यूक्रेन के खिलाफ गुप्त रूप से युद्ध की तैयारी में रूस! हमला हुआ तो किसका साथ देगा भारत? जानिए अमेरिका को क्या है उम्मीद

Ukraine
रेनू तिवारी । Feb 17 2022 5:02PM

यूक्रेन ने रूस के बढ़ते दबाव के बीच बुधवार को झंडा लहराकर राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन किया, जबकि अमेरिका ने कहा कि रूस ने यूक्रेन की सीमा से बलों की वापसी की अपनी घोषणा के विपरीत क्षेत्र में कम से कम 7,000 और बलों को तैनात किया है।

वाशिंगटन। यूक्रेन ने रूस के बढ़ते दबाव के बीच बुधवार को झंडा लहराकर राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन किया, जबकि अमेरिका ने कहा कि रूस ने यूक्रेन की सीमा से बलों की वापसी की अपनी घोषणा के विपरीत क्षेत्र में कम से कम 7,000 और बलों को तैनात किया है। यूक्रेन पर रूस के हमले की आशंका अभी तक हकीकत में नहीं बदली है, लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों का कहना है कि इसकी आशंका अब भी उतनी ही अधिक बनी हुई है। पश्चिमी देशों के अनुमान के अनुसार, रूस ने यूक्रेन के पूर्व, उत्तर और दक्षिण में 1,50,000 से अधिक बलों को तैनात किया है।

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रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास तैनात किए 7,000 से अधिक सैनिक

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संकेत दिया है कि वह संकट का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने वादा किया है कि अमेरिका भी संकट के राजनयिक समाधान का ‘‘हर मौका’’ देगा, लेकिन और बलों की तैनाती की खबर से मॉस्को के इरादे को लेकर संशय पैदा हो गया है। इससे पहले, रूस ने बुधवार को कहा था कि वह और अधिक सैनिकों तथा हथियारों को सैन्य अड्डों पर वापस ला रहा है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को एक वीडियो जारी किया था, जिसमें यह देखा जा सकता है कि बख्तरबंद वाहनों से लदी हुई एक मालगाड़ी क्रीमिया, काला सागर प्रायद्वीप से दूर एक पुल को पार कर रही है। रूस ने इस प्रायद्वीप को 2014 में अपने भू-भाग में मिला लिया था। उसने घोषणा की कि और टैंक इकाइयों को ट्रेन में रखा जा रहा है, ताकि प्रशिक्षण अभ्यास के बाद उनके स्थायी अड्डे को वापस भेजा जा सके। रूसी लड़ाकू विमानों ने बुधवार को बेलारूस के हवाई क्षेत्र में प्रशिक्षण उड़ानें भरी, जो उत्तर की ओर से यूक्रेन के पड़ोस में है। वहीं, अर्द्ध-सैनिक बलों ने गोलीबारी का अभ्यास किया। अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पश्चिमी देशों ने पाया है कि रूस ने यूक्रेन के निकट 7,000 अतिरिक्त बलों को तैनात किया है। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ‘एबीसी न्यूज’ से कहा, ‘‘हमने बलों की वापसी का कोई संकेत नहीं देखा है। वह (पुतिन) ट्रिगर दबा सकते हैं। वह इसे आज दबा सकते हैं, वह इसे कल दबा सकते हैं, वह इसे अगले सप्ताह दबा सकते है।

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रूस अगर यूक्रेन पर करता है हमला तो किसका साथ देगा भारत?

अमेरिका ने बुधवार को उम्मीद जताई कि नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध भारत, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की सूरत में अमेरिका का साथ देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने कहा है कि रूस ने हाल के दिनों में यूक्रेन की सीमा पर सात हजार अतिरिक्त सैनिक तैनात किए हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बताया कि चार देशों (क्वाड) के विदेश मंत्रियों के बीच हाल में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में हुई बैठक में रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर चर्चा हुई। भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्री इस बैठक में शामिल हुए थे। प्राइस ने कहा, ‘‘बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि इस मामले के राजनयिक-शांतिपूर्ण समाधान की जरूरत है।’’

प्रवक्ता ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘‘क्वाड नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने का पक्षधर है। नियम आधारित व्यवस्था हिंद प्रशांत क्षेत्र में समान रूप से लागू होती है, जैसे कि यह यूरोप में है या अन्य कहीं है। हम जानते हैं कि हमारे भारतीय साझेदार नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध है। इस व्यवस्था में अनेक नियम हैं, उनमें से एक यह है कि बल के जरिए सीमाओं का पुनर्निर्धारण नहीं हो सकता।’’ भारत सहित अन्य पड़ोसियों के खिलाफ चीन के आक्रामक रुख का प्रत्यक्ष जिक्र करते हुए उन्होंने कहा,‘‘ बड़े देश छोटे देशों को परेशान नहीं कर सकते। किसी देश के लोग अपनी विदेश नीति, अपने साझेदार, गठबंधन सहयोगी आदि चुनने के हकदार हैं। ये सिद्धांत यूरोप की भांति हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी समान रूप से लागू होते हैं।’’

भारत,अमेरिका और अन्य शक्तिशाली देश क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य दखलंदाजी के मद्देनजर स्वतंत्र, मुक्त और उन्नत हिंद प्रशांत सुनिश्चित करने की जरूरत पर जोर देते रहे हैं। चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है,वहीं ताइवान, फिलिपीन्स, ब्रुनेई,मलेशिया और वियतनाम जैसे देश भी इसपर अपना दावा करते हैं। चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान निर्मित कर लिए हैं। प्राइस ने कहा कि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की, लेकिन उन्होंने इस बात पर कुछ भी बोलने से परहेज किया कि क्या ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्स’ अधिनियम (कात्सा) के तहत कार्रवाई पर भी कोई चर्चा हुई या नहीं। अमेरिकी कांग्रेस ने वर्ष 2017 में इसे लागू किया था। रूस से रक्षा तथा खुफिया क्षेत्र से जुड़े साजो सामान की खरीद फरोख्त करने वाले देशों पर कात्सा के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। उन्होंने कहा,‘‘ रक्षा संबंधों पर व्यापक चर्चा हुई, लेकिन इससे ज्यादा मैं इस पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा।’’

 भारत और रूस के बीच के संबंध

भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस से पांच एस-400 हवाई रक्षा प्रणाली की खरीद के लिए पांच अरब डॉलर का सौदा किया था। उस वक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने चेतावनी दी थी कि इस सौदे से भारत पर प्रतिबंध लग सकते हैं। इससे पहले ब्लिंकन ने कहा था कि अमेरिका मॉस्को द्वारा पैदा किए गए संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। विदेश मंत्री ने संवाददाताओं से कहा था,‘‘ लेकिन वे प्रयास,जैसा कि हम कह चुके हैं, केवल तभी प्रभावी होंगे जब रूसी संघ सैनिकों की संख्या को कम करने को तैयार हो।’’

अमेरिका प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रूस ने यूक्रेन की सीमा से बलों की वापसी की अपनी घोषणा के विपरीत क्षेत्र में कम से कम 7,000 और बलों को तैनात किया है। प्राइस ने कहा,‘‘स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो हमने यह नहीं देखा है। बल्कि हाल के सप्ताह में, दिनों में हमने इससे ठीक उलट देखा है। रूसी बल सीमा पर हैं और वे युद्ध की स्थिति के जैसे तैनात हो रहे हैं। ये घोर चिंता की बात है। इसी के साथ, कई सप्ताह से हम देख रहे हैं कि रूसी अधिकारी और रूसी मीडिया प्रेस में कई कहानियां फैला रहे हैं।’’ विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इनमें से किसी को भी आक्रमण के कारण के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा,‘‘ ये हो सकता है, किसी भी वक्त और विश्व को इसके लिए तैयार रहना होगा। इसके लिए यूक्रेनी सेना की डोन्बास में गतिविधियों, जमीन,हवाई और समुद्र में अमेरिका अथवा नाटो बलों की गतिविधियों के झूठे दावों का भी सहारा लिया जा सकता है।’’ वहीं रूस यूक्रेन पर हमले की खबरों को लगातार खारिज करता रहा है। उसकी मांग है कि यूक्रेन और सोवियत संघके पूर्व देशों को नाटो में शामिल नहीं किया जाए।

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