दिवाला और दिवालियापन संहिता कैसे उधारकर्ताओं को बचाता है?

Insolvency and Bankruptcy Code
जे. पी. शुक्ला । Oct 24 2020 1:18PM

केंद्र सरकार ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड, 2016 (IBC) और इसके सहायक प्रक्रियाओं पर कई बदलाव किए, जिनसे व्यापक स्तर पर प्रभाव पड़ेगा। वर्तमान में दिवाला और दिवालियापन संहिता केवल तभी चालू हो सकती है जब न्यूनतम 1 लाख रुपये का डिफ़ॉल्ट हो।

संसद ने सितम्बर 21 को दिवाला एवं दिवालियापन कानून (Insolvency and Bankruptcy Code- Second Amendment) बिल, 2020 को मंजूरी दे दी है, ताकि कोड के तहत COVID-19 प्रभावित कंपनियों को इनसॉल्वेंसी से बचाया जा सके। वैश्विक COVID-19 महामारी और इसके परिणामी लॉकडाउन का भारतीय नागरिकों के व्यवसाय पर आर्थिक प्रभाव पड़ रहा है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड, 2016 (IBC) और इसके सहायक प्रक्रियाओं पर कई बदलाव किए, जिनसे व्यापक स्तर पर प्रभाव पड़ेगा। वर्तमान में दिवाला और दिवालियापन संहिता केवल तभी चालू हो सकती है जब न्यूनतम 1 लाख रुपये का डिफ़ॉल्ट हो। 

क्या है मौजूदा प्रावधान 

धारा 7: यह वित्तीय कर्जदाताओं को डिफॉल्टर्स के खिलाफ दिवालिया प्रावधान शुरू करने का अधिकार देता है।

धारा 9: यह संचालन कर्जदाताओं (आपूर्तिकर्ता कंपनियों) को डिफॉल्टर्स के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन का अधिकार देता है।

धारा 10: यह डिफॉल्ट करने वाली कंपनी को कॉरपोरेट दिवालिया प्रक्रिया में जाने के लिए आवेदन का अधिकार देता है।

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क्या हैं बदलाव ?

- इन्सॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने की 1 लाख रुपये की न्यूनतम सीमा को बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए एक विशेष इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन फ्रेमवर्क को इनसॉल्वेंसी कोड की धारा 240 ए के तहत अधिसूचित किया जाएगा।

- महामारी की स्थिति के आधार पर दिवाला कार्यवाही की नई शुरुआत का निलंबन तीन महीने के लिए बढ़ा  दिया गया है।

- दिवालिया कानून में संशोधन करते हुए कोविड-19 से संबंधित ऋण को "डिफ़ॉल्ट" की परिभाषा से बाहर किया गया है।

- नया क्लॉज़- धारा 10 ए समाहित किया गया है

कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस का निलंबन (CIRP)

CIRP निलंबन का उद्देश्य कंपनियों को ईएमआई, लंबी अवधि के ऋण प्रीमियम, व्यापार ऋण, मजदूरी, परिचालन देय राशि (बिजली के बिलों की आपूर्ति, कच्चे माल की आपूर्ति) आदि के भुगतान ना कर पाने से मजबूर होने से रोकना है।

यह संशोधन मुख्य रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के खिलाफ बढ़ते हुए दिवालियेपन को रोकने के लिए है, जो कि लॉकडाउन की वजह से प्रभावित हैं। आईबीसी की धारा 7, 9 और 10 में बदलाव से कोरोनो वायरस महामारी के प्रभाव के तहत कंपनियों को राहत मिलेगी।  

केंद्र सरकार द्वारा अपनाए गए उपायों से संकेत मिलता है कि सरकार ने उन कंपनियों के अस्तित्व को वरीयता दी है, जो COVID-19 के कारण डिफ़ॉल्ट हो सकती हैं। CIRP कार्यवाही का निलंबन निश्चित रूप से कॉर्पोरेट व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक होगा। ज्यादातर ऑपरेशनल क्रेडिटर्स आमतौर पर माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज ("MSMEs") होते हैं।

माननीय उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ ने कहा है कि जिन ऋण खातों को 31 अगस्त तक नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित नहीं किया गया था, उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें अगले आदेश तक एनपीए घोषित नहीं किया जाना चाहिए।

क्या होता है NPA ?

गैर निष्पादित परिसंपत्ति (Non Performing Asset- NPA) एक ऋण या अग्रिम  राशि है जिसके लिए मूल या ब्याज भुगतान 90 दिनों की अवधि के लिए अतिदेय (overdue) रहा हो। 

लंबे समय तक भुगतान न करने के बाद, ऋणदाता उधारकर्ता को किसी भी संपत्ति को लिक्विडेट करने के लिए मजबूर करता है, जो ऋण समझौते के हिस्से के रूप में गिरवी रखी गई थी। यदि कोई संपत्ति गिरवी नहीं थी, तो ऋणदाता संपत्ति को खराब ऋण के रूप में लिख सकता है और फिर इसे किसी एजेंसी को छूट पर बेच सकता है।

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राहत वाले क्षेत्र

MSME सेक्टर- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises - MSMEs) वस्तुतः सभी भारतीय क्षेत्रों की रीढ़ हैं और अक्सर विनिर्माण और निर्यात गतिविधियों में संलग्न हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था के दो प्रमुख चालक भी हैं। नेताओं से लेकर विशेषज्ञों और उद्योग निकायों तक सभी ने सरकार से एमएसएमई क्षेत्र को राहत देने की अपील की है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 30 प्रतिशत से अधिक योगदान देता है।

भारत में पहली बार एनपीए एमएसएमई के लिए धन की घोषणा की गई है। इसलिए MSMEs संभवतः NPA के कलंक से बाहर हो सकते हैं। यह मोदी सरकार का एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसके कारण कई व्यवहार्य NPA MSMEs इस धन को प्राप्त करने के बाद नए मानक वर्गीकरण के साथ इसका लाभ उठा सकेंगे।

दिवालियापन संहिता (IBC) की शुरूआत सुरक्षित और असुरक्षित लेनदारों के रूप में भारत में ऋणदाताओं को अधिक राहत देगी। परिसमापन (Liquidation) के दौरान संपत्ति / आय का वितरण करते समय संहिता प्राथमिकता का क्रम प्रदान करती है। परिसंपत्तियों (Assets) को इस क्रम में वितरित किया जाएगा-

- सुरक्षित लेनदारों को उनके संपार्श्विक मूल्य (Collateral Value) के बजाय उनकी पूरी बकाया राशि प्राप्त होगी 

- असुरक्षित लेनदारों की व्यापार लेनदारों पर प्राथमिकता होती है और 

- सरकार का बकाया असुरक्षित लेनदारों के बाद चुकाया जाएगा 

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) सहायक प्राधिकारी होगा, जो सीमित कंपनियों और एलएलपी के लिए दिवालिया प्रस्ताव को लेकर निर्णय करेगा। डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) व्यक्तियों और अनिगमित (Unincorporated) संस्थाओं के लिए इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन को लागू करेगा। रिज़ॉल्यूशन प्रक्रियाएं लाइसेंस प्राप्त इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल्स (IP) द्वारा संचालित की जाएंगी, जो इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल एजेंसियों (IPAs) के सदस्य हैं। आईपीए, इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन के तहत कंपनी के एसेट्स के बराबर परफॉरमेंस बॉन्ड भी देगा।

NPA से बचने के लिए क्या करें ?

जैसे ही कोई ऋण या अग्रिम NPA होता है, तो उसे तुरंत हल करने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये। अन्यथा, बकाए पर लगने वाले ब्याज की वज़ह से NPA तेज़ी से बढ़ता है। जो भी व्यक्ति, संस्था या कंपनी NPA की केटेगरी में आती है, तो उसे बैंक से मिलकर और बातचीत करके कोई रास्ता निकालना चाहिए। बैंक के पास ऐसे विकल्प होते हैं जिसपर आप सहमत हो सकते हैं। जैसे- 

- वन टाइम सेटलमेंट (OTS)- बैंक उधार लेने वाली पार्टी की वित्तीय स्थितियों का विश्लेषण कर सकते हैं और उन्हें ऋण के एकमुश्त निपटान का विकल्प देने का निर्णय ले सकते हैं। बैंक उधारकर्ता के लिए एक निश्चित राशि (या ब्याज) को माफ कर सकते हैं। यह सुविधा केवल केस-टू-केस आधार पर ही उपलब्ध है।

- ऋण का पुनर्गठन- यदि उधारकर्ता को हर महीने ईएमआई राशि का भुगतान करने का बोझ महसूस होता है, तो बैंक अपने ऋण के कार्यकाल को बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं, जो अंततः मासिक किस्त कम कर देगा। इसके अलावा, वे उधारकर्ता को ऋण की राशि का भुगतान एक बार में  करने की अनुमति दे सकते हैं, यदि उनकी वित्तीय स्थिति में भविष्य में कभी भी सुधार होता है। विशेष परिस्थिति में जुर्माना भी माफ़ कर सकते हैं।

भुगतान को कुछ समय के लिए टालना- जब उधारकर्ताओं को लगता है कि वे निकट भविष्य में ईएमआई का भुगतान नहीं कर पाएंगे, तो वे मदद के लिए बैंकों से संपर्क कर सकते हैं। ऐसे मामलों में बैंक अपनी किस्तों को किसी विशेष समय के लिए स्थगित करने पर विचार कर सकता है, जब तक कि उधारकर्ता की  वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं हो जाती। यह निश्चित रूप से बैंकों पर निर्भर करता है कि वे जुर्माना लगा सकते हैं या नहीं।

- जे. पी. शुक्ला

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