बुद्ध पूर्णिमा को भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी

Budhha Purnima
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शुभा दुबे । May 16 2022 10:49AM

बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के अनुयायी घरों में दीपक जलाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। इस पर्व पर दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है।

बुद्ध पूर्णिमा जिसे वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इस वर्ष 16 मई को है। इस दिन पवित्र नदियों के घाटों पर स्नान मेले आयोजित किये जाते हैं मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने का बड़ा लाभ मिलता है। इसलिए सभी को चाहिए कि महामारी से प्रभावित हुए लोगों की यथासंभव मदद करें अथवा जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री दें।

बुद्ध पूर्णिमा का पौराणिक महत्व

मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध भगवान श्रीविष्णु के नौवें अवतार हैं। इसलिए हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। इस दिन को 'सत्य विनायक पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र दरिद्र ब्राह्मण सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया।

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धूमधाम से मनायी जाती है बुद्ध पूर्णिमा

आमतौर पर बुद्ध पूर्णिमा के दिन कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। भगवान बुद्ध के अनुयायी चूँकि हर देश में हैं इसलिए हर देश में स्थानीय परंपराओं के हिसाब से इस पर्व को मनाया जाता है, जैसे कि श्रीलंका में इसे वेसाक कहा जाता है। इस दिन अहिंसा और सदाचार अपनाने का प्रण लिया जाता है। इस दिन मांसाहार भी नहीं किया जाता, क्योंकि महात्मा बुद्ध किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ थे। चीन, तिब्बत और विश्व के अनेक कोनों में फैले बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे अपने अपने ढंग से मनाते हैं। बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। उल्लेखनीय है कि गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां पर उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

बोधिवृक्ष की होती है पूजा

बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के अनुयायी घरों में दीपक जलाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। इस पर्व पर दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है और वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है और गरीबों को भोजन व वस्त्र दान दिए जाते हैं। दिल्ली संग्रहालय इस दिन भगवान बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सकें। हालांकि इस वर्ष कोई भी बड़ा आयोजन नहीं किया जा रहा है या फिर वर्चुअल तरीके से कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।

बुद्ध पूर्णिमा पर पूजा का क्या फल मिलता है?

इस दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गौ दान के समान फल प्राप्त होता है। साथ ही पांच या सात ब्राह्मणों को शर्करा सहित तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। इस दिन यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा हुआ पात्र भगवान श्रीविष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से मुक्त हो जाता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण भगवान का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, संपदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

- शुभा दुबे

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