अमेरिका में नई नीति से झटका: भारतीय प्रोफेशनल्स को वर्क परमिट न बढ़ने पर नौकरी छोड़नी होगी

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Ankit Jaiswal । Oct 30 2025 11:30PM

अमेरिका में वर्क परमिट (EAD) के स्वचालित नवीनीकरण की समाप्ति से भारतीय प्रोफेशनल्स को झटका लगा है, क्योंकि 30 अक्टूबर 2025 से पहले समय पर अनुमति न मिलने पर उन्हें नौकरी छोड़नी होगी। इस USCIS नियम से H-1B वीज़ा धारक, H-4 जीवनसाथी और STEM OPT छात्र सर्वाधिक प्रभावित होंगे, जिन्हें वर्क परमिट की अनिश्चितता और ग्रीन कार्ड की दशकों लंबी प्रतीक्षा का सामना करना पड़ेगा। यह अमेरिका वर्क परमिट नीति हजारों पेशेवरों के लिए रोजगार अस्थिरता और अनिश्चित भविष्य पैदा कर रही है।

अमेरिका में काम कर रहे हजारों भारतीय पेशेवरों के लिए एक नई चिंता पैदा हो गई है। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) ने Employment Authorisation Document (EAD) यानी वर्क परमिट की स्वचालित एक्सटेंशन सुविधा समाप्त कर दी है। यह नया नियम 30 अक्टूबर 2025 से प्रभावी हो गया है।

अब तक विदेशी कर्मचारी अपने EAD नवीनीकरण आवेदन लंबित रहने के दौरान 540 दिनों तक काम जारी रख सकते थे, लेकिन अब यह सुविधा नहीं मिलेगी। यानी यदि नवीनीकरण समय पर स्वीकृत नहीं हुआ, तो कर्मचारी को तुरंत काम बंद करना होगा।

अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (USCIS) ने सलाह दी है कि विदेशी कर्मचारी अपने वर्क परमिट की समाप्ति से कम से कम 180 दिन पहले आवेदन करें। हालांकि, मौजूदा प्रसंस्करण समय तीन से बारह महीने का है, जिससे समय पर अनुमति मिलना मुश्किल हो सकता है।

इस बदलाव का सबसे अधिक असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा, खासकर H-1B वीज़ा धारकों, H-4 वीज़ा पर काम कर रहे जीवनसाथियों, STEM OPT छात्रों और रोजगार-आधारित Green Card आवेदकों पर। पहले से ही ग्रीन कार्ड की लंबी प्रतीक्षा प्रक्रिया (कई बार 20 साल तक) झेल रहे भारतीय अब नौकरी और वीज़ा दोनों को लेकर अस्थिरता में हैं।

USCIS ने इस निर्णय को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा है। एजेंसी के निदेशक जोसेफ एडलो ने कहा, “अमेरिका में काम करना अधिकार नहीं, बल्कि विशेषाधिकार है। हर विदेशी को उचित स्क्रीनिंग से गुजरना होगा।”

हालांकि यह नियम कुछ श्रेणियों, जैसे Temporary Protected Status (TPS) धारकों या पहले से स्वीकृत विस्तारों पर लागू नहीं होगा। 30 अक्टूबर 2025 से पहले जिन EADs का स्वचालित विस्तार हो चुका है, वे प्रभावित नहीं होंगे।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह नीति भारतीय समुदाय के लिए रोजगार अस्थिरता और आर्थिक संकट का कारण बन सकती है। इसका असर खासकर आईटी, स्वास्थ्य और शोध क्षेत्रों पर गंभीर रूप से पड़ने की आशंका है।

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