन पर लगाम लगाई जा सकती है। ऐसे खर्चों में खाना, उपभोगी सेवाएं, कपड़े, मनोरंजन और यात्रा आदि शामिल हैं, जो बजट के बाहर भी जा सकते हैं। अतः इन खर्चों पर नियंत्रण पाने के लिए आप समझदारी से काम लें, अन्यथा खुला हाथ किसी के लिए भी अहितकर ही होता है।

बेहतर होगा कि आप आय के सभी स्रोतों यथा- पेंशन, निवेश, ब्याज, आदि को जोड़ लें। फिर कुल आय में आपको महीने में होने वाले सभी खर्च को कम-ज्यादा करना होगा। इस काम को करने के लिए आप स्प्रेडशीट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि अपनी सही वित्तीय हालत जानने में आपको सहूलियत हो। इसके लिए आपको अनुमानित बजट और असली व्यय के अंतर के साथ अपनी आय की तालिका बनानी होगी। उसमें वेतन, पेंशन, किराए से होने वाली आय, मिला हुआ ब्याज, कारोबार से होने वाली आय, अन्य आय को जोड़कर कुल आय बनानी होगी। फिर अपने खर्चे, जैसे- खाना, उपभोग खर्च (बिजली, गैस, पानी, आदि), वेतन (परिचर, ड्राइवर, आदि), बीमा (स्वास्थ्य, कार और आदि), मोबाइल, लैंडलाइन, इंटरनेट, डीटीएच/केबल शुल्क, यात्रा और परिवहन, छुट्टियां, आराम और मनोरंजन, कपड़े, तोहफे, बच्चों की शिक्षा/कर्ज, दूसरे कर्ज, नगरपालिका टैक्स, सोसाइटी फीस, अन्य/मरम्मत/आपात खर्च के कुल खर्च को जोड़ना होगा और फिर महीने की बचत पर गौर फ़रमाना होगा जो अनुमानित और वास्तविक दोनों होगा। 

याद रखिए कि अगर महीने की बचत का आंकड़ा ऋणात्मक है तो आप अपनी आय से ज्यादा खर्च कर रहे हैं। इसलिए सावधान हो जाइए। ऐसे में आपके पास तीन विकल्प शेष हैं- पहला, खर्च कम करें; दूसरा, आय बढ़ाएं; और तीसरा, दोनों करें। तीसरा विकल्प ज्यादा श्रेयष्कर होगा। बेशक, जब आप अपना निजी बजट बना लेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि आपको गुजारे के लिए न्यूनतम कितनी रकम चाहिए। ऐसे में वित्तीय अनुशासन पालें और बचत करने के बारे में सोचें। हमेशा सोच-समझकर ही पैसा निकालें, क्योंकि जितनी पूंजी आप निवेशित रखेंगे, उतनी ही आपकी संपत्ति में बढ़ोतरी होगी।

आम तौर पर ज्यादातर रिटायर हुए लोगों के पास आय के दो ही स्रोत होते हैं- पहला, पेंशन प्लान और दूसरा पहले से पैसे लगाए हुए निवेश विकल्पों, यथा- म्युचुअल फंड्स, स्टॉक और शेयर, फिक्स्ड डिपॉजिट, अनुइटी, आदि से होने वाली आय। साथ ही, यदि आपने प्रॉपर्टी में भी निवेश किया हो तो उससे आपको किराया मिलता होगा। इसलिए, किसी भी रिटायर व्यक्ति के लिए ये जरूरी है कि आप अपनी आय-व्यय पर सतत नजर रखें। अगर आपके पास अतिरिक्त आय है तो उसे निवेश करें ताकि वक्त के साथ आपकी बचत में भी बढ़ोतरी जारी रहे जो आपके वक्त ए जरूरत पर काम आये।

-कमलेश पांडे

(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)

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