भारत की नाराज़गी की फ़िक्र क्यों नहीं कर रहा तुर्की? पाकिस्तान का साथ देकर जबरदस्ती पंगा लेने पर तुला

भारत पाकिस्तान के बीच तनाव को लेकर भी तुर्की ने पाकिस्तान के समर्थन में खुलकर बयान दिया। अपने एक्स पोस्ट में तुर्की के राष्ट्रपति रिचप तैयब एर्दोगन ने पोस्ट भी लिखा था। बाद में खबर आई की तुर्की के चार 130 सी हरक्युलस कराची और इस्लामाबाद में उतरे हैं। ये खबर जैसे ही पूरी दुनिया में फैली, वैसे ही तुर्की जवाब के लिए सामने आ गया। तुर्की ने साफ किया कि पाकिस्तान झूठ बोल रहा है। तुर्की ने इस लैंडिग को ईंधन भरने से जोड़ा था।
भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान जब आमने सामने थे तो तुर्की खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था। ऐसा कोई पहली बार नहीं है जब तुर्की भारत पाकिस्तान के किसी मसले पर पाकिस्तान के साथ खड़ा हो। संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी तुर्की ने की मौकों पर पाकिस्तान का समर्थन किया है। भारत पाकिस्तान के बीच तनाव को लेकर भी तुर्की ने पाकिस्तान के समर्थन में खुलकर बयान दिया। अपने एक्स पोस्ट में तुर्की के राष्ट्रपति रिचप तैयब एर्दोगन ने पोस्ट भी लिखा था। बाद में खबर आई की तुर्की के चार 130 सी हरक्युलस कराची और इस्लामाबाद में उतरे हैं। ये खबर जैसे ही पूरी दुनिया में फैली, वैसे ही तुर्की जवाब के लिए सामने आ गया। तुर्की ने साफ किया कि पाकिस्तान झूठ बोल रहा है। तुर्की ने इस लैंडिग को ईंधन भरने से जोड़ा था।
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पाकिस्तान को हर तरह से मदद कर रहा तुर्की
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमले की नाकाम कोशिश की थी। मीडिया रिपोर्ट बताते है कि इसमें तुर्की ने न केवल पाकिस्तान को ड्रोन से मदद की, बल्कि भारत के खिलाफ ड्रोन हमलों में सहायता के लिए इस्लामाबाद में सैन्य कर्मियों को भी भेजा। ऑपरेशन सिंदूर में तुर्की के दो सैन्यकर्मी भी मारे गए। इस्तांबुल ने भारत के साथ पाकिस्तान के चार दिवसीय संघर्ष में इस्लामाबाद को 350 से अधिक ड्रोन की आपूर्ति की है।
जब मुसीबत में था तुर्की ने भारत ने मदद का हाथ बढ़ाया
अभी तक आपने सुना होगा कि इंसान अहसानफरामोश होता है। लेकिन अगर तुर्किये की तरफ देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि एक देश भी अहसानफरामोश जो सकता है। आपको बता दें कि 2023 में वो भारत ही था जिसने अपने एनडीआरएफ को भेजकर तुर्किये की मदद की थी। जब भूकंप के बाद ये दर्द से कराह रहा था। भारत सरकार ने सीरिया और तुर्की में राहत व बचाव कार्यों के लिए ऑपरेशन दोस्त की शुरुआत की थी। इस ऑपरेशन के जरिए भारत से विमान से राहत सामग्री तुर्की भेजे गए थे। इसे अहसानफरामोशी नहीं तो और क्या कहेंगे कि भारत ही था जो सबसे पहले अपने लोगों को भेजता है। मलबे में से आपके लोगों को निकाल सके। तुरंत उपचार मुहैया कराया गया। दवाईयां और जरूरी सामान भेजा गया।
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भारत दोस्त, पाक भाई
तुर्की भारत को दोस्त बताता है और पाकिस्तान को भाई। जब जब दोनों देशों में चुनना होता है तो ज्यादातर मौकों पर तुर्की पाकिस्तान के साथ दिखाई देता है। आसान शब्दों में कहें तो एर्गोगन चाहते हैं कि कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान के हक में चला जाये। ये उनके उसी सपने की तरह है जैसा वो इस्लाम का खलीफा बनने की मंशा रखते हैं। फिर भी आप कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देते हैं। वो पाकिस्तान जिसको पूरी दुनिया आज जानती है कि जहां से आतंकवाद पनपता है। एक तरफ पाकिस्तान ये चाहता है कि हम इस्लामिक राष्ट्रों के साथ मिलकर बहुत अच्छे बने रहे। एक तरफ तुर्किए के एर्गोगन ये चाहते हैं कि मैं इस्लामिक देशों का खलीफा बन जाऊं।
तुर्की क्यों नहीं देता भारत का साथ
आज भारत के सऊदी अरब और यूएई के साथ मजबूत संबंध हैं। ये ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान के करीबी रहे हैं। लेकिन तुर्की इस मामले में थोड़ा अलग है। तुर्की और भारत के बीच व्यापारिक संबंध ज्यादा नहीं है। तुर्की और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुए थे। लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद भी दोनों करीबी साझेदार नहीं बन पाए हैं। शीत युद्ध के दौर में तुर्की अमेरिका के खेमे में था जबकि भारत गुटनिरपेक्षता की वकालत कर रहा था। पिछले कुछ अरसे से इस्लामिक दुनिया में वर्चस्व स्थापित करने को लेकर उसकी एक छटपटाह है। मिडल ईस्ट में चार पावर हैं- सऊदी अरब, ईरान, तुर्की और इजरायल। इनमें से तीन इस्लाम के मानने वाले हैं। इन तीन में भी ईरान शिया मुल्क है। सऊदी अरब और तुर्की सुन्नी बहुल देश हैं और उनमें आपस में वर्चस्व की जंग का एक लंबा इतिहास रहा है। सऊदी अरब में मक्का और मदीना है तो वहीं तुर्की अपने साथ ऑटोमन साम्राज्य का एक इतिहास लेकर चलता है और उस पर गर्व महसूस करता है। अब जब भारत के यहूदी देश इजरायल के साथ ही सऊदी अरब और ईरान से अच्छे संबंध हैं तो तुर्की ने खुद को पाकिस्तान के करीब कर लिया है।
भारत के बाजार से बेपरवार क्यों तुर्की
तुर्की के राष्ट्रपति एर्गोगान फिर भी बेफ्रिक हैं। उन्होंने पाकिस्तान के समर्थन जारी रखने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि हम पाकिस्तन का समर्थन करते रहेंगे। हम नुकसान के बारे में नहीं सोचते हैं। एर्दोगन ने फिर से अपने भाई पाकिस्तान को अटूट समर्थन दिया और पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को अपना अनमोल भाई बताया। कारोबारी संबंधों के नजरिए से बात करें तो भारत से रिश्ते बिगाड़ने पर झटका तुर्की को ही लगेगा। लेकिन यह भी सच है कि फिलहाल वह बाजार के हिसाब से नहीं बल्कि इस्लामिक दुनिया वर्चस्व और उम्माह का नेता बनने के नजरिए से अपनी विदेश नीति बढ़ा रहा है। यदि भारत ने उससे दूरी बनाई तो निश्चित तौर पर तुर्की को झटका लगेगा। वजह यह है कि तुर्की के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है। वह पर्यटन पर ही मुख्य तौर पर निर्भर है। लेकिन सवाल वही है कि क्या वह मजहबी नजरिए से अपनी विदेश नीति पर काम कर रहा है या फिर व्यवहारिक दृष्टिकोण से।
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