Covid lockdown में पेरेग्रन फाल्कन के आहार में भी बदलाव आया है?

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इस दौरान केवल मनुष्य का खानपान ही नहीं बदला। हमने हाल में एक अध्ययन में देखा कि लॉकडाउन के समय लंदन के पेरेग्रन फाल्कन पक्षी के आहार में भी बदलाव आया। लंदन में पेरेग्रन फाल्कन पक्षी के 30 से अधिक जोड़े हैं जो प्रजनन कर सकते हैं।

कई लोगों ने यह महसूस किया कि कोविड-19 की रोकथाम के लिए लगे लॉकडाउन के दौरान उनकी खानपान की आदतों में बदलाव आया है। कुछ लोग थोड़ी-थोड़ी देर में खाते रहते थे या स्वास्थ्यप्रद भोजन के साथ प्रयोग करते रहते थे, वहीं कुछ अन्य अधिक से अधिक बाहर से भोजन मंगाते थे। इस दौरान केवल मनुष्य का खानपान ही नहीं बदला। हमने हाल में एक अध्ययन में देखा कि लॉकडाउन के समय लंदन के पेरेग्रन फाल्कन पक्षी के आहार में भी बदलाव आया। लंदन में पेरेग्रन फाल्कन पक्षी के 30 से अधिक जोड़े हैं जो प्रजनन कर सकते हैं।

वैज्ञानिक हाई-डेफिनिशन वेब कैमरों से हर पल को रिकॉर्ड कर सकते हैं कि पक्षी अपने बच्चों को भोजन में क्या खिला रहे हैं। हमारे 50 नागरिक वैज्ञानिकों के दल ने ब्रिटेन के 27 शहरों में पेरेग्रन के घोंसलों के लाइव स्ट्रीम का विश्लेषण किया और पता लगाया कि पक्षी क्या खा रहे हैं। हमने 2020 से 22 के दौरान पक्षी के प्रजनन के समय घोंसलों पर नजर रखी और हम देख सके कि किस तरह लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद उनके आहार में क्या बदलाव आए।

लंदन में लॉकडाउन के दौरान पेरेग्रन पक्षियों ने जंगली कबूतरों को कम अनुपात (-15 प्रतिशत) में खाया। इसके बजाय, उन्होंने अधिक भूखे (+7 प्रतिशत) और गर्दन में निशान वाले तोतों को अपेक्षाकृत (+3%) अधिक शिकार बनाया। पेरेग्रन फाल्कन खाने के लिए ज्यादातार कबूतरों जैसे पक्षियों पर आश्रित होते हैं। लेकिन चूंकि कबूतर खुद मनुष्य पर निर्भर हैं, इसलिए मानवीय गतिविधियों में परिवर्तन का प्रभाव पेरेग्रन फाल्कन के खानपान आदि पर भी पड़ा।

कबूतर - जो चट्टानों पर रहने वाले फाख्ता के वंशज हैं - ने हमारे शहरों को अपना घर बना लिया है। अत्यधिक शहरीकृत नगरों में, मनुष्य जानबूझकर और अन्यथा कूड़े और भोजन की बर्बादी के उत्पादन के माध्यम से जंगली कबूतरों का समर्थन करते हैं। ये कबूतर अब पूरे लंदन में इतनी बड़ी संख्या में मौजूद हैं कि ट्राफलगर स्क्वायर सहित विशेष स्थानों पर उन्हें खिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

ब्रिटेन में हर साल लगभग 1.3 करोड़ कबूतरों को जंगल में छोड़ दिया जाता है। उनमें से कुछ हमारे शहरों में आ जाते हैं। शिकार करने वाले पक्षी बाद में इनमें से 8 प्रतिशत कबूतरों को पकड़ लेते हैं। फिर भी, शहरी पेरेग्रन के आहार में उड़ाने के खेल में शामिल कबूतरों का महत्व अनिश्चित बना हुआ है। जब महामारी प्रतिबंध लगाए गए थे, तो कबूतरों की उड़ान के खेल को निलंबित कर दिया गया था और ये पक्षी अपने मचानों तक ही सीमित थे।

शहरी क्षेत्रों में जंगली कबूतरों के लिए खानपान के अवसर भी कम हो गए क्योंकि लोगों को घरों में ही रहने की सलाह दी गई। इसने भूखे कबूतरों को वैकल्पिक खाद्य स्रोतों की तलाश में फैलने के लिए मजबूर किया, जिसका अर्थ है कि पेरेग्रन के खाने के लिए कम कबूतर मौजूद थे। हमारे अध्ययन के व्यापक भौगोलिक कवरेज से यह भी पता चला है कि पेरेग्रन के आहार पर सामाजिक प्रतिबंधों के प्रभाव पूरे ब्रिटेन में असमान थे। लंदन एकमात्र ऐसा शहर था जहां अध्ययन किया गया और जहां कबूतरों के शिकार बनने के अनुपात में काफी गिरावट आई थी।

कबूतरों के बड़े झुंड पार्कों में मनुष्यों की तरफ आकर्षित होते हैं या कूड़े के डिब्बे में भोजन के लिए झपटते हैं। हम इन दैनिक क्रियाओं को सामान्य तरीके से लेते हैं। लेकिन कबूतर पेरेग्रन बाज़ जैसे शिकारी पक्षियों की सफलता में योगदान देते हैं। दुनियाभर में कीट नियंत्रण कार्यक्रमों का भी कबूतरों पर असर पड़ा है। सिंगापुर और स्विट्जरलैंड जैसे देशों ने अपने मानवीय खाद्य स्रोतों को लक्षित करके कबूतरों के प्रबंधन का तरीका अपनाया है। सार्वजनिक साफ-सफाई और स्वास्थ्य में सुधार के लिए अक्सर इन उपायों को लागू किया जाता है। अनुसंधान में पता चला है कि कबूतरों से और उनके मल से मनुष्य को ओर्निथोसिस और पैरामाइक्सोवायरस जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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