Pakistan Army ने सच कबूलते हुए कहा- इस्लाम हमारे प्रशिक्षण का अंग, हम जिहाद पर चलते हुए अल्लाह के लिए लड़ते हैं

asim munir
ANI

हम आपको बता दें कि उनका यह बयान तब आया जब उनसे पूछा गया कि क्या पाकिस्तानी सेना द्वारा ऑपरेशन का नाम बुनयान अल मरसूस रखना और भारतीय नागरिकों तथा सैन्य प्रतिष्ठानों पर सुबह-सुबह हमले करना अल्लाह के दिखाए रास्ते से प्रेरित है।

पाकिस्तान में कट्टरपंथी आतंकवादियों के साथ ही पाकिस्तानी सेना भी कभी अपनी इस्लामी विचारधारा को छिपाने की कोशिश नहीं करती। बल्कि गर्व से अपना आदर्श वाक्य 'ईमान, तक़वा, जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह' (आस्था, अल्लाह के नाम पर संघर्ष) को अपनाते हुए अपने कार्यों को अंजाम देती रही है। पाकिस्तान सेना के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (DG-ISPR) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ़ ने रविवार को जब प्रेस वार्ता की तो पाकिस्तानी सेना का वो सच सामने आ गया जिस पर पूरी दुनिया को गौर करना चाहिए और किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए। हम आपको बता दें कि अहमद शरीफ ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि इस्लाम सिर्फ सैनिकों की व्यक्तिगत आस्था का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह सेना के प्रशिक्षण का भी अंग है।

हम आपको बता दें कि उनका यह बयान तब आया जब उनसे पूछा गया कि क्या पाकिस्तानी सेना द्वारा ऑपरेशन का नाम बुनयान अल मरसूस रखना और भारतीय नागरिकों तथा सैन्य प्रतिष्ठानों पर सुबह-सुबह हमले करना अल्लाह के दिखाए रास्ते से प्रेरित है। इसके जवाब में अहमद शरीफ ने कहा कि इस्लाम न केवल हम सभी के विश्वास का हिस्सा है, बल्कि हमारे प्रशिक्षण का भी हिस्सा है। यह हमारी प्रेरणा है, यही हमें आगे बढ़ाता है। उन्होंने सेना के आदर्श वाक्य को स्पष्ट करते हुए कहा, "हमारे पास एक ऐसा सेना प्रमुख है, जिसकी इस पर गहरी आस्था है। उनकी आस्था और प्रतिबद्धता विभिन्न सैन्य अभियानों में परिलक्षित होती है।"

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जब उनसे पूछा गया कि पाकिस्तान सेना ने अपने ऑपरेशन का नाम बुनयान अल मरसूस क्यों रखा, तो उन्होंने कहा कि "जो लोग अल्लाह के लिए लड़ते हैं, वे एक 'इस्पात की दीवार' की तरह होते हैं।" हम आपको यह भी बता दें कि लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ़ हाल ही में अपने पेशेवर कर्तव्यों से परे अपने निजी संबंधों के कारण भी चर्चा में आए थे जब सोशल मीडिया पर उनकी 'जिहादी' पृष्ठभूमि को उजागर किया गया। उनके पिता महमूद सुल्तान बशीरुद्दीन, जो कि पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन के पूर्व वैज्ञानिक थे, उनका संबंध चरमपंथी संगठनों से और यहां तक कि ओसामा बिन लादेन के साथ भी सामने आया था। देखा जाये तो उनकी यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति कि इस्लामाबाद 'जिहाद' का खुलकर समर्थन करता है, वर्दीधारी और गैर-वर्दीधारी जिहादियों के बीच का अंतर लगभग समाप्त कर देती है, चाहे वे लश्कर-ए-तैयबा हो या जैश-ए-मोहम्मद, जो दशकों से भारत के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं और आतंकियों को कश्मीर तथा अन्य क्षेत्रों में घुसपैठ कराकर नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना बना रहे हैं। इसके साथ ही अहमद शरीफ ने अपने सेनाध्यक्ष मुनीर की इस्लाम में गहरी आस्था का जो जिक्र किया है उसका सबूत हाल ही में तब सामने आया ही था जब पहलगाम आतंकी हमले से पहले उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिया था।

हम आपको एक बार फिर याद दिला दें कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुनीर ने कहा था, ‘‘हमारे धर्म अलग हैं, हमारे रीति-रिवाज अलग हैं, हमारी परंपराएं अलग हैं, हमारे विचार अलग हैं, हमारी महत्वाकांक्षाएं अलग हैं। यहीं से द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की नींव रखी गई। हम दो राष्ट्र हैं, हम एक राष्ट्र नहीं हैं।'' इस बयान पर गौर करते हुए आप आतंकवादियों द्वारा किये गये कृत्य को देखेंगे तो पाएंगे कि मुनीर का इशारा आतंकवादी समझ गये थे और उन्होंने वही किया जो मुनीर चाहते थे।

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