सुहाग की सलामती की दुआ का पर्व है करवा चौथ

शुभा दुबे । Oct 19 2016 12:41PM

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व करवा चौथ, सुहाग की सलामती का पर्व है। यह चांद से सुख समृद्धि मांगने का दिन भी होता है।

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व करवा चौथ, सुहाग की सलामती का पर्व है। यह चांद से सुख समृद्धि मांगने का दिन भी होता है। इस दिन पूरे श्रृंगार में सुहागिनें मां पार्वती और शिव के साथ चांद की पूजा कर मांगती हैं खुशियों का वरदान। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां पति के स्वास्थ्य, आयु एवं मंगलकामना के लिए व्रत करती हैं। इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को चाहिए कि वह सूर्य निकलने से पूर्व ही फलाहार इत्यादि ग्रहण कर लें उसके बाद उन्हें पूरे दिन बिना जल और आहार के व्रत रखना होता है। सायं को चंद्रमा निकलने के बाद उनका दर्शन कर उन्हें अर्घ्य दें तथा पूजन करें। उसके बाद पति द्वारा पिलाये गये जल अथवा खिलाए गए निवाले से ही अपना व्रत तोड़ें। इस दिन सास अपनी बहू का सरगी भेजती है। सरगी में मिठाई, फल, सेवइयां आदि होती हैं। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले करती हैं।

करवा चौथ के दिन व्रती को नित्य कर्म से निवृत्त होकर गणेशजी की पूजा के लिए मन में दृढ़ संकल्प करना चाहिए कि मैं आज दिन भर निराहार रहकर गणेशजी के ध्यान में तत्पर रहूंगी और रात्रि में जब तक चंद्रोदय नहीं हो जायेगा तब तक निर्जल व्रत करूंगी। व्रत के दिन सायंकाल में गणेश, पार्वती, शिव, कार्तिकेय आदि देवों की प्रतिमा बनानी चाहिए। साथ ही एक वटवृक्ष मानव की आकृति बनाकर दिखानी चाहिए। उस मानवाकृति के हाथ में छलनी भी होनी चाहिए। पास में उदित होते हुए चांद की आकृति भी उस दीवार पर चित्रित करनी चाहिए।

पूजन काल में उस प्रतिमा के नीचे दो करवों (तांबा, पीतल, मिट्टी आदि से निर्मित एक विशेष प्रकार का पात्र, जिसके सिर पर जल गिराने के लिए एक टोंटी लगी रहती है) में जल भरकर रखना चाहिए। उस करवे के गले में नारा लपेटकर सिंदूर से रंगना चाहिए और उसकी टोंटी में सरई की सींक लगानी चाहिए। तदनन्तर करवे के ऊपर चावल से भरा हुआ कटोरा रखकर सुपारी भी रखनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में उस पर चावल का बना हुआ लड्डू रखें। इसके अतिरिक्त प्रतिमा के पास खीर, पूड़ी, चावल के आटे में उड़द की पीठी भरकर पकाया हुआ पकवान भी नैवेद्य के रूप में अर्पित करें। इसके अतिरिक्त ऋतु फल के अनुसार सिंघाड़ा, केला, नारंगी, गन्ना आदि जो कुछ भी पदार्थ उपलब्ध हो, उसे अर्पित कर भक्तिपूर्वक कथा श्रवण करें। कथा के अंत में पूर्व में स्थापित उन करवों को दाहिनी ओर से बायीं ओर और बायीं ओर रखे हुए करवे को दाहिनी ओर घुमाकर स्थापित कर दें। इस प्रक्रिया को लोकभाषा में करवा फेरना भी कहते हैं। इस प्रकार विधि विधानपूर्वक पूजन करने से व्रती के ऊपर गणेश जी की प्रसन्नता होती है और इसके फलस्वरूप उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति एवं अखण्ड सौभाग्यता मिलती है।

कथा

एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।

यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

शुभा दुबे

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