आमलकी एकादशी 2022: इस दिन की जाती है आंवले के वृक्ष की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

amalaki ekadashi in 2022

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। इसे आंवला एकादशी भी कहा जाता है। इस साल आमलकी एकादशी 14 मार्च 2022 को है।इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, आँवले के वृक्ष के हर भाग में ईश्वर का वास माना गया है।

हिन्दू धर्म में हर माह आने वाली एकादशी का विशेष महत्त्व है। पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। इसे आंवला एकादशी भी कहा जाता है। इस साल आमलकी एकादशी 14 मार्च 2022 (सोमवार) को है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, आँवले के वृक्ष के हर भाग में ईश्वर का वास माना गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवले के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजन करने से सौ गायों के दान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

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आमलकी एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ- 14 मार्च 2022 (सोमवार) को दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त- 14 मार्च 2022 (सोमवार) को दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक

आमलकी एकादशी महत्त्व

पद्म पुराण में उल्लेख के अनुसार यदि आमलकी एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान और नियम के साथ किया जाए तो सैंकड़ों तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और पूजन करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन आंवले का बहुत महत्व माना गया है। भगवान विष्णु को आंवला अतिप्रिय है। भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करना चाहिए और आंवले का सेवन करना चाहिए। 

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आमलकी एकादशी व्रत और पूजन विधि 

आमलकी एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके स्वछ वस्त्र धारण करें। 

पूजन स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प करें। 

भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें। 

अब धूप जलाएं और भगवान विष्णु को पुष्प और आंवला अर्पित करें।

भगवान विष्णु की पूजा के बाद आंवले के वृक्ष की पूजा करें। 

आंवले के वृक्ष पर धूप, दीप, चंदन, रोली, पुष्प, अक्षत आदि से पूजन करें।

पूजा संपन्न करने के पश्चात विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

रात्रि में भजन-कीर्तन करें और भगवान का स्मरण करें। 

अगले दिन, द्वादशी को सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दान-दक्षिणा दें और अन्न-जल ग्रहण करके व्रत खोलें।

- प्रिया मिश्रा 

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