नवरात्रि में माता रानी का आशीर्वाद पाने के लिए पढ़ें ये स्तोत्र, श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर मिलेगा फल

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अगर आप व्यस्तता के कारण दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में असक्षम हैं तो सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् का पाठ कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से पूरे दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर ही फल मिलता है।

हिन्दू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में नवदुर्गा की पूजा-आराधना करने से माँ मनवाँछित फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि पूजन में माँ नवरात्रि कथा, दुर्गा चालीसा, आरती और श्रीदुर्गा सप्तशती पाठ करने का विशेष महत्व है। नवरात्रि में कलश स्थापना के बाद श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है। श्रीदुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं जिनमें माँ दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ विधिपूर्वक करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। हालाँकि, अगर आप व्यस्तता के कारण दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में असक्षम हैं तो सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् का पाठ कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से पूरे दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर ही फल मिलता है। 

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शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेनस्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥

॥ अथ मन्त्रः ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे॥

ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥

॥ इति मन्त्रः ॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥2॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति॥

यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।

न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

॥ ॐ तत्सत् ॥

- प्रिया मिश्रा 

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